राइस मिलर्स की मांग, एजेंसियां समय से करें धान का भुगतान
Lakhimpur-khiri News - लखीमपुर जिले के राइस मिलरों को लेबर, भुगतान और कच्चे माल की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। राइस मिलरों का कहना है कि किसानों को अपनी फसल सीधे मिलों को बेचने की अनुमति दी जाए। कुटाई का रेट...

लखीमपुर जिले के राइस मिलर इन दिनों बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहें हैं। लेबर, भुगतान जैसी समस्याओं से जूझ रहे राइस मिलरों के सामने कच्चे माल की कमी भी बड़ी चुनौती है। राइस मिलरों की मांग है कि किसान और मिल के बीच का दायरा कम किया जाए। किसानों को अपनी फसल सीधे मिलों को बेचने की अनुमति दी जाए। 44 साल बाद भी कुटाई का रेट 10 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है। महंगाई को देखते हुए इसे बढ़ाने की जरुरत है। पंजाब व हरियाणा जैसी क्रय नीति को प्रदेश में भी लागू करने से हालात बेहतर होंगे। खीरी गन्ने के साथ ही धान उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां तराई की जमीन धान की खेती के लिए मुफीद है। खीरी जिले में सौ से ज्यादा राइस मिल हैं और दस हजार लोग इस उद्योग से जुड़े हुए हैं। हजारों किसान भी इससे लाभान्वित हैं लेकिन राइस मिलों की हालत बेहतर नहीं है। मिल मालिकों की अपनी समस्याएं हैं। धान से चावल रिकवरी से लेकर टूटन और भुगतान का मुद्दा भी जस का तस है। राइस मिलरों का कहना है कि कई वर्षों से कस्टम मिलिंग के काम में धान से चावल की रिकवरी 67 की जगह 58 से 63 फीसदी हो रही है। चावल में टूटन 25 प्रतिशत की जगह 45 से 50 फीसदी हो रहा है जबकि मिलिंग चार्जेज पिछले 40 वर्षों से 10 रुपये प्रति क्विंटल ही मिल रहा है। इसके अलावा कई मदों के भुगतान सरकार से न मिलने के कारण राइस मिलों की हालत खराब है। राइस मिलरों का कहना है कि धान खरीद करने वाली प्राइवेट एजेंसी ने एक माह में भुगतान करने की बात कही थी लेकिन एक माह तो दूर चार माह बाद भी भुगतान नहीं मिलता। जब खर्चे ही नहीं निकल रहें हैं तो मिल कैसे चलें। मिल मालिको का कहना है कि बिजली, डीजल, और लेबर के रेट बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। ऐसे में धान की कुटाई का रेट भी बढ़कर मिलना चाहिए। मशीनों और उनके पुर्जो के दाम भी काफी बढ़ गए हैं, ऐसे में मिल चला पाना काफी मुश्किल हो गया है।
मिल तक सीधे हो किसानों की पहुंच
राइस मिलर कहते हैं किसान अपनी फसल बेचने के लिए स्वतंत्र हैं। किसान चाहे तो सरकारी केन्द्रों पर या फिर आढ़तों पर फसल बेचे, उसे किसी एक जगह के लिए बाध्य न किया जाए। हम लोगों के यहां किसान जब फसल लेकर अपनी मर्जी से आते हैं तो आरोप हम लोगों पर लगाए जाते हैं। राइस मिलर कहतें हैं कि क्रय नीति इन लोगों के पक्ष में नहीं है। क्रय नीति बनाते समय किसानों और मिलर्स को साथ रखा जाए। इसमें बदलाव की आवश्यकता है। अन्य प्रदेशों के मुताबिक यूपी में क्रय नीति में बदलाव जरूरी है। तभी राइस मिलर्स के अधिकारों का संरक्षण हो सकेगा।
आढ़तों के माध्यम से हो धान खरीद
राइस मिलर कहते हैं कि धान खरीद आढ़तों के माध्यम से होनी चाहिए। इसमें किसान को वाजिब दाम मिलते हैं, नकद भुगतान होता है। हम लोगों को भी फायदा होता है। सरकारी धान क्रय केन्द्रों के चक्कर में पड़कर किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नकद भुगतान सहित अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
44 साल बाद भी नहीं बदला कुटाई का रेट
राइस मिलर्स कहते हैं कि 44 साल भी सरकार पुराने ढर्रे पर काम कर रही है। आज तक प्रति कुन्तल के हिसाब से धान कुटाई का रेट 10 रूपये ही मिलता है। इसे बढ़ाए जाए। अन्य प्रदेशों में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर 150 रुपये प्रति कुन्तल के हिसाब से धान कुटाई का रेट मिलता है। इसके अलावा यह भी देखना चाहिए कि धान से चावल की रिकवरी भी घट रही है। चावल का टूटन भी बढ़ रहा है। इन सब बातों का ख्याल रखा जाए तो हमारा कारोबार बच सकेगा।
उद्योग बंधु की बैठक में भी नहीं होता समस्याओं का समाधान
राइस मिलर कहते हैं कि स्थानीय स्तर पर प्रशासन उद्योग बंधु की बैठक करता है। यहां पर भी हम लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है। हम लोग हर बार समस्या नोट कराते हैं। हम लोगों को कोई रिआयत नहीं दी जा रही। जबकि हमारा कारोबार ही कृषि आधारित है। फिर भी न बिजली दरों में रिआयत मिल रही है और न ही कोई सब्सिडी। सरकार हमारी सुन ले तो जिले की राइस मिलर्स बंद होने से बच जाए।
सरकारी एजेंसियां समय से नहीं करती भुगतान
मिल मालिकों का कहना है कि सरकारी एजेंसियों से हम लोग धान खरीद कर धान की कुटाई करते हैं। इसके बाद इसकी सप्लाई करते हैं। लेकिन हम लोगों का समय से भुगतान नहीं होता है। ऐसे में लेबर चार्ज, मशीनरी खर्च इत्यादि का भुगतान हम लोग अपनी जेब से करते हैं। ऐसे में हम लोगों के सामने बड़ी समस्या होती है। यदि समय से भुगतान हो जाए तो हम लोग के कार्य अच्छे से होंगे।
दो माह चलती है मिल
राइस मिलर्स कहते हैं कि दो माह मिल चलता है। ऐसे में बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कहते हैं कि धान खरीद की सीमा एक नवंबर से 31 मार्च तक की जाए। मिलर्स की समस्याओं को सरकार प्राथमिकता पर सुनें। इससे हम लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े। कहते हैं कि यदि बैंके अपने हाथ पीछे खींच ले तो कई मिल बंद हो सकते हैं। क्योंकि सरकार से कोई राहत नहीं मिल रही है।
25 दिन से अधिक होने पर डिलीवरी पर कटता है चार्ज
-राइस मिलर्स कहते हैं कि धान कुटाई करने के बाद इसकी डिलवरी 25 दिन के अंदर करनी होती है। यदि इसमें देरी हुई तो प्रति कुन्तल के हिसाब से एक रूपये जुर्माने के तौर पर वसूला जाता है। ऐसे में हम लोगों को डिलवरी के लिए कम से कम 45 दिन का समय चाहिए।
67 प्रतिशत जमा करते हैं रिकवरी, इसे लिए रहते हैं घाटे में
राइस मिलर्स कहते हैं कि हम लोगों को केन्द्र सरकार की नीति के अनुसार 63 प्रतिशत रिकवरी देना रहता है। लेकिन कई कारणों के चलते हम लोग रिकवरी देते हैं 67 प्रतिशत। ऐसे में राइस मिलर्स के घाटे में जाने का सबसे बड़ा एक कारण यह भी है। बताते हैं कि किसान धान बिल्कुल मानक के अनुरूप तो लाता नहीं है, इसके बाद जब हम लोगों के पास यह आता है तो घट जाता है। ऐसे में हम लोगों को रिकवरी अधिक देनी पड़ती है। जो हम लोगों के घाटे का कारण है।
हमारी भी सुनिए:
राइस मिलर मोहम्मद तौसीफ ने बताया कि हम लोगों को धान क्रय का 67 प्रतिशत चावल सरकार को देना होता है। इतना चावल निकलता ही नहीं है। जिससे हम लोगों को घाटा हो रहा है।
राइस मिलर हुकुम अग्रवाल ने बताया कि धान कुटाई से लेकर लेबर चार्ज तक हम लोगों को अपने पास से देना पड़ रहा है। ये खर्चे नगद होते हैं, लेकिन हमें भुगतान काफी लेट मिलता है।
राइस मिलर आशीष अग्रवाल ने बताया कि राइस मिलर का करोड़ों रुपए सरकारी क्रय एजेंसियों पर बकाया है। कई बार इसके लिए रिमाइंडर भेजा जाता है, लेकिन भुगतान नहीं हो रहा है।
जितेंद्र गुप्ता ने बताया कि किसी भी सामान को खरीदने और बेचने का काम व्यवसाईयों का होता है। लेकिन हमारे यहां धान की खरीद सरकारी एजेंसियां करती हैं। इससे बेहतर होगा कि व्यापारियों को किसानों से धान खरीदने की अनुमति दी जाए और इसकी निगरानी सरकारी एजेंसी करें।
राइस मिलर खलीक अहमद ने कहा कि धान खरीद का जो पैसा होता है वह हमें सरकारी एजेंसियों के जरिए मिलता है। अगर सरकार कोई ऐसी व्यवस्था बनाए कि हमारा पेमेंट सीधा हमारे खातों में हर महीने भेजा जाए, तो इससे हम लोग बैंकों से लिया पैसा भी अदा कर सकेंगे और स्टाफ को भी सैलरी देने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
राइस मिलर सुरेंद्र सिंह अजमानी का कहना है कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में धान खरीद नीति बहुत ही पारदर्शी है। साथ ही उनके यहां जो धान खरीद होती है उसकी क्वालिटी चेक की जाती है। जिससे कुटाई करने के बाद चावल की गुणवत्ता यहां की अपेक्षा काफी अच्छी रहती है। सरकारी एजेंसियों के जरिए जो हमें धन मिलता है उसकी गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं होती है कि हम सरकारी मांग के अनुरूप चावल उपलब्ध करा सकें।
राइस मिलर संतोष कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि जिस प्रकार का माल हमें सरकारी एजेंसियों से मिलता है, उससे 67 फीसदी चावल कोड करके देना मुमकिन ही नहीं होता। कैन आई मीट में सुधार करके रिकवरी कम से कम 63 फीसदी की जानी चाहिए।
राइस मिलर अमरजीत सिंह अजमानी ने बताया कि सरकार को क्रय नीति में संशोधन करने की जरूरत है। जब यहां संशोधन किया जाए तब किसान और मिलर्स को भी बुलाया जाए। उनके साथ बैठक की जाए। मिलर और किसान की समस्याएं समझते हुए क्रय की नीति में सुधार होना बहुत जरूरी है।
गोला के राइस मिलर रवि प्रकाश अग्रवाल का कहना है कि उन्हें जो भाड़ा मिलता है वह गोला तक मिलता है। गोला से लखीमपुर माल भिजवाने का भाड़ा राइस मिलर्स को नहीं दिया जाता है। भाड़े को उन्हें अपनी जेब से भरना पड़ता है।
गोला राइस मिलर राधेश्याम अग्रवाल ने बताया कि किसानों को अपनी धान की फसल सरकारी क्रय केंद्रों पर बेचने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। किसान को यह स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह अपनी फसल सरकारी केंद्रों पर बेचे या आढ़त पर।
गोला राइस मिलर घनश्याम अग्रवाल ने बताया कि क्रि नीति बने हुए या उसमें संशोधन किए हुए 44 साल बीत चुके हैं। क्रय नीति पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही है। आज भी हमें प्रति कुंतल धान कुटाई 10 रुपए के हिसाब से ही मिलता है। जबकि अगर मध्य्प्रदेश और छत्तीसगढ़ की बात करें तो वहां पर 150 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से धान कुटाई का रेट मिलता है। उद्योग बंधु की बैठक में हम लोग कई बार अपनी समस्याएं रखते हैं लेकिन उसका समाधान नहीं होता है।
समस्या:
- कृषि आधारित उद्योग होने के बाद भी रिआयत या मदद नहीं मिलती।
- सरकारी एजेंसियां समय पर भुगतान नहीं करतीं।
- सरकारी क्रय केंद्रों पर धान की रिकवरी का प्रतिशत तय नही है।
- राजापुर मंडी परिसर में मॉइश्चर मीटर तक नहीं है।
- बिजली यूनिट का रेट टैरिफ वर्किंग आवर में ज्यादा है।
-धान कुटाई का रेट सिर्फ 10 रुपए कुंटल है, जिससे नुकसान होता है।
समाधान:
- आढ़ती के जरिए धान खरीद कराई जाए।
- चावल कोड प्रतिशत 67 की जगह 63 प्रतिशत किया जाए।
- फसल खरीद 01 नवंबर से 31 मार्च तक किया जाए।
-राजापुर मंडी गेट पर मॉइश्चर मीटर लगे। मानक चेक होने के बाद ही मंडी में प्रवेश कराया जाए।
- क्रय केंद्रों पर भी धान से चावल का रिकवरी प्रतिशत तय हो।
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