Hindi NewsUttar-pradesh NewsLakhimpur-khiri NewsPharmacists Demand Relief from Work Pressure Amid Staff Shortages in Healthcare

बोले लखीमपुर खीरी: फार्मासिस्ट परेशान, समय से हो वेतन-एरियर का भुगतान

Lakhimpur-khiri News - स्वास्थ्य विभाग में फार्मासिस्टों की कमी और अतिरिक्त काम के बोझ के कारण उन्हें 18 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ रही है। कर्मचारियों ने रिक्त पदों को भरने और उनकी मांगों को सुनने के लिए सरकार से मदद की अपील...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखीमपुरखीरीWed, 5 March 2025 02:32 AM
share Share
Follow Us on
बोले लखीमपुर खीरी: फार्मासिस्ट परेशान, समय से हो वेतन-एरियर का भुगतान

स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सक के साथ ही अहम कड़ी माने जाते हैं फार्मासिस्ट जो मरीजों को दवा देते हैं। इसके साथ ही उन पर कई अन्य कामों का भी बोझ है। रिक्त पदों पर भर्ती न होने से उनको अतिरिक्त ड्यूटी करनी पड़ती है। हाल यह है इमरजेंसी में 18 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ रही है। फार्मासिस्टों को शिकायत है कि छह से आठ घंटे डयूटी के बाद अतिरिक्त काम करने के कोई भी चार्ज नहीं दिया जाता है। कई योजनाओं का उनको लाभ नहीं मिलता। जबकि ग्रामीण इलाके के तमाम अस्पताल उनके ही जिम्मे चल रहे हैं। हिन्दुस्तान से बातचीत में फार्मासिस्टों ने अपनी समस्याएं साझा कीं। सेहत के लिए जितना जरूरी चिकित्सकीय परामर्श है, उतना ही अहम है सही दवा मिलना। और मरीजों को सही दवा देने की जिम्मेदारी फार्मासिस्टों की है। मानव संसाधन की कमी से जूझ रहे स्वास्थ्य विभाग में अब फार्मासिस्ट सिर्फ मरीजों को दवा देने के काम तक ही सीमित नहीं है बल्कि कई जगह ग्रामीण अस्पताल ही उनके जिम्मे चल रहे हैं। जिला अस्पताल हो, महिला अस्पताल, पुलिस लाइन हॉस्पिटल, कोर्ट डिस्पेंसरी, पीएचसी, सीएचसी सब जगह इनकी बड़ी भूमिका है। बावजूद इसके उनके खाली पड़े पदों पर कोई नई भर्ती नहीं हो पा रही है। ऐसे में कई अस्पतालों में एक ही फार्मासिस्ट पर काम का दबाव है। कहीं उनके काम के घंटे निर्धारित नहीं है।

स्टाफ खासकर चिकित्सकों की कमी के चलते हाल यह है कि जिले की सीएचसी से लेकर पीएचसी पर एक-एक फार्मासिस्ट है जो अपनी पूरी डयूटी भी करता है और डाक्टरों की अनुपस्थित में मरीजों को भी देखता है। यही नहीं, अस्पतालों तक दवा पहुंचाना और उनका रखरखाव भी उनके कंधों पर ही है। कई बार उनको ही मुख्य अस्पताल से दवा लेकर पीएचसी तक जाना होता है। इन दौरान उनको कोई मदद नहीं मिल पाती। यही नहीं, फार्मासिस्टों की मदद के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी बहुत कम हैं।। गांवों के अस्पतालों में डॉक्टरों की तो ड्यूटी पूरी हो जाती है, क्योंकि डॉक्टर संविदा पर हैं, लेकिन फार्मासिस्टों की ड्यूटी चौबीस घंटे चलती रहती है।

स्टाफ की कमी से बढ़ रहा काम का दबाव

फार्मासिस्ट बताते हैं कि पद रिक्त हैं लेकिन उनको भरा नहीं जा रहा है। यदि रिक्त पड़े पदों को भर दिया जाए तो हम लोगों के कंधों से काम का भार कम हो जाएगा। उनकी मांग है कि जिले की सीएचसी और पीएचसी पर कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाए। इससे उनको काम करने में आसानी होगी। फार्मासिस्ट कहते हैं कि पीएचसी पर एक पद है जिसे दो करना चाहिए। वहीं सीएचसी पर तीन पद हैं, जिन्हें पांच किया जाए। इससे उन पर अतिरिक्त काम का बोझ नहीं होगा।

कोविड के दौरान निभाई अहम भूमिका

कोविड महामारी के दौरान फार्मासिस्ट और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने अहम भूमिका निभाई थी। वे बताते हैं कि जब संपूर्ण देश में लाकडाउन लगा था ऐसे में फार्मासिस्ट और स्वास्थ्य कर्मियों ने कड़ी मेहनत की। मरीजों को दवा वितरण से लेकर अन्य काम कर एक जिम्मेदार सिपाही होने का फर्ज निभाया। उस दौरान टीबी अस्पताल के कर्मचारी की कोविड से मौत भी हो गई थी। फार्मासिस्टों को मलाल है कि उस समय भी डॉक्टरों को तो पूरा सम्मान मिला, लेकिन उनके बाद काम करने वाले फार्मासिस्टों को न पहचान मिली और न ही सम्मान ही।

वेतन, एरियर इत्यादि का समय हो भुगतान

फार्मासिस्ट कहते हैं कि वेतन, एरियर इत्यादि का समय से भुगतान होना चाहिए। इससे उनको असुविधाओं का सामना न करना पड़े। कहतें हैं कि काम हम पूरी पारदर्शिता के साथ करते हैं, लेकिन जब हमारे वेतन, एरियर इत्यादि का भुगतान होना होता है तो लंबा समय लगता है। इससे हम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अपना काम छोड़कर कार्यालय के चक्कर काटने पड़ते हैं। कई बार इस बाबत शिकायत भी की गई लेकिन व्यवस्था नहीं सुधरी।

विभागीय स्तर पर बने कर्मचारी हेल्प डेस्क

फार्मासिस्ट एसोसिएशन के पदाधिकारी कहते हैं कि शासन स्तर पर उनसे सरकार सीधे बात करे। इससे वे अपनी लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को सामने रखे। वहीं जिला स्तर पर भी प्रशासन को इनसे सीधे बात कर इनकी परेशानियों और काम करने में आने वाली समस्याओं को सुनना चाहिए। इससे इनका मनोबल बढ़ेगा और अपना काम और बेहतर तरीके से कर पाएंगे। उनकी मांग है कि कर्मचारियों की समस्याओं को सुनने के लिए विभागीय स्तर पर हेल्प डेस्क बनाई जाए। यही नहीं, जिला प्रशासन भी किसान दिवस की तरह महीने में एक दिन कर्मचारी दिवस का आयोजन करे। जिसमें कर्मचारी अपनी मांगें रख सकें।

कर्मचारियों की मांग, बंद हो ठेका प्रथा

फार्मासिस्ट कहते हैं कि ठेका प्रथा बंद होनी चाहिए। इसमें इन कर्मचारियों का आर्थिक, मानसिक शोषण होता है। कर्मचारी कहते हैं कि संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया जाए। कर्मचारियों का साफ तौर पर कहना है कि हम लोग ठेका के प्रथा के खिलाफ हैं। इसे बंद किया जाए। कर्मचारी कहते हैं कि हमारे बुढ़ापे का सहारा पुरानी पेंशन बहाल की जाए। इससे हम लोगों का बुढ़ापा सही हो सके। हम पूरा जीवन स्वास्थ्य सेवाओं के तहत लोगों की सेवा में लगा रहे हैं लेकिन रिटायरमेंट के बाद हमारे बुढ़ापे का सहारा पुरानी पेंशन यदि नहीं बहाल की जाती है तो हम लोगों का जीवनयापन मुश्किल हो जाएगा।

शिकायतें:

1. कर्मचारियों की संख्या कम होने से काम का दबाव अधिक है।

2. फार्मासिस्ट की मदद करने के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की संख्या कम है।

3. जिले के तमाम ग्रामीण अस्पताल फार्मासिस्टों के भरोसे चल रहे हैं। वहां काम और ज्यादा हैं।

4. कई वर्षों से तैनात संविदा कर्मचारियों को नियमित नहीं किया गया है।

5. फार्मासिस्टों को अस्पताल के अलावा वीआईपी ड्यूटी भी करनी पड़ती है।

6. फार्मासिस्टों के वेतन, भत्तों का भुगतान समय से नहीं होता है।

सुझाव:

1. रिक्त पदों पर नई नियुक्तियां की जाएं।

2. संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाए।

3. ड्यूटी चार्ट के अनुसार शिफ्ट में काम लिया जाए।

4. ग्रेड पे 2800 रुपये से बढ़ाकर 4200 रुपये किया जाए।

5. फार्मासिस्ट पद नाम बदलकर फार्मेसी अधिकारी कहा जाए।

6. वेतन भत्तों का भुगतान समय से हो जिससे कार्यालय के चक्कर न काटने पड़ें।

हमारी भी सुनिए बात

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के जिला अध्यक्ष महंथ सिंह ने बताया कि अस्पतालों में कर्मचारियों की संख्या कम होने से काम का दबाव बहुत ज्यादा है। जो भी रिक्त पद हैं, उन पर भर्ती की जाए। आउटसोर्सिंग के माध्यम से भर्ती प्रक्रिया खत्म होनी चाहिए। फार्मासिस्टों के एरियर व अन्य बकाया का भुगतान भी समय से होना चाहिए। हम लोग ये मांग कई बार रख चुके हैं। - महंथ सिंह

डीपीआरए संघ के जिला अध्यक्ष एवं राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के जिला मंत्री परमानंद का कहना है कि लैब टेक्नीशियन हों या फार्मासिस्ट, स्टॉक मेंटीनेंस से लेकर दवा वितरण, भंडारण, रखरखाव सहित अस्पताल की अनेक जिम्मेदारियों को निभाता है। इनकी जिम्मेदारियां देखते हुए तत्काल ग्रेड पे 2800 रुपये से बढ़ाकर 4200 रुपये होना चाहिए। - परमानंद

महिला अस्पताल में तैनात फार्मासिस्ट इंद्र कुमार अवस्थी का कहना है कि फार्मासिस्टों पर अतिररिक्त जिम्मेदारी है। शहर और ग्रामीण दोनों जगह हमको निर्धारित घंटों से ज्यादा काम करना पड़ता है। विभाग को चाहिए, हमारे काम के तय घंटों से अधिक काम लेने पर भत्ता दिया जाए। - इंद्र कुमार

पुलिस लाइन अस्पताल के फार्मासिस्ट रघुवंश सिंह ने कहा कि शासन सीधे कर्मचारियों से संवाद कर दिक्कत समझे तभी उसका हल निकल पाएगा। जैसे किसान दिवस महीने में एक दिन होता है, उसी तरह से कर्मचारी दिवस भी आयोजित किया जाए। कर्मचारियों से सीधा संवाद होगा तो मामला बनेगा। - रघुवंश सिंह

महिला अस्पताल के फार्मासिस्ट अरुण कुमार सक्सेना का कहना है कि एक तो काम का दबाव बहुत है दूसरा ड्यूटी का कोई निर्धारित समय नहीं है। 24 घंटे में कभी भी हमें बुला लिया जाता है। अगर हमारी रात की ड्यूटी लगाई जाए तो अगले दिन छुट्टी दी जाए। हमको छुट्टी में भी काम करना पड़ता है। - अरुण कुमार

कोर्ट हॉस्पिटल के फार्मासिस्ट सज्जन गौड़ ने कहा कि जिला अस्पताल में दो और सीनियर लैब टेक्नीशियन की जरूरत है। जनपद के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर दो लैब टेक्नीशियन और सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर कम से कम एक लैब टेक्नीशियन की तैनाती होना जरूरी है, तभी फार्मासिस्टों पर काम का बोझ कम होगा। - सज्जन गौड़

महिला अस्पताल में तैनात फार्मासिस्ट लोकेश सिंह ने बताया कि एक निर्धारित समय के बाद हम लोगों को प्रशिक्षण देकर प्रमोशन दिया जाए। जिससे हमें नया काम सीखने और आगे बढ़ने का मौका मिल सके। हम लोगों के लिए जिला स्तर पर एक हेल्प डेस्क बनाई जानी चाहिए। - लोकेश सिंह

महिला अस्पताल के राघवेंद्र श्रीवास्तव ने कि लेबर एक्ट के तहत फार्मेसी की ड्यूटी 6 से 8 घंटे की है। अतिरिक्त ड्यूटी पर प्रतिकर अवकाश हो। हम लोगों को सातों दिन काम करना पड़ता है। अवकाश के दिन भी इमरजेंसी के नाम पर हमारी ड्यूटी लगाई जाती है। - राघवेंद्र श्रीवास्तव

महिला अस्पताल के फार्मासिस्ट मुमताज खान ने बताया कि फार्मासिस्ट का पद नाम बदलकर उन्हें फार्मेसी अधिकारी कह संबोधित किया जाना चाहिए। जैसे नर्सिंग में नर्स ऑफिसर कहा जाता है। इससे हमारे पद की गरिमा बढ़ेगी और जनता के मन में भी हमारे काम को लेकर सोच और नजरिया बदल सकेगा। - मुमताज खान

फार्मासिस्ट शादाब खान ने बताया कि चिकित्सा अधिकारी न होने पर फार्मासिस्ट ही मरीज देखते हैं। अन्य विभागीय काम भी हमें करने पड़ते हैं, लेकिन हमारे कार्य को छोटा करके आंका जाता है। ग्रामीण क्षेत्र के तमाम अस्पताल फार्मासिस्टों की वजह से ही चलते हैं। - शादाब खान

मोतीपुर जिला अस्पताल में तैनात फार्मासिस्ट सरिता गुप्ता ने बताया कि हमारे काम का समय निर्धारित होना चाहिए। फार्मासिस्ट का वेतनमान बढ़ाया जाए। उन्होंने बताया कि वेतन उच्चीकरण का प्रस्ताव 2014 को शासन में भेजा गया था जो आजतक पूरा नही हुआ। हम लोग इसकी राह देख रहे हैं। - सरिता गुप्ता

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें