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पंचायत सहायक: बैठने का नहीं स्थाई ठिकाना, मजदूरी से भी कम मेहनताना

Lakhimpur-khiri News - गांव में तैनात पंचायत सहायकों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें केवल 6000 रुपये मासिक मानदेय मिलता है, जो दिहाड़ी मजदूरों से भी कम है। पंचायत कार्यों के साथ ही अन्य विभागों का काम भी उन पर...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखीमपुरखीरीThu, 13 Feb 2025 02:10 PM
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पंचायत सहायक: बैठने का नहीं स्थाई ठिकाना, मजदूरी से भी कम मेहनताना

गांव की समस्याओं को दूर करने और प्रधान-सचिव की सहायता के लिए तैनात पंचायत सहायक खुद परेशानियों में घिरे हैं। कहीं उनके पास बैठनी की जगह नहीं तो कहीं काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। ग्राम पंचायत के साथ ही अन्य विभागों के काम भी उनके कंधे पर डाल दिए गए। परिवार की आईडी बनाने से लेकर खसरा-खतौनी से जुड़े काम करने पड़ रहे हैं। सबसे बड़ी परेशानी मानदेय को लेकर है जो दिहाड़ी मजदूरों से भी कम है। हिन्दुस्तान से पंचायत सहायकों ने अपनी समस्याओं पर बात की, अपनी परेशानी साझा की। ग्राम पंचायतों में तैनात पंचायत सहायकों का काम पंचायतों का लेखा जोखा तैयार करना है। प्रधान व सचिव की मदद करना और गांव की समस्याओं को दूर करना है। पर हजारों ग्रामीणों की समस्याओं को दूर करने का जिम्मा जिन पंचायत सहायकों पर है, वे खुद परेशानियों के मकड़जाल में उलझे हैं। जिले की ग्राम पंचायतों में तैनात पंचायत सहायक एकाउंटेंट-कम-डाटा एंट्री ऑपरेटर से लेकर सर्वे तक का काम कर रहे हैं। वैसे तो उनकी तैनाती पंचायत स्तर पर है, लेकिन अधिकारियों के आदेश पर वे दूसरे कामों में भी लगा दिए जाते हैं। कई जगह तो उनके पास बैठने तक की जगह नहीं है। महिला पंचायत सहायकों के सामने तो और भी दिक्कतें हैं।

पंचायत सहायक आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। पंचायत के अलावा अन्य सभी विभागों का काम भी उनसे लिया जा रहा है। फिर वह चाहे प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण सर्वे हो, फैमिली आईडी बनाने का काम हो, जाति-आय निवास, खसरा खतौनी, फार्मर रजिस्टर के तहत क्रय सर्वे इत्यादि काम उनसे कराए जा रहे हैं। उनको सिर्फ 6 हजार रुपये मासिक अल्प मानदेय मिलता है और महंगाई के दौर में इससे घर चलाना कठिन हो गया है। पंचायत सहायकों ने बताया कि जिले के अधिकांश ग्राम पंचायतों में अभी भी उनके मिनी सचिवालय की इमारत नहीं है। ऐसे में पंचायत सहायक स्कूलों में बैठकर अपने काम को कर रहें हैं। जिस स्थान पर वह बैठते हैं वहां से उनको पंचायत के मजरों में लोगों के घर-घर जाना पड़ता है। ऐसे में किराया भाड़ा, मोबाइल रिचार्ज इत्यादि मानदेय से ही करना पड़ता है।

कम मानदेय में घर का खर्च चलना मुश्किल

पंचायत सहायक कहते हैं कि उनको छह हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय मिलता है। उनका मानदेय इतना होना चाहिए जिससे कि उनका घर चल सके। पंचायत सहायक कहते हैं कि हम लोगों मानदेय से तो मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी अधिक है। हम लोग सिर्फ 6 हजार रुपये अल्प मानदेय में काम कर रहे हैं। इतने कम मानदेय में सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं। हम लोगों की सेवा नियमावली और मानदेय बढ़ जाए तो हम लोगों के जीवन में खुशहाली आ जाए। पंचायत सहायक कहते हैं कि पंचायत के ढेर सारे काम करने के बाद कोई अतिरिक्त कोई समय नहीं मिलता। जिससे हम अपनी आजीविका चलाने के लिए कोई और काम कर सके। यहां पर हमारा मानदेय इतना कम है कि बढ़ती महंगाई में घर का बोझ उठाना आसान नहीं है। हम लोग चाहते हैं कि सरकार हम लोगों के लिए भी समान कार्य समान वेतन लागू करके ग्रेड सी कर्मचारी घोषित कर दे।

पंचायतों में इंटरनेट, कनेक्टिविटी की सुविधा बदहाल

पंचायत सहायक कहते हैं कि हम लोग स्वयं के खर्चे व मोबाइल फोन से इंटरनेट प्रयोग कर विभागीय कार्यों को करते हैं। समस्या उन क्षेत्रों में ज्यादा होती है जहां पर सर्वर नहीं मिलता। प्रशासन की ओर कोई इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं मिलती है। पंचायतों में खराब इंटरनेट व्यवस्था भी इनके काम में आड़े आ रही है। पंचायत सहायक स्वयं के खर्चे पर नेट की व्यवस्था करते हैं। जबकि सरकार ने पंचायतों के मिनी सचिवालयों को हाइटेक बनाने के लिए गांव-गांव तक भारत नेट परियोजना के तहत वाईफाई की सुविधा करवाई है। लेकिन पंचायत सहायक बताते हैं कि अधिकांश ग्राम पंचातयों में इंटर नेट कनेक्टिविटी के लिए लगाए गए राउटर बंद पड़े हैं। अधिकांश जगह यह व्यवस्था है ही नहीं।

दूसरे कामों का बोझ भी कंधों पर

पंचायत सहायक कहते हैं कि हम लोगों के कंधे पर पहले से ही पंचायतों के 50 से अधिक काम हैं। इनमें परिवार रजिस्टर की नकल, जन्म एवं मृत्यु प्रमाण पत्र, व्यक्तिगत शौचालय के आवेदन, सत्यापन, पंचायत पुरस्कार के आवेदन, राशन कार्ड के आवेदन का सत्यापन, राशन कार्ड संशोधन, राशन कार्ड नवीनीकरण समेत कई काम हैं। इसके बाद भी अन्य विभागों के काम करने की जिम्मेदारी भी हमको दे दी जाती है। अधिकारी उनको कई तरह के सर्वे में लगा देते हैं। उनकी मांग है कि हम लोगों से सिर्फ पंचायत के ही कार्य लिए जाए, अन्य विभागों के नहीं।

स्टेशनरी का खर्च तक नहीं मिलता

पंचायत सहायक कहते हैं हर बार स्टेशनरी और नेट के नाम पर भारी भरकम रकम निकाली जाती है। लेकिन हम लोगों को कोई सुविधा नहीं मिलती है। पंचायत सहायक चाहत हैं कि स्टेशनरी और नेट के खर्च के लिए आई धनराशि उन लोगों को मिले। इससे हम लोगों के अतिरिक्त खर्चे बच सकेंगे। इसके अलावा ग्राम पंचायतों तक पहुंचने के लिए उनको कई किलोमीटर बाइक चलानी होती है। इसका खर्च भी उनको ही वहन करना पड़ता है। कम से कम सरकार को वाहन भत्ता तो देना ही चाहिए।

अनुबंध प्रक्रिया समाप्त करने की मांग

पंचायत सहायक कहते हैं कि हम लोगों की अनुबंध प्रक्रिया समाप्त की जाए और हम लोगों को स्थाई किया जाए। साथ ही हम लोगों का मानदेय डीबीटी के माध्यम से सीधे उनके खाते में भेजा जाए। इससे प्रधान व सचिवों पर इनकी निर्भता खत्म होगी। इससे उनको कार्य करने में और आसानी होगी। पंचायत सहायक कहते हैं कि ग्राम सभा में हुए कार्यों का भुगतान बाहरी व्यक्तियों से न कराया जाए। समस्त भुगतान पंचायत सहायकों से ही कराया जाए। साथ ही समय-समय पर इसकी समीक्षा कराई जाए। इससे कार्यों में पारदर्शिता आएगी। इससे पंचायतों का सर्वांगीण विकास हो सके।

शिकायतें

1. अल्प मानदेय है, वो भी प्रतिमाह नहीं मिलता है।

2. मोबाइल/इंटरनेट का खर्चा भी पंचायत सहायकों को ही उठाना पड़ता है।

3. कार्य की कोई नियमावली नहीं है। पंचायती राज विभाग के अलावा अन्य विभागों के काम भी दे दिए जाते हैं।

4-पंचायत सहायकों को कोई भत्ता नहीं दिया जा रहा है। पेट्रोल से लेकर नेट तक का खर्च जेब पर पड़ रहा है।

5. ऑफिस के काम के लिए रखे गए लेकिन फील्ड का काम भी करवाया जाता है।

सुझाव

1 - कार्य के अनुरूप वेतन बढ़ाया जाए। कम से कम 26 हजार रुपये मानदेय हो।

2 - डीबीटी के माध्यम से मानदेय का भुगतान हो।

3 - पंचायती राज विभाग से संबंधित कार्य ही करवाए जाएं।

4 - अनुबंध प्रणाली समाप्त कर राज्य कर्मचारी घोषित किया जाए।

5 - मोबाइल/वाई फाई के रिचार्ज के पैसे दिए जाएं।

हमारी भी सुनिए

पंचायत सहायक नितेश कुमार ने बताया कि हम लोगों को समय से मानदेय नहीं मिलता है। हमें हर महीने मानदेय मिलना चाहिए, ताकि हमारा खर्चा चल सके। ये बेहद जरूरी है।

पंचायत सहायक रंजीत वर्मा ने कहा कि हमें बहुत ही कम मानदेय मिलता है। मात्र 6 हजार रुपये प्रतिमाह के मानदेय में हमें अपना जीवन यापन करना पड़ रहा है। ये मजदूर की दिहाड़ी जितना भी नहीं है।

पंचायत सहायक अभिषेक कुमार ने बताया कि हम लोगों की तैनाती पंचायत राज विभाग में है, लेकिन हम लोगों से अन्य विभागों का काम भी कराया जा रहा है। तमाम सर्वे में लगा दिया जाता है।

आशीष चौधरी ने बताया कि हमें मनरेगा मजदूर से भी कम मानदेय दिया जा रहा है। हम लोगों का मानदेय बढ़ना चाहिए। आधे से ज्यादा काम ऑनलाइन होता है, जिसके लिए हम लोग अपने मोबाइल से कम चलाते हैं। इसका रिचार्ज भी हम ही लोग कराते हैं।

पंचायत सहायक सोनू प्रजापति ने कहा कि हमारा मानदेय ग्राम निधि के खाते से दिया जाता है। जिसके लिए कई बार दौड़ना पड़ता है। अगर डीबीटी के माध्यम से मानदेय मिले तो अच्छा रहेगा।

सलमान अली ने बताया कि हम लोगों से बीएलओ, जियो टैगिंग के काम भी कराई जा रहे हैं। इसके लिए अलग से कोई भुगतान नहीं दिया जाता है। हम लोगों से अतिरिक्त काम करवाए जाएं तो उसका भुगतान भी किया जाए।

इरम फातिमा कहती हैं कि अगस्त 2022 में आदेश आया था कि जहां रोजगार सेवक नहीं है वहां पंचायत सहायकों को समाविष्ट कर दिया जाए। लेकिन अब तक इसको लागू नहीं किया गया है। इस पर ध्यान दिया जाए।

पंचायत सहायक रूबी ने बताया कि कई बार लोग शराब पीकर काम करवाने आ जाते हैं। जिससे हम लोगों को काफी परेशानी होती है, साथ ही असुरक्षा महसूस होती है। पंचायत भवन में सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरा तक नही है।

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