सफाई कर्मचारी: स्वास्थ्य न सुरक्षा की गारंटी, मानदेय भी कम
Lakhimpur-khiri News - लखीमपुर शहर के सफाई कर्मचारी अपनी समस्याओं को लेकर चिंतित हैं। उन्हें कम मानदेय और समय पर भुगतान न मिलने की शिकायत है। आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को सफाई के लिए आवश्यक उपकरण भी नगर पालिका द्वारा नहीं दिए...
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शहर को गंदगी मुक्त बनाने, चमकाने की जिम्मेदारी नगर पालिका के सफाई कर्मचारियों के कंधे पर है। चौक-चौराहों से लेकर सड़कों, गली-मोहल्लों तक कूड़ा साफ करने वाले सफाई कर्मचारी उपेक्षा के शिकार हैं। मानदेय से लेकर सुरक्षा तक और नौकरी के स्थायित्व से लेकर छंटनी के डर तक, उनकी कई परेशानियां हैं। इनमें से ज्यादातर सफाई कर्मचारी आउटसोर्सिंग के माध्यम से काम करते हैं। लखीमपुर शहर में कुल 30 वार्ड हैं। इसमें लगभग 501 कर्मचारी कार्यरत है। इनमें से 300 कर्मचारी आउटसोर्सिंग के तहत सफाई कार्य करते हैं। इसके अलावा 100 संविदा कर्मचारी और 101 नियमित कर्मचारी भी काम करते हैं। सबसे ज्यादा संख्या में आउटसोर्सिंग कर्मचारी हैं। यह वो लोग हैं जो पूरे शहर की सफाई में मेहनत से जुटे रहते हैं, फिर भी उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया जाता है। आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का कहना है कि उनका मानदेय उनकी मेहनत के हिसाब से बहुत कम है। जो मानदेय है वह कभी समय पर नहीं मिलता। कभी कभी तो मानदेय मिलते मिलते आधा माह तक बीत जाता है। यही नहीं, कर्मचारियों का कहना है कि उनके लिए इस जोखिम भरे काम में किसी भी प्रकार की सुरक्षा या उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते। छोटी छोटी नालियों से लेकर बड़े बड़े नालों में अंदर तक जाकर सफाई करने वाले इन कर्मचारियों की सेहत की देखभाल को लेकर कोई सुविधा नहीं है।
शहर की सफाई करने वाले ठेका कर्मचारियों से जब ‘हिन्दुस्तान ने बात की तो उनकी आंखों में परेशानी साफ दिखी। ठेका कर्मचारियों का कहना था कि लंबी ड्यूटी करने के बाद भी आज तक उनका मानदेय न के बराबर है। जो मानदेय मिलता है, उससे घर का खर्च चलना बहुत मुश्किल है। इन ठेका कर्मचारियों में कई ऐसे कर्मचारी हैं जो लंबे समय से काम कर रहे हैं। इनको यही आस है कि शायद कभी इन्हें भी संविदा और नियमित कर्मचारियों की तरह मानदेय मिल सके। इस आस में कई ऐसे कर्मचारी है जो 10 से लेकर 15 सालों से ठेका कर्मचारी के रूप में काम कर रहे हैं।
समय पर नहीं मिल पाता है मानदेय
आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को एक बड़ी समस्या मानदेय मिलने में देरी की है। कभी उनका मानदेय महीने की पांच तारीख को आता है, तो कभी दस या पंद्रह तारीख तक उनका भुगतान नहीं हो पाता। इस देरी की वजह से इन कर्मचारियों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वेतन समय पर न मिलने से घर चलाना कठिन हो जाता है और उनका परिवार प्रभावित होता है। उनका कहना है कि हम लोग परंपरागत तौर पर यही काम करते हैं। आय का दूसरा कोई साधन नहीं है। ऐसे में मानदेय में देरी का बड़ा असर पड़ता है। हमको मानदेय बहुत कम मिलता है, वह भी समय पर न आए तो दुख होता है। उस समय उधार मांगकर किसी तरह काम चलाने की नौबत आ जाती है।
झाड़ू तक नहीं देता नगर पालिका, खुद खरीदते हैं
कर्मचारियों का कहना है कि एक और गंभीर समस्या यह है कि इन सफाई के लिए आवश्यक उपकरणों की कमी है। कर्मचारियों को सामान्य उपकरण जैसे झाड़ू स्वयं खरीदनी पड़ती है। नगर पालिका उनको झाड़ू तक नहीं देता है। बाकी उपकरणों की तो बात ही क्या की जाए। कर्मचारियों का कहना है कि नगर पालिका उनकी ड्यूटी तो लगा देती है, लेकिन उपकरण न होने से सफाई में दिक्कत आती है। उनके पास न मास्क हैं, न ग्लब्स हैं और न ही अन्य ऐसे उपकरण, जिससे नाले में बिना घुसे सफाई कर सकें।
समान काम, असमान वेतन की समस्या
आउटसोर्सिंग कर्मचारी, नियमित और संविदा कर्मचारियों के बराबर काम करते हैं। कई बार तो रविवार जैसी छुट्टी के दिन भी उन्हें सफाई का काम करना पड़ता है। बावजूद इसके उन्हें समान वेतन, सुविधाएं और सम्मान नहीं मिलते। यह असमानता उनके मनोबल को प्रभावित करती है और वे खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। वीआईपी के आने पर सबसे ज्यादा काम इन्हीं को करना पड़ता है। इसका कोई अतिरिक्त भत्ता भी नहीं मिलता है। नगर पालिका के स्थायी कर्मचारियों को वेतन के अलावा भी अन्य सुविधाएं मिलती हैं। कर्मचारियों का यह भी कहना है कि वार्ड और आबादी के हिसाब से कर्मचारी कम हैं। ऐसे में उन पर काम का बोझ अधिक रहता है। काफी कोशिश के बाद भी सभी वार्डों में साफ-सफाई नहीं हो पाती है।
सफाई करते-करते खुद हो रहे बीमार
आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को अपनी सुरक्षा के लिए कोई उपयुक्त उपकरण नहीं मिलते। वे सफाई करते समय केवल एक साधारण जालीनुमा कोट पहनते हैं, जो न तो ठंड से बचाव करता है और न ही शारीरिक सुरक्षा प्रदान करता है। जाड़े के मौसम में उनकी सेहत को खतरा अधिक होता है। उनको कोई गर्म कपड़ा या सुरक्षा किट नहीं मिलती। इन कर्मचारियों को अपने स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता करते हुए काम करना पड़ता है, लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिलती। नगर पालिका से कई बार वे इस बात की मांग कर चुके हैं। कर्मचारियों का कहना है कि जिले की बाकी नगर पालिकाओं के कर्मचारियों को कई बार ट्रैक शूट, छाता आदि मिल जाता है। पर यहां वह भी नहीं मिलता है। इसके लिए जब भी अधिकारियों से मांग की जाती है तो उनको बस आश्वासन ही मिलता है।
समय पर हो पीएफ का भुगतान
नगर पालिका परिषद में ठेके पर कार्य करने वाले सफाई कर्मचारियों ने पीएफ कटौती और उसके भुगतान का मुद्दा भी उठाया। उनका कहना है कि मासिक के हिसाब से उनका 9 हजार रुपये के करीब वेतन बनता है। आरोप लगाया कि इसमें से पीएफ व टैक्स में कटने की बात बताई जाती है। पहले भी सफाई कर्मी इस मुद्दे पर कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं। उनका कहना है कि वेतन से काटा गया टैक्स व पीएफ का हिसाब मांगा जाता है तो इसका ब्यौरा नहीं दिया जाता है। उनका पैसा कितना कटा है और कैसे मिलेगा, इसके बारे में भी जानकारी नहीं दी जाती। इस वजह से कई बार उन्होंने काम बंद कर आंदोलन भी किया है। पर यह समस्या खत्म नहीं होती।
सरकारी योजनाओं का नहीं मिल पाता लाभ
सफाई कर्मचारियों का कहना है कि वे ठेके पर इतने कम पैसे में काम करते हैं कि घर चलाना मुश्किल है। फिर भी सरकारी योजनाओं में उनको लाभ नहीं मिल पाता। उनको प्राथमिक तौर पर इसमें शामिल किया जाना चाहिए। बुजुर्ग हो चुके ज्यादातर सफाई कर्मियों के पास आयुष्मान कार्ड नहीं है। जिनके पास हैं भी, उनको बहुत चक्कर काटने पड़े हैं। कर्मचारियों की मांग है कि नगर पालिका की ओर से सरकारी योजनाओं को लेकर शिविर लगाया जाए। इसके अलावा इन कर्मचारियों के स्वास्थ्य का नियमित परीक्षण होना चाहिए। वजह है कि गंदगी के बीच काम करते हुए ये लोग कई दफा बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। उनको पता भी नहीं लगता कि कौन सी बीमारी जकड़ रही है।
दूसरा काम मिलने में होती है दिक्कत
सफाई कर्मचारियों का कहना है कि उनको जल्दी कोई दूसरा काम नहीं मिलता। वे अगर अपना कोई दूसरा काम-धंधा करना चाहें भी तो उनके पास न तो पूंजी है और न ही कोई सहारा ही। दुकान तक खोलने की पूंजी नहीं बन पाती। ठेका कर्मचारियों का कहना है कि कम मानदेय के बाद भी हमको यही काम करना पड़ता है। कई बार तो परिवार के लोगों को भी मजबूरी में इसमें लगाना पड़ जाता है। कर्मचारियों की मांग है कि सरकारी लोन आदि में नगर पालिका के अधिकारी व जिम्मेदार मदद करें तो कुछ बेहतर जिंदगी हो सकती है।
शिकायतें:
-ठेका कर्मचारियों को सफाई कार्य के बदले जो मानदेय मिलता है, वह बहुत कम है, जिससे उनका परिवार चलाना कठिन हो जाता है।
-कर्मचारियों का वेतन अक्सर समय पर नहीं मिलता। कभी 5 तारीख, कभी 10 तारीख, और कभी 15 तारीख तक वेतन का इंतजार करना पड़ता है।
-ठेका कर्मचारियों को सफाई के लिए आवश्यक उपकरण, जैसे झाड़ू, नगर पालिका द्वारा नहीं दिए जाते, जिससे उन्हें अपनी खुद की झाड़ू लानी पड़ती है।
-कर्मचारियों को किसी प्रकार की सुरक्षा किट, जैसे दस्ताने, मास्क या जूते नहीं दिए जाते। उन्हें सिर्फ एक जालीनुमा कोट ही मिलता है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नहीं होता।
-कर्मचारियों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। उनके पास न आयुष्मान कार्ड है और न ही बुढापे के लिए पेंशन ही।
सुझाव:
-कर्मचारियों का मानदेय बढ़ाया जाए, ताकि वे अपने परिवार का पालन-पोषण आराम से कर सकें और उनका जीवन स्तर बेहतर हो सके।
-कर्मचारियों का वेतन समय पर दिया जाए, ताकि वे मानसिक शांति के साथ अपना काम कर सकें और उनके जीवन में कोई आर्थिक परेशानी न हो।
-नगर पालिका को कर्मचारियों को उचित सफाई उपकरण उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि वे अपना काम बेहतर तरीके से कर सकें और उनके पास सफाई के लिए जरूरी संसाधन हों।
-कर्मचारियों को सुरक्षा के लिए दस्ताने, मास्क, जूते, और अन्य सुरक्षा उपकरण दिए जाएं, ताकि वे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बच सकें।
-कर्मचारियों के लिए बेहतर कार्य घंटे और छुट्टियों की व्यवस्था की जाए, ताकि उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहे और वे अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभा सकें।
हमारी भी सुनिए
8 घंटे ड्यूटी करते है। कभी कभी रविवार को भी काम करना पड़ता है। झाड़ू भी अपने पास से खरीदते है। ऐसे में इतने कम मानदेय में गुजारा बहुत मुश्किल है। वर्दी के नाम पर एक जालीनुमा कोटी पहचान के लिए मिलती है। बरसात हो या सर्दी में अपने बचाव का इंतजाम खुद से करते है।- अमित कुमार
हम लोगों को मानदेय कभी समय से नहीं मिलता। कभी-कभी तो मानदेय आते आते आधा माह गुजर जाता है। मानदेय समय से न मिलने पर परिवार का खर्चा संभालना मुश्किल होता है। उधार मांग कर काम चलता है। जबकि हम ड्यूटी पूरी देते हैं। -राहुल
समय से मानदेय न मिलना सबसे बड़ी समस्या है। कहने को तो हम सब नियमित और संविदा के बराबर काम करते है पर हमारा मानदेय 10 हजार से भी कम है। ऐसे में माह के अंत तक घर का खर्चा गुजारा मुश्किल पड़ जाता है। -गोविंदा
हम काम तो पूरी इमानदारी से करते है पर हमें कभी बोनस आदि का लाभ नहीं मिल पाता। मानदेय भी देरी से आता है। हमारा मानदेय बढ़ना चाहिए। पीएफ की जो कटौती होती है, उसके बारे में भी हम लोगों को नहीं बताया जाता। -कुसुम, सफाई कर्मचारी
दो वर्ष से ठेका कर्मचारी के रूप में काम कर रहे है। त्यौहार को छोड़कर कभी भी मानदेय समय पर नहीं आता। मानदेय समय पर आए तो आधी दिक्कतें ऐसे ही कम हो जाए। मानदेय भी बहुत कम है। हम लोगों को कोई सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है। -विशाल, ठेका सफाई कर्मचारी
ठेका कर्मचारी 9 हजार में जो काम कर रहा है, उतना काम ही संविदा और नियमित कर्मचारी भी करते है। हमारा मानदेय बढ़ना चाहिए। कम से कम इतना तो मिले ही जिससे घर का गुजारा ठीक से हो सके। इतने कम मानदेय में आखिर हम कैसे बच्चों और परिवार का खर्चा चलाए। -विनोद, ठेका सफाई कर्मचारी
12 सालों से ठेका कर्मचारी के रूप में काम कर रहे है। आजकल के महंगाई के दौर में 9 हजार में होता ही क्या है। इतने वर्षों से काम करने के बाद भी हम वही के वही है। सबसे बड़ी समस्या कम मानदेय की है। गुजारा करना मुश्किल है। - रजत वाल्मीकि
हमारी कंपनिया बदल जाती है। ईपीएफ खाता मेंटेन नहीं होता। पुरानी कंपनी ने लगभग चार सालों का फंड खाते में जमा नहीं किया। जहां एक ओर इतना कम मानदेय हम लोगों के लिए मुसीबत बना हुआ है। वही दूसरी ओर हमारे भविष्य के लिए जुड़ने वाला पैसा भी हमारे खाते में मेंटेन नहीं होता। इस समस्या का समाधान होना चाहिए -अजय
हम लोगों को काफी दूर से आकर काम करना पड़ता है। जरूरत पड़ने पर भी अवकाश नहीं मिल पाता। मानदेय में वृद्धि भी नहीं हो पा रही है। मानदेय समय से न मिलने पर परिवार का खर्चा संभालना मुश्किल होता है। हमारी समस्याओं पर नगर पालिका को थोड़ा ध्यान देना चाहिए, जिससे हम लोगों का भी कुछ भला हो सके। - प्रदीप
नगर पालिका की ओर से सरकारी योजनाओं को लेकर शिविर लगाया जाए। इसके अलावा इन कर्मचारियों के स्वास्थ्य का नियमित परीक्षण होना चाहिए। वजह है कि गंदगी के बीच काम करते हुए ये लोग कई दफा बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। उनको पता भी नहीं लगता कि कौन सी बीमारी जकड़ रही है। -रमेश
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