अब नाम से पहचाने जाएंगे दुधवा टाइगर रिजर्व के बाघ
दुधवा में गैंडों के नाम होते हैं और पालतू हाथियों के भी। पर बाघों का नामकरण नहीं होता। पहली बार पर्यटकों ने दुधवा के एक बाघ को नाम दिया है। अफसरों...
पलिया कलां-खीरी।
दुधवा में गैंडों के नाम होते हैं और पालतू हाथियों के भी। पर बाघों का नामकरण नहीं होता। पहली बार पर्यटकों ने दुधवा के एक बाघ को नाम दिया है। अफसरों ने भी उस पर मुहर लगा दी। अब पर्यटकों के सुझाव पर टेरीटरी के हिसाब से दोस्ताना रवैया वाले बाघों के नाम रखे जाएंगे।
दुधवा की पहचान उसके बाघ हैं। पार्क प्रशासन ने बाघों की ब्रांडिंग का एक और तरीका खोजा है। अब पर्यटकों के सुझाव पर बाघों का नामकरण हो सकेगा। इस सिलसिले की शुरुआत हो चुकी है। दुधवा के वाटर होल के पास अक्सर दिखने वाले नर वयस्क बाघ का नाम पर्यटकों ने मेल चार्जर रख दिया। मेल चार्जर नाम रखने के पीछे उसकी फुर्ती और पर्यटकों से दोस्ताना रवैया है। अब अफसर भी उसे इसी नाम से जानते हैं। पिछले दिनों यहां के एफडी रहे और दिल्ली चिड़ियाघर के मौजूदा निदेशक ने बाघों के नाम रखने की प्लानिंग का प्रस्ताव रखा था। तब वह योजना दुधवा किशनपुर सेंच्युरी तक सीमित थी। अब पार्क प्रशासन फिर से दुधवा के बाघों का नाम रखने की योजना पर काम कर रहा है। पर्यटकों के सुझाव के आधार पर बाघ का नाम रख दिया जाएगा। इसके लिए पर्यटक विजिटर बुक पर अनुभव के साथ बाघों के नाम या अन्य बातों पर सुझाव दे सकेंगे। तैयारी है कि जंगल के कुछ क्षेत्रों को बाघों की टेरीटरी के नाम से जाना जाए। इससे बाघों और पर्यटकों के बीच दोस्ती और बढ़ सकेगी।
एक थी तारा, एक है छेदीलाल, रेनू
-बाघों के नामकरण की कहानी 1976 से जुड़ती है। दुधवा के संस्थापकों में से एक पद्म श्री विली अर्जन सिंह की बाघिन का नाम तारा था। कहा जाता है कि तारा विदेश से लाई गई थी और विली अर्जन सिंह की देखरेख में रहती थी। बाद में तारा आदमखोर हो गई और उसे मारना पड़ा। इसके बाद किसी बाघ को नाम नहीं मिला। छह साल पहले बफर जोन की मैलानी रेंज में एक और बाघ आदमखोर हो गया। करीब 13 वर्ष की उम्र का आदखोर बाघ छेदीलाल अगस्त 2016 में मैलानी खीरी के छेदीपुर गांव से रेस्क्यू कर लखनऊ लाया गया था। छेदीपुर गांव से पकड़े जाने की वजह से इसका नाम छेदीलाल रख दिया गया। 2018 में मैलानी से एक और बाघिन लखनऊ चिड़ियाघर भेजी गई। वहां उसे रेनू नाम मिला। वहीं 2009 में लखीमपुर के किशनपुर सेंचुरी से रेस्क्यू कर लखनऊ लाया गया था। पांच लोगों को मारने वाले इस बाघ का चिड़ियाघर में नाम पड़ गया किशन। सभी बाघ, बाघिन के नाम लखनऊ पहुंचकर दिए गए हैं।
बाघों के नाम रखने की परम्परा नहीं रही है। वजह है कि ज्यादातर बाघ अपना क्षेत्र बदल लेते हैं। जो बाघ किसी निश्चित ठिकाने पर होते हैं, उन्हीं के नाम पर्यटक सुझाते हैं। उसे हम दर्ज कर रहे हैं।
मनोन सोनकर, डीडी दुधवा
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