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बोले लखीमपुर खीरी: समय से भुगतान चाहते हैं मनरेगा मजदूर

Lakhimpur-khiri News - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को 90 दिन का काम तो मिलता है, लेकिन समय पर भुगतान न मिलने और कम मजदूरी के कारण वे योजना से किनारा कर रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखीमपुरखीरीSat, 15 March 2025 11:29 PM
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बोले लखीमपुर खीरी: समय से भुगतान चाहते हैं मनरेगा मजदूर

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरों को काम तो 90 दिन का मिल रहा है। लेकिन इनका समय से भुगतान न होने के कारण यह लोग इस योजना से किनारा कर रहें हैं। वहीं एक कारण कम मजदूरी भी है। मजदूरों का कहना है कि उनको समय से मजदूरी नहीं मिल पा रही है। यही नहीं, मनरेगा में साल भर रोजगार नहीं मिल पाता। ऐसे में उनको दूसरी जगह भी काम करना पड़ता है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से मनरेगा मजदूरों ने अपनी समस्याएं बताई। जिले के ग्रामीण इलाकों में कई लोग पहले ही काम की तलाश में शहर छोड़ चुके हैं। अब ऐसी स्थिति है कि जो लोग गांवों पर रहकर मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं। वे सड़क की पटाई से लेकर तमाम काम कर रहे हैं, जिससे गांव की सूरत बदल सके। पर मनरेगा में काम कर रहे इन मजदूरों के सामने तमाम समस्याएं हैं। उन्हें भी मजदूरी के बिना जीवन यापन करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मनरेगा मजदूर बताते हैं कि जाब कार्ड भी बना है। इसमें दैनिक मजदूरी करीब 237 रुपये है, जबकि बाहर मजदूरी का रेट करीब 4 से 450 सौ रूपये है। ऐसी महंगाई के दौर में मनरेगा मजदूरी उंट के मुंह में जीरा वाली कहावत की तरह लग रही है। मनरेगा मजदूर कहते हैं कि उनको 60 प्रतिशत कच्चा काम करना पड़ता है। इसके बाद ही उनको पक्के कार्यों में शामिल किया जाता है। काम तो हो जाता है, लेकिन समय से भुगतान नहीं मिल पाता ऐसे में घर चलाने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। यदि समय रहते भुगतान मिलता रहे तो हम लोगों को थोड़ी राहत मिलेगी। मजदूरों ने आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान को अपनी समस्याएं बताई। मजदूरों ने बताया कि मजदूरों की सुबह शाम ऑनलाइन हाजिरी मेट या रोजगार सेवकों को लगानी पड़ती है। मजदूर, कार्यस्थल पर अपनी मौजूदगी और किए गए काम को साबित करने के लिए भी कोशिश करनी पड़ती है। मजदूरों के लिए तमाम शर्तों को पूरा करना बहुत ही मुश्किल होता है और इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि ग्रामीण भारत के एक बड़े हिस्से में इंटरनेट उपलब्ध ही नहीं है।

नवंबर माह तक लटका रहता है भुगतान

मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों को नवम्बर महीने से मजदूरी नहीं मिली है। बताते हैं कि मजदूरी भुगतान का बजट आने लगा है लेकिन कर्मियों का मानदेय अब तक नहीं मिला है। इससे कर्मचारी आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। बताते चलें कि नवम्बर महीने से बजट न मिलने के कारण मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी नहीं मिली है। इससे मजदूरों को परेशानी हो रही है। बताया जाता है कि अब मजदूरी भुगतान के लिए बजट आने लगा है। मनरेगा मजदूर बताते हैं कि रोजी रोटी के लिए वह मनरेगा में मजदूरी करते हैं, उधर इनसे काम तो ले लिया जाता है, लेकिन जब भुगतान लेने की नौबत आती है तो तीन से चार माह बीत जाते हैं लेकिन खाते में पैसा ही नहीं पहुंचता। ऐसे में घर चलाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

दैनिक मजदूरी बढ़े तो मिले राहत

मनरेगा मजदूर कहते हैं कि हम लोग गांव के विकास के लिए काम करते हैं। सबसे कम मजदूरी हम लोगों की है। मनरेगा दैनिक मजदूरी करीब 237 रूपये है जबकि इसके उल्टे बाहर 4 सौ रूपये से लेकर 5 सौ रूपये तक है। महंगाई को देखते हुए हम लोगों की दैनिक मजदूरी कम से कम 400 रूपये होनी चाहिए। इससे हम लोगों के घर परिवार अच्छे से चल सकें। मनरेगा मजदूर कहते हैं कि 100 दिन रोजगार की गारंटी देने वाली बात काफी हद तक सही साबित नहीं होती। क्योंकि बात 100 दिन का रोजगार गांव में ही उपलब्ध करवाने का दावा किया जाता है, लेकिन काम मुश्किल से 15 से 20 दिन का ही मिलता है। इसीलिए लोग बाहर काम की तलाश में जाते हैं। मनरेगा मजदूर कहते हैं कि रोजगार उपलब्ध करवाने की जगह पूरे साल में प्रत्येक दिन रोजगार उपलब्ध करवाने की बात रखी जाए। साथ ही, मजदूरी दर भी बढ़ाई जाए। इससे हम लोगों को अपना गांव घर छोड़कर चौराहे या अन्य प्रदेशों में मजूदरी करनेहा न जाना पड़े।

नहीं मिलता कभी कोई प्रशिक्षण

मनरेगा मजदूर बताते हैं कि कोई काम करने से पहले प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। लेकिन यहां पर हम लोगों को किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। यदि हम लोगों को योजनाओं और कार्यक्रमों में बारे में जानकारी दे दी जाए तो हम लोग अपने काम को और अच्छे से कर पाए। हा प्रत्येक माह के दूसरे बुधवार को महात्मा गांधी नरेगा निगरानी दिवस का आयोजन किया जाता है। इसमें हमें काम के प्रस्ताव सहित अन्य समस्यओं को रखने का मौका मिलता है। इसको तहसील स्तर पर होना चाहिए, लेकिन यहां ऐसा नहीं होता है।

भुगतान के लिए काफी करते हैं प्रयास, जिम्मेदार ही नहीं लेते संज्ञान

मनरेगा मजदूर बताते हैं कि तीन से चार माह बीत जाते हैं लेकिन भुगतान नहीं होता। ऐसे में काम करने का क्या फायदा। हम लोग दैनिक मजदूरी करने वाले लोग हैं, दिहाड़ी पर ही घर के सारे खर्च पूरे होते हैं। यदि दिन भर काम किया और शाम को पैसा नहीं मिला तो हम लोगों को घर चलाने में भरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हम लोगों की समस्याओं को जिम्मेदारों को ध्यान देना चाहिए। इससे हम लोगों की समस्याओं का निदान हो सके, लेकिन स्थानीय स्तर पर कोई सुनने वाला नहीं है।

समस्या:

1. मनरेगा मजदूरों को आम मजदूरों से बहुत कम मजदूरी मिलती है।

2. ग्राम पंचायतों में जरूरत के समय रोजगार ही नहीं मिल पाता है।

3. महीनों बीत जाने पर भी खाते में भुगतान नहीं किया जाता।

4. कई बार केवाईसी या अन्य तकनीकी कारण से भुगतान नही मिल पाता है।

5. साल में करीब तीन महीने का ही काम मिलता है।

सुझाव:

1. मनरेगा मजदूरों को पूरे साल काम मिलता रहे।

2. दैनिक मजदूरी कम से कम 350 रुपए हो।

3. मजदूरी का भुगतान नगद मिले।

4. बैंक खाते में भुगतान आए तो प्रति माह आए।

5. कच्चा काम ना होने पर पक्का काम मिले।

मनरेगा के तहत मेहनत मजदूरी करके अपनी रोजी-रोटी चल रहे संजय कुमार बताते हैं कि पिछले तीन माह में मात्र 16 दिन काम मिला है, उसका भी भुगतान नहीं हुआ है।

मनरेगा मजदूर आलोक वर्मा ने बीबताया कि सामान्य मजदूर भी 350 से 400 रुपए प्रतिदिन कमाता है, वहीं हम लोगों को 237 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिलती है। हम लोगों की मजबूती बढ़ाई जानी चाहिए।

आफताब ने बताया कि योजना के तहत निर्धारित दिन ही काम दिया जाता है, जिसमें करीब 21 हजार रुपए भुगतान किया जाता है, 4 महीने हो गए हैं आधा रुपया ही आया है। हम लोगों को रोजगार की पक्की गारंटी चाहिए।

महताब ने बताया कि मनरेगा योजना के तहत साल भर में सिर्फ 90 दिन का मिलता है। उसका पेमेंट भी खाते में आता है नगद नहीं मिलता है। हम लोगों को तत्काल पैसे की जरूरत पड़ती है। इसका समाधान किया जाए।

महिला मजदूर रजिया बेगम ने बताया कि उन्होंने मनरेगा योजना के तहत काम किया था। जिसमें करीब 50 दिन की मजदूरी बकाया है। इसके लिए वह कई बार दौड़ चुकी हैं, लेकिन बकाया भुगतान नहीं हुआ है।

आकाश वर्मा ने बताया कि महंगाई के अनुपात में मनरेगा से मजदूरी बहुत, कम मिलती है। साथ ही नगद पेमेंट नहीं होता है जो पैसा आता है वह खाते में आता है। उसकी भी कोई गारंटी नहीं होती। जिससे रोजी-रोटी का संकट आ जाता है।

शराफत अली ने कहा कि साल भर में सिर्फ 90 दिन काम मिलता है, जिसकी मजदूरी भी बहुत कम मिलती है। बैंक वाले कभी केवाईसी तो कभी अन्य तकनीकी समस्या बताकर बैंक खाते में आए पैसे निकालने में झंझट करते हैं।

सुमित वर्मा का कहना है कि 3 महीने हो गए हैं लेकिन मनरेगा में की गई गई मजदूरी का भुगतान अब तक नहीं मिला है। साथ ही मनरेगा में पहले कच्चा काम मिलता है, उसके बाद पक्का काम मिलता है। कच्चे काम के अभाव में पक्के काम मिलने में भी परेशानी होती है।

मनरेगा मजदूर मुन्ना लाल ने बताया कि हम लोगों को गांव में ही काम मिले इसलिए मनरेगा योजना शुरू की गई थी। उस समय काम की गारंटी थी, लेकिन अब ना तो काम की गारंटी है और ना ही दाम की।

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