दुष्यंत व शकुंतला प्रसंग का किया मंचन
दशहरा मेले के तीसरे दिन राजा दुष्यंत और शकुंतला का प्रसंग मंचित किया गया। मेनका की वजह से शकुंतला का जन्म हुआ और उसका विवाह राजा दुष्यंत से हुआ। ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण दुष्यंत ने शकुंतला को...
रमियाबेहड़। कफारा के लीलानाथ मेला मैदान में चल रहे दशहरा मेला के तीसरे दिन राजा दुष्यंत व शकुंतला प्रसंग का मंचन किया गया है। मंचन में दिखाया कि ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ को भंग करने के लिए देवराज इंद्र ने मेनका अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा। उनसे एक शकुंतला नाम की कन्या हुई उस कन्या को मृत्यु लोक में ही छोड़ कर मेनका स्वर्ग लोक चली गई। शकुंतला का गंधर्व विवाह राजा दुष्यंत से हो गया और वह गर्भवती हो गई। एक दिन शकुंतला पति के ख्यालों में खोई हुई थी उसी समय ऋषि दुर्वासा आए। शकुंतला उन्हें प्रणाम करना भूल गईं। इससे ऋषि ने श्राप दे दिया तू जिसके ख्यालों में खोई हुई है वह तुझे भूल जाए। शकुंतला जब दुष्यंत राजा के दरबार में गई तो निशानी के तौर पर दी गई मुद्रिका खो गई। श्राप वश राजा ने पहचानने से इनकार कर दिया। उस अंगूठी को मछली निगल गई जैसे ही वह अंगूठी राजा के पास आई उसे सब याद आ गया और वह शकुंतला को लेने कण्व ऋषि के आश्रम में आए वहां एक बालक को सिंह के साथ खेलते हुए देखा तो राजा दुष्यंत आश्चर्य में पड़ गए कि इतना नन्हा बालक शेर से खेल रहा है। नाम पूछने पर अपना नाम भरत व पिता का नाम राजा दुष्यंत बताया। इस प्रकार भरत के नाम पर ही भारत वर्ष का नाम पड़ा। इस अवसर पर मेलाध्यक्ष उमेश अवस्थी, चौकी इंचार्ज अजय कुमार सिंह, उमा प्रसाद अवस्थी, मंदिर समिति के अध्यक्ष राशीष अवस्थी, पुनीत, चंद्रप्रकाश, हरिहर अवस्थी आदि मौजूद रहे।
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