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प्लाईवुड कारोबारी: यूकेलिप्टिस-पापुलर की पैदावार बढ़े तो दूर हो कच्चे माल की कमी

Lakhimpur-khiri News - खीरी जिले में प्लाईवुड उद्योग में कच्चे माल की कमी और प्रशिक्षण की आवश्यकता जैसी समस्याएँ हैं। 31 फैक्ट्रियों में 7000 लोग काम कर रहे हैं, लेकिन युवा इस क्षेत्र से मोहभंग हो रहे हैं। व्यापारियों ने...

Newswrap हिन्दुस्तान, लखीमपुरखीरीThu, 20 Feb 2025 02:45 AM
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प्लाईवुड कारोबारी: यूकेलिप्टिस-पापुलर की पैदावार बढ़े तो दूर हो कच्चे माल की कमी

खीरी जिले में प्लाईवुड का निर्माण एक बड़ा उद्योग है। जिले की 31 प्लाईवुड फैक्ट्रियां न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही हैं बल्कि सात हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है। स्थानीय कारोबारियों की भी अपनी समस्याएं हैं। जिले में प्लाईवुड के निर्माण संबंधी प्रशिक्षण का भी अभाव है। युवाओं का इस क्षेत्र से मोहभंग हो रहा है। प्लाईवुड उद्योगों के लिए कच्चे माल की कमी भी सबसे बड़ा मुद्दा है। कारोबारी सस्ते कच्चे माल, बुनियादी सुविधाओं और नियमों में छूट की मांग कर रहे हैं। खीरी जिले के उद्योगों में बनी हुई प्लाई की सप्लाई कई बड़े शहरों में होती है। वैसे तो इस उद्योग से जिले के सात हजार लोग जुड़े हुए हैं। साथ ही, बाहर के व्यवसायी भी इस कारोबार से जुड़े हुए हैं। प्लाईवुड संचालकों का कहना है कि सरकार इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई सकारात्मक कार्य कर रही है लेकिन अब भी इसे आगे बढ़ाने के लिए कई सुधार की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों में इस उद्योग की रफ्तार धीमी पड़ने लगी है। जहां पहले इस क्षेत्र में नए निवेशक आकर फैक्ट्रियां खोल रहे थे। वहीं, अब स्थापित उद्यमी भी लगातार चुनौतियों से जूझ रहे हैं। कच्चे माल व प्रशिक्षित कामगारों की कमी, बढ़ती ब्याज दरें और सख्त नियम इस उद्योग के सामने सबसे बड़ी बाधा है। कई उद्योगपतियों का मानना है कि यदि समय रहते सरकार ने जरूरी सुधार नहीं किए तो आने वाले वर्षों में यह उद्योग संकट में आ सकता है। प्लाईवुड एसोसिएशन के मुताबिक खीरी में प्लाईवुड उद्योग का विस्तार 2018 में तब और तेज हुआ जब सरकार ने लॉटरी सिस्टम से नए लाइसेंस जारी किए गए। इस नीति के तहत जिले में 10 नई प्लाईवुड फैक्ट्रियां स्थापित हुईं जिससे उत्पादन की क्षमता तो बढ़ी लेकिन उद्योग के सामने सबसे बड़ी चुनौती कच्चे माल की कमी बनकर आ रही है। प्लाईवुड निर्माण में यूकेलिप्टिस और पॉपुलर जैसी लकड़ियों की प्रमुख भूमिका होती है। उद्यमियों के अनुसार किसानों के बीच इन पेड़ों की खेती को लेकर जागरुकता की भारी कमी है। इसके चलते लकड़ी की मांग और आपूर्ति के बीच गहरी खाई बन गई है।

प्रोत्साहन मिले तो कच्चे माल की दूर हो कमी

कारोबारियों का कहना है कि यदि किसानों को सही मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिले तो वे इन पेड़ों की खेती की ओर आकर्षित हो सकते हैं। जिससे कच्चे माल की कमी दूर की जा सकती है। संचालकों का कहना है कि प्लाईवुड उद्योग को लेकर सरकारी नीतियां भी उद्यमियों के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। मंडी द्वारा सभी प्रकार की लकड़ियों के लिए एक समान मूल्य तय कर देना, उद्यमियों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। अलग-अलग गुणवत्ता की लकड़ी की कीमत भी अलग होनी चाहिए लेकिन मौजूदा व्यवस्था में यह संभव नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा फैक्ट्रियों को संचालन के लिए कई तरह की एनओसी (फायर, प्रदूषण आदि) लेनी होती है। उद्यमियों का कहना है कि कई बार अधिकारियों की धीमी कार्यशैली के चलते अनुमति लेने में महीनों लग जाते हैं। इससे न केवल नए उद्यमियों को दिक्कत होती है बल्कि पुराने व्यवसायी भी अपने उद्योग को आगे बढ़ाने से हिचकते हैं।

अतिरिक्त शुल्क की वजह से भी परेशानी

कारोबारियों का कहना है कि प्लाईवुड उद्योग में उधारी पर ब्याज दर और मंडी में 1.5 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क देने की व्यवस्था से उद्यमियों को भारी परेशानी होती है। उच्च ब्याज दरें जैसे 18 फीसदी, उद्योगपतियों पर आर्थिक दबाव डालती हैं। मंडी में 1.5 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क भी व्यापार की लागत को बढ़ा देता है जिससे मुनाफा कम हो जाता है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए व्यवसाय को स्थिर बनाए रखने में दिक्कतें आती हैं।

प्लाईवुड से संबंधित प्रशिक्षण की आवश्यकता

कारोबारियों का कहना है कि जिले में प्लाईवुड उद्योग से जुड़े तकनीकी प्रशिक्षण की नितांत आवश्यकता है जिससे स्थानीय युवाओं को अच्छे रोजगार के अवसर मिल सकें। जिले के तकनीकी संस्थाओं में प्लाईवुड और संबंधित क्षेत्रों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं तो स्थानीय युवाओं को उद्यमिता कौशल और तकनीकी दक्षता प्राप्त होगी। इससे न केवल प्रशिक्षित कर्मचारी मिलेंगे बल्कि युवाओं को रोजगार भी मिल सकेगा।

कच्चे माल की कमी से मशीनें हो रहीं बंद

कारोबारियों ने बताया कि प्लाईवुड उद्योग में कच्चे माल की लगातार कमी के कारण अक्सर प्लाईवुड की मशीनें बंद हो जाती हैं। सेमल लिप्टिस और पॉपुलर जैसे कच्चे माल की उपलब्धता घटने से उत्पादन में रुकावट आती है। यह स्थिति न केवल उत्पादन प्रक्रिया को प्रभावित करती है, बल्कि व्यापारी और उद्यमियों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। कच्चे माल के उच्च दामों और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव के कारण प्लाईवुड उद्योग में स्थिरता बनाए रखना मुश्किल हो गया है।

मंडी समिति की नीतियों से नुकसान

मंडी समिति द्वारा लकड़ी के सभी प्रकारों का एक समान रेट तय कर दिया जाता है, जिससे उद्यमियों को नुकसान उठाना पड़ता है। विभिन्न गुणवत्ता और श्रेणी की लकड़ी को एक ही मूल्य पर बेचना उचित नहीं है। इससे बेहतर होगा कि रेट गुणवत्ता के आधार पर तय किए जाएं ताकि उद्यमियों को संतुलित लाभ मिल सके।

सिंगल विंडो प्रणाली लागू की जाए

कारोबारियों ने बताया कि फैक्ट्री संचालन के लिए फायर, प्रदूषण और अन्य आवश्यक एनओसी प्राप्त करने में उद्यमियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अलग-अलग विभागों में बार-बार चक्कर लगाने से न केवल समय बर्बाद होता है, बल्कि आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। एकल खिड़की प्रणाली की व्यवस्था होने से यह प्रक्रिया आसान हो सकती है।

सरकारी योजनाओं के प्रचार का अभाव

एमएसएमई और अन्य सरकारी योजनाओं का सही प्रचार-प्रसार नहीं होने से उद्यमी इनका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। यदि इन योजनाओं की जानकारी समय पर मिले और उन्हें आवेदन करने की सरल प्रक्रिया समझाई जाए, तो कई उद्यमियों को राहत मिल सकती है। जिला स्तर पर इस संबंध में जागरुकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके अलावा श्रमिकों का ईपीएफ डेटा अपडेट करने में आने वाली दिक्कतों के कारण मजदूर पेरोल पर नहीं आ पाते जिससे फैक्ट्री मालिकों को डेली वेज पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है। इससे मजदूरों को भी स्थायी लाभ नहीं मिल पाता और उद्यमियों के लिए भी यह एक अतिरिक्त परेशानी बन जाती है।

समस्याएं:

1. कच्चा माल मिलने में समस्या आ रही है।

2. श्रम नियमावली अपडेट नही है।

3. लेबर को आरपीएफ खाता से पैसा निकालने में समस्या आती है।

4. 18 प्रतिशत टैक्स के साथ अलग से 1.5 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है।

5. उद्योग बंधु की बैठक में राखी जाने वाली समस्याओं पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

6. टेक्निकल ग्रेड यूरिया जांच के लिए लैब नही है।

7. पचास हजार रूपए से कम के व्यापार के लिए ई-वे बिल नही बनता है।

समाधान:

1. जीएसटी को 18 प्रतिशत की जगह 12 प्रतिशत के स्लैब पर लाया जाए।

2. आईटीआई में प्लाईवुड उद्योग से जुड़े ट्रेड में प्रशिक्षण दिया जाए

3. जीरो रेट पर ई-वे बिल जनरेट हो

4. किसानों को यूकेलिप्टस व पापुलर के पेड़ों को लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

5. टेक्निकल ग्रेड यूरिया की जांच के लिए लैब बनाए जाएं।

6. एमएसएमई का प्रचार हो।

7. फायर ब्रिगेड, प्रदूषण, बायलर की एनओसी निशुल्क दी जाए।

हमारी भी सुनिए:

प्लाईवुड व्यवसायी और प्लाईवुड एसोसियेशन के जिला अध्यक्ष दीपक अग्रवाल ने बताया कि हम लोग 18 प्रतिशत टैक्स देते हैं। इसके साथ ही मंडी समिति भी हम लोगों से 1.5 प्रतिशत टैक्स वसूलते हैं। हम लोगों को 12 फीसदी टैक्स स्लैब में लाया जाना चाहिए। तभी कारोबार को गति मिलेगी।

अगर उद्यान विभाग और वन निगम चाहें तो हम लोग साथ में मिलकर किसानों को यूकेलिप्टस, पापुलर आदि पेड़ों को बांट कर उन्हे इससे होने वाले फायदों के लिए जागरुक कर सकते हैं। इससे एक तो हमें व्यवसाय के लिए कच्चा माल उपलब्ध होगा, जिससे किसानों को भी लाभ मिलेगा। साथ ही यह पर्यावरण के लिए भी बहुत अच्छा रहेगा।

सरकार की पॉलिसी व्यवसाय के प्रति अच्छी है, इसमें कुछ सुधार हो जाए तो और अच्छा रहेगा। एमएसएमई में सरकारी बहुत अच्छा कर रही है, जिससे व्यवसाय को लाभ हुआ है। हम लोगों ने सरकार से कुछ मांगे की है, इन पर ध्यान दिया जाए, तो बेहतर होगा।

यह जिले का बड़ा उद्योग है। लोगों को लगता है कि हमें कोई समस्या ही नहीं होगी। पर हम लोग उद्योग बंधु की बैठक में भी कई मुद्दे उठाते हैं। कुछ मुद्दे स्थानीय हैं तो कुछ नीतिगत। ई-वे बिल जीरो रेट से जनरेट हो जाए तो व्यापार भी बढ़ेगा और सरकार को भी ज्यादा टैक्स मिलेगा।

फायर एनओसी, प्रदूषण और बॉयलर की एनओसी लेना, इसके रखरखाव और रिनिवल की प्रक्रिया को फ्री ऑफ कॉस्ट कर दें तो बहुत अच्छा रहेगा। सिंगल विंडो सिस्टम तैयार किया जाए, जिससे हमारा समय न खराब हो और काम जल्दी हो सके। यह मांग कई बार रखी जा चुकी है।

माल की क्वालिटी के लिए सरकार बीआईएस (आईएसआई) मुहर लगाती है। डुप्लीकेसी करने वाले नकली माल बनाकर उसको बाजार में बेच देते हैं। इसके लिए कठोर मानक बनाकर कार्रवाई करनी चाहिए। गलत माल बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाए।

हम लोगों को सात से आठ रुपए प्रति यूनिट बिजली दी जाती है। यह टैरिफ दिन में चार बार बदलता है। जबकि 3 रुपए प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली देने के मानक हैं। इस मुद्दे का जल्द से जल्द हल होना चाहिए।

समय-समय पर अधिकारियों के साथ उद्योग बंधु की बैठक होती है। जिसमे हम लोग अपनी समस्याएं बताते हैं। समस्याओं को सुना तो जाता है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती है। इससे हम लोग निराश हैं।

स्थानीय लेबर टिम्बर व्यवसाय के लिए प्रशिक्षित नहीं होते हैं, इसलिए हम लोग लेबरों को बाहर से लाते हैं। लेबर पेरोल पर न हो तो विभाग से दिक्कत होती है। श्रम विभाग को लेबरों को प्रशिक्षण दिलवाना चाहिए, जिससे व्यवसायी और मजदूर दोनों को फायदा होगा।

लखीमपुर जनपद में कच्चे माल की कमी के कारण हम लोगों को सीतापुर, बहराइच आदि जगह से माल मंगाना पड़ता है। जिससे लागत बढ़ती है। जबकि जिले के किसानों को जागरूक किया जाए तो कच्चे माल की कमी नहीं पड़ेगी।

टिम्बर लकड़ी को काटने की छूट किसानों को मिलनी चाहिए। वन विभाग को इइस बारे में कई बार ज्ञापन दिया गया। किसानों को भी लकड़ी वाले पौधे उगाने चाहिए। जिससे कारोबार और किसान के बीच की दूरी खत्म हो सके। दोनों का भला हो।

सुमित अग्रवाल ने बताया कि बिजली का टैरिफ दिन में चार बार बदलता है। हम लोगों को न्यूनतम दर पर एक समान रूप से बिजली मिलनी चाहिए। हम लोगों को सरकार बिजली पर रियायत दे तो हम उद्योग जिले की जीडीपी में बड़ा सहयोग कर सकता है।

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