यूपी में शुगर टेक्नोलॉजी की पढ़ाई और शोध का हब बनेगा कुशीनगर
Kushinagar News - राकेश कुमार गौंड़ पडरौना।पडरौना। एशिया स्तर पर अपनी पहचान रखने वाले कुशीनगर जिले के सेवरही क्षेत्र के बभनौली स्थित गेंदा सिंह गन्ना प्रजनन एवं अन
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राकेश कुमार गौंड़
पडरौना। एशिया स्तर पर अपनी पहचान रखने वाले कुशीनगर जिले के सेवरही क्षेत्र के बभनौली स्थित गेंदा सिंह गन्ना प्रजनन एवं अनुसंधान संस्थान के फिर दिन बहुरेंगे। फर्क सिर्फ इतना होगा कि अब यहां शुगर टेक्नोलॉजी पर पढ़ाई और शोध होगा। सरकार ने इसकी इजाजत दे दी है। इसके अलावा भवन के मेंटीनेंस और अन्य जरुरतों के लिए सरकार ने दो करोड़ रुपये दिया है। पद स्वीकृत होने और रिसर्च सेंटर के मेंटीनेंस का कार्य पूर्ण होने के बाद सितंबर से यहां दाखिला शुरू हो जाएगा। 30 सीटों पर पहले साल यूजी की पढ़ाई होगी। इस तरह शुगर टेक्नोलॉजी की पढ़ाई और शोध के मामले में कुशीनगर जनपद हब बन जाएगा।
गन्ना बहुल होने की वजह से देवरिया का हिस्सा रहा यह क्षेत्र चीनी का कटोरा कहा जाता था। देवरिया और कुशीनगर जिले को मिलाकर 13 चीनी मिलें हुआ करती थीं, जिनमें नौ चीनी मिलें अकेले कुशीनगर में थी। सपा के शासनकाल में ढाढ़ा में नई चीनी मिल स्थापित हुई थी। गन्ना का उत्पादन अधिक होने के कारण सेवरही क्षेत्र के बभनौली में वर्ष 1975-76 में गेंदा सिंह गन्ना प्रजनन एवं अनुसंधान संस्थान की स्थापना हुई थी, लेकिन शासन स्तर से इस पर ध्यान न दिए जाने के कारण दुर्दिन में आ गया।
जिले में महात्मा बुद्ध कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की नींव रखे जाने के बाद इस अनुसंधान केंद्र की रौनक फिर लौटने के आसार बन गए हैं। क्योंकि कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का दूसरा हिस्सा इस गन्ना प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र की जमीन पर बनाया जाना है। इस केंद्र को शुगर टेक्नोलॉजी पर पढ़ाई और शोध के लिए चुना गया है।
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पहले साल होगी यूजी की पढ़ाई-
विभाग के मुताबिक पहले साल यहां 30 सीटें आवंटित हुई हैं, जिस पर दाखिला लेने वाले छात्रों की यूजी की पढ़ाई होगी। उसके बाद विद्यार्थी एमएससी और पीएचडी भी कर सकेंगे। जिन्हें गन्ना से संबंधित तकनीकी जानकारी की जरुरत होगी, यहां आने पर वह जानकारी भी मिलेगी। यह शोध संस्थान भी महात्मा बुद्ध कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का ही पार्ट होगा।
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गन्ना की 43 प्रजातियों ने बनाई थी देशभर में पहचान-
यहां तैयार की गई गन्ना की 43 प्रजातियों ने देश के पूर्वोत्तर व उत्तरी भाग में विशेषकर आसाम, पंजाब, बंगाल, बिहार व उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनाई थी। इसके बूते संस्थान को एशिया महाद्वीप का सर्वोत्तम गन्ना शोध संस्थान का दर्जा प्राप्त था।
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निदेशक का पद समाप्त होने के बाद शुरू हुई बदहाली-
इस संस्थान की बदहाली का दौर तब शुरु हुआ, जब 1997 में शासन ने निदेशक का पद समाप्त कर इसे शाहजहांपुर गन्ना शोध संस्थान से संबद्ध कर दिया। वैज्ञानिकों ने अच्छे भविष्य की चाह में यहां से पलायन का विकल्प अपना लिया, जिसके फलस्वरुप शोध कार्य कम होते गए।
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कुशीनगर जिले के बाबू गेंदा सिंह गन्ना प्रजनन एवं अनुसंधान संस्थान की जमीन पर शुगर टेक्नोलॉजी की पढ़ाई और शोध कार्य होगा। इसके लिए सरकार ने अनुमति दे दी है। रिसर्च सेंटर के मेंटीनेंस व अन्य कार्यों के लिए दो करोड़ रुपये मिले हैं। पद सैंक्शन होने और मेंटीनेंस का काम पूरा होने पर हैंडओवर लेकर वहां 30 सीटों पर सितंबर में नामांकन शुरू करा दिया जाएगा। पहले साल यूजी और उसके बाद एमएससी एवं पीएचडी की पढ़ाई होगी। यह शोध संस्थान भी महात्मा बुद्ध कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का पार्ट होगा।
डॉ. बिजेंद्र सिंह, कुलपति,
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, फैजाबाद तथा महात्मा बुद्ध कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुशीनगर
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