पितृपक्ष बुधवार से, पितरों की संतुष्टि को क्या करें
कुशीनगर में पितृपक्ष 18 सितंबर को प्रारंभ होगा और 2 अक्टूबर को समाप्त होगा। इस दौरान जल, अन्न और वस्त्र का दान करना आवश्यक है। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृ कार्य में लापरवाही से पितर असंतुष्ट होते...
कुशीनगर। निज संवाददाता पितृपक्ष 18 सितंबर दिन बुधवार को पौने नौ बजे से प्रारंभ होगा। 15 दिन तक चलने वाले पितृपक्ष का सामपन 2 अक्तूबर को पितृ विसर्जन को होगा। पितरों को संतुष्ट करने के लिए नित्य जल दान व तिथि पर अन्न व वस्त्र आदि का दान करना चाहिए। पिता की तिथि ज्ञात न होने पर पितृ विसर्जन को श्राद्ध करना चाहिए।
महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय बताया कि पितृपक्ष 18 सितम्बर दिन बुधवार को प्रातः 08.42 बजे से पुनीत पर्व प्रारंभ होगा। उस दिन प्रातः काल 8 बजकर 41 मिनट तक पूर्णिमा तिथि है। उसके बाद पितृपक्ष आरम्भ हो जाएगा। उसी दिन से पितृ तर्पण व पिण्ड दान आदि कार्य आरम्भ हो जायेंगे। पितृ विसर्जन 02 अक्तूबर दिन बुधवार को है। इस वर्ष पितृ पक्ष 15 दिन का है। ...मध्याह्ने श्राद्धम् समाचरेतअतः श्राद्ध कार्य कभी भी मध्याह्न में करना चाहिए। बहुत लोग इस बात से भ्रमित रहते है कि मैंने इस वर्ष अपनी कन्या या पुत्र का विवाह आदि मांगलिक कार्य किया है। अतः इस वर्ष पितृपक्ष का जल दान, अन्न दान व पिण्ड दान न करें, यह अशुभ है, लेकिन निर्णय सिंधुकार के कथनानुसार सभी मांगलिक कार्यों में पितृ कार्य उत्तम व आवश्यक माना गया है। तभी तो हम जनेऊ, विवाह आदि मांगलिक कृत्य करने से पूर्व नान्दीमुख श्राद्ध आवश्य करते हैं। अभिप्रायः यह है कि हमारे यहां होने वाले शुभ कार्य में किसी भी प्रकार का विघ्न न हो। यह पितृ पक्ष वर्ष में 1 बार अश्विनी कृष्ण पक्ष में पितरों की पूजा हेतु किया जाता है। कहा गया है कि देवताओं की पूजा में कदाचित भूल होने पर देवता क्षमा कर देते हैं, परन्तु पितृ कार्य में न्यूनता व आलस्य प्रमाद करने से पितर असन्तुष्ट हो जाते हैं, जिससे हमें रोग, शोक आदि दुख भोगने पड़ते हैं।
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि शास्त्रों में हर जगह नित्य देखने को मिलता है कि मातृ देवो भव, पितृ देवो भव। अतः माता-पिता के समान कोई देवता नहीं है। उनकी संतृप्ति और आशीर्वाद हमें जीवन में हर प्रकार का सुख देता है। अतः इस भ्रान्ति को मन मस्तिष्क में न पालकर इस पितृ पर्व को हर्षोल्लास पूर्वक मनाना चाहिए। इसमें नित्य जल दान व तिथि पर अन्न वस्त्र आदि दान करना चाहिए, जिनके पिता के मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। उनको श्राद्ध पितृ विसर्जन को करना चाहिए।
पितृ पक्ष की तिथियां
पडरौना। प्रतिपदा का श्राद्ध 18 सितम्बर दिन बुधवार, द्वितीया-गुरुवार, तृतीया-शुक्रवार, चतुर्थी-शनिवार, पंचमी-रविवार, षष्ठी-सोमवार, सप्तमी-मंगलवार, अष्टमी- 25 सितंबर दिन बुधवार, नवमी-गुरुवार, दशमी-शुक्रवार, एकादशी-शनिवार, द्वादशी-रविवार, त्रयोदशी-सोमवार, चतुर्दशी-मंगलवार, अमावस्या/पूर्णिमा दोनों का श्राद्ध व पितृ विसर्जन दिन बुधवार को करें।
पितृपक्ष में न कराएं मुंडन
पडरौना। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि सिर का मुण्डन पितृ पक्ष के भीतर या तिथि पर नहीं करना चाहिए, क्यों कि धर्मसिंधु में यह बात कहीं गयी है कि पितृ पक्ष में सिर के बाल, जो भी गिरते हैं वह पितरों के मुख में जाते हैं। अतः सिर के बाल पितृ पक्ष आरम्भ होने के एक दिन पूर्व बनवा लें या भूलवश नहीं बनवा पाते हैं तो पितृ विसर्जन के दिन अपराह्न काल में बनवावें। ऐसा करने से पितर सन्तुष्ट होते हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे कुल की वृद्धि व यश, कीर्ति, लाभ, आरोग्यता व मोनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
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