बोले कानपुर : ट्रैक नहीं मिट्टी पर दौड़ते हम, कोच और संसाधन मिलें तो दिखाएं दम
Kanpur News - ओलंपिक में सबसे अधिक पदक एथलेटिक्स में मिलते हैं, लेकिन शहर में एथलेटिक्स के साथ भेदभाव हो रहा है। कोच और संसाधनों की कमी के कारण खिलाड़ी निराश हैं। स्कूलों में प्रतियोगिताएं तो होती हैं, लेकिन अभ्यास...
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ओलंपिक में सबसे अधिक पदक एथलेटिक्स में मिलते हैं। इसके बावजूद शहर में अन्य खेल और एथलेटिक्स के बीच भेदभाव हो रहा है। खेल मैदान और स्कूलों में एथलेटिक्स के प्रशिक्षण में सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। स्कूलों में प्रतियोगिताएं तो होती हैं लेकिन बिना अभ्यास के। शहर में एक भी सिंथेटिक ट्रैक नहीं है। एथलीट कहते हैं कि अत्याधुनिक संसाधन और एनआईएस कोच मिलें तो हम भी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत शहर का नाम रोशन कर सकते हैं। एथलेटिक्स को खेलों की जननी कहा जाता है। क्योंकि, इसमें हमारी सभी गतिविधियां जैसे चलना, दौड़ना, कूदना, फेंकना आदि का उपयोग होता है। यहां तक कि किसी भी आउटडोर या इनडोर गेम के खिलाड़ी एथलेटिक्स के माध्यम से ही खुद को फिट रखते हैं। मगर हमारे शहर में खेलों की इस जननी एथलेटिक्स के साथ ही दुर्व्यवहार हो रहा है। यहां कोच की कमी है तो अत्याधुनिक उपकरण व संसाधनों का भी टोटा है। खिलाड़ियों में रुचि भी न के बराबर नजर आने लगी है। खेल विभाग के स्टेडियम ग्रीन पार्क में भी एथलेटिक्स को नजरअंदाज किया गया है। खेल विभाग की ओर से जारी खेलों के कैम्प सूची में एथलेटिक्स का नाम ही शामिल नहीं है। नतीजतन खिलाड़ियों का इससे मोहभंग हो रहा है। वहीं धावक यश कहते हैं कि हमलोग मैदान पर घंटों पसीना बहाते हैं, अभ्यास करते हैं अगर हमें भी संसाधन और कोच मिलें तो शहर का नाम रोशन करने में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे।
कविता कहती हैं कि शहर के कई खेल मैदानों पर विभिन्न खेलों के प्रशिक्षण कैम्प चल रहे हैं लेकिन एथलेटिक्स के कोच और छात्रों की संख्या न के बराबर है।
स्कूलों में भी एथलेटिक्स की हो रही खानापूर्ति : 100 मीटर दौड़ में अपना भविष्य संवारने के प्रयास में जुटी श्रद्धा अवस्थी ने कहा कि पहले की तुलना में एथलेटिक्स अब काफी बदल गया है। अब यह खेल भी सामान्य गरीबों के लिए नहीं रह गया है। इसके सभी उपकरण काफी महंगे हैं। इस कारण, स्कूलों में एथलेटिक्स तो हो रहा है लेकिन सिर्फ खानापूर्ति के लिए। 200 मीटर दौड़ का अभ्यास कर रही अलिशा ने कहा कि स्कूलों में सिर्फ सरकार के निर्देश पर ब्लॉकस्तरीय, जिलास्तरीय, मंडलस्तरीय प्रतियोगिता होती है। प्रशिक्षण के नाम पर कुछ नहीं है। 800 मीटर दौड़ में पदक जीतने का सपना रखने वाली सुधा निषाद ने कहा कि एथलेटिक्स अब मिट्टी पर नहीं रह गया है। सभी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं सिंथेटिक ट्रैक पर होती हैं। जबकि शहर में एक भी सिंथेटिक ट्रैक नहीं है। जैवलिन थ्रो का अभ्यास कर रही आरची गुप्ता ने कहा कि एथलेटिक्स से जुड़े सभी उपकरण काफी महंगे हैं। न तो कोई एकेडमी में और न स्कूल में ये उपकरण हैं ऐसे में खेल प्रभावित होता है।
भविष्य हो सुरक्षित तो बढ़े क्रेज : 200 मीटर दौड़ का अभ्यास कर रही नबील सरताज ने कहा कि एथलेटिक्स का क्रेज लगातार कम होने के पीछे असुरक्षित भविष्य है। इस खेल में ग्लैमरस न होने से क्रेज कम हो रहा है। युवाओं को नौकरी न मिलने से भी परेशानी अधिक है। सुधा निषाद ने कहा कि पदक के लिए पहले संसाधन और उपकरणों का इंतजाम करना होगा। हालांकि क्राइस्टचर्च मैदान पर एथलेटिक्स का नियमित प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
सुझाव
1. ग्रीनपार्क स्टेडियम में एनआईएस कोच की देखरेख में एथलेटिक्स कैम्प नियमित रूप से संचालित होना चाहिए।
2. ग्रीन पार्क स्टेडियम समेत नगर निगम या अन्य संस्थानों के खेल मैदान में सिंथेटिक ट्रैक बनना चाहिए।
3. अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के अनुसार एथलेटिक्स से जुड़े उपकरणों की व्यवस्था की जाए।
4. स्कूलों में एथलेटिक्स को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। एथलीट से जुड़ी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।
5. शहर के सभी खेल मैदानों पर एथलेटिक्स की नियमित प्रैक्टिस होनी चाहिए, ताकि खिलाड़ी नाम रोशन कर सकें।
समस्याएं
1. शहर में एक भी सिंथेटिक ट्रैक नहीं है, जबकि सभी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं सिंथेटिक ट्रैक पर होती हैं।
2. शहर में कोच की कमी है। कुछ ही खेल मैदानों पर एथलेटिक्स कोच खिलाड़ियों की प्रैक्टिस कराते हैं।
3. अधिकांश खिलाड़ी गरीब वर्ग के हैं। खेल को बढ़ावा देने के लिए कोई भी संगठन मदद नहीं करता है।
4. अत्याधुनिक उपकरण व संसाधनों की कमी है। जबकि वर्तमान में एथलेटिक्स का पूरा खेल हाईटेक हो चुका है।
5. ग्रीनपार्क स्टेडियम में एथलेटिक्स कोच नहीं हैं और न ही कैम्प चल रहा है। ऐसे में खिलाड़ी निराश होते हैं।
बोले एथलीट
एथलेटिक्स खेल महंगा हो गया है। अत्याधुनिक उपकरण और सिंथेटिक ट्रैक नहीं है। वहीं, सामान्य वर्ग से आने वाले खिलाड़ियों के लिए महंगे-महंगे जूतों का खर्च भी उठाना भारी पड़ता है। शहर में एथलेटिक्स कोच की भी कमी है।
सोनू राही
शहर में एथलेटिक्स के लिए कोई उचित मैदान नहीं है। शहर के स्कूलों में भी एथलेटिक्स की प्रतियोगिताओं को बढ़ावा नहीं दिया जाता है। नतीजा, धीरे-धीरे युवा खिलाड़ियों में इस खेल के प्रति रूचि कम होती जाती है।
पावनी अवस्थी
गांव के खिलाड़ियों के लिए एथलेटिक्स पहली पसंद होता था, मगर अब यह काफी महंगा हो चुका है। दौड़ के लिए भी महंगे जूते की आवश्यकता होती है। हर खिलाड़ी अपने खर्च पर लेकर प्रैक्टिस नहीं कर सकता है।
आर्ची गुप्ता
ग्रीन पार्क स्टेडियम में एथलेटिक्स की न तो प्रैक्टिस होती है और न ही यहां कोई कोच है। जबकि यहां खेल विभाग से कैम्प एलॉट होता है। वहीं, स्कूलों में भी एथलेटिक्स के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है।
शानवी शुक्ला
एथलेटिक्स सभी खेलों का बेसिक है लेकिन शहर में एथलेटिक्स कोच और इससे जुड़ी सुविधाओं की कमी है। इसी कारण, शहर में एथलेटिक्स के बड़े खिलाड़ी नहीं निकल रहे हैं, जबकि प्रतिभा की कमी नहीं है।
अभय मिश्रा, शास्त्री नगर
एथलेटिक्स का प्रशिक्षण स्कूल से ही दिया जाना चाहिए। मगर स्कूल स्तर पर न तो कोई एथलेटिक्स का विशेष कोच होता है और न ही कोई विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे खिलाड़ियों की प्रतिभा निखर नहीं पाती है।
कविष्क, कैंट
बोले जिम्मेदार
ग्रीनपार्क स्टेडियम में कैम्प खेल निदेशालय से एलॉट होते हैं। इस साल ग्रीनपार्क स्टेडियम में एथलेटिक्स का कैम्प एलॉट नहीं हुआ है। जिससे यहां कोच नहीं है। स्टेडियम में खिलाड़ियों को अभ्यास का मौका मिले, इसके लिए सिंथेटिक ट्रैक बनवाने का प्रस्ताव भेजने की तैयारी है।
विजय कुमार, क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी, ग्रीनपार्क
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