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पशुओं के डॉक्टर न दवा.. बस दावों की जुगाली

Kannauj News - कन्नौज में खोले गए पशु चिकित्सा और पशु सेवा केंद्रों की स्थिति बेहद खराब है। डॉक्टरों की कमी और दवाओं की अनुपलब्धता के कारण पशुपालक परेशान हैं। मौसमी बीमारियों और महंगे चारे के चलते पशुपालकों की...

Newswrap हिन्दुस्तान, कन्नौजFri, 28 Feb 2025 01:40 AM
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पशुओं के डॉक्टर न दवा.. बस दावों की जुगाली

कन्नौज । जिले में खोले गए पशु चिकित्सा केंद्र और पशु सेवा केंद्र बेमतलब साबित हो रहे हैं। इनमें से कई केंद्रों पर डॉक्टर नहीं हैं, तो कई पर दवाओं का टोटा है। ऐसे में क्षेत्रीय पशुपालकों को मुसीबतें झेलनी पड़ रही हैैं। पशुओं में फैलने वाली मौसमी बीमारी से लेकर अन्य रोगों में इलाज के लिए उन्हें दूरदराज स्थित अस्पतालों की दौड़ लगानी पड़ती है। चिकित्सक के न मिलने और दवाओं के अभाव में कई बार पशुओं की मौत भी हो जाती है। वहीं भूसे का भाव आठ सौ रुपये तक जा पहुंचा है। महंगाई के इस दौर में पशुपालक यह नहीं समझ पा रहे हैं कि अपना पेट भरें या फिर पशुओं का। पशुपालन व्यवसाय, जो हमेशा से मुनाफे का सौदा माना जाता था, अब घाटे का सौदा होता जा रहा है। किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है और वे अपने पशुओं को बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं। पशुपालकों ने बताया कि पशुपालन व्यवसाय में घाटा कई कारणों से हो रहा है, इनमें पशुओं के चारे और दवाओं की बढ़ती कीमतें शामिल हैं। इसके अलावा, पशुओं की बीमारियों और मौसम की खराब स्थिति के कारण भी घाटा हो रहा है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से बातचीत के दौरान कन्नौज के पशुपालकों का दर्द छलक उठा। पशुपालक राम स्वरूप ने बताया कि पशुओं के लिए चारा महंगा होता जा रहा है। अस्पतालों में न डॉक्टर हैं और न ही दवा। पशु बीमारी से दम तोड़ रहे हैं। अधिकारियों का पशुपालकों को बढ़ावा देने का दावा सिर्फ हवा-हवाई साबित हो रहा है।

सदियों से भारत किसानों का देश रहा है यहां की अधिकांश आबादी ग्रामीण अंचलों में निवास करती है और प्रमुख रूप से यह लोग खेती-किसानी एवं पशुपालन के कारोबार पर ही निर्भर रहते हैं। कन्नौज में तकरीबन 2,00,000 पशुपालकों ने लगभग छह लाख मवेशियों को पाल रखा है। यह लोग पशुपालन कारोबार से न सिर्फ अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे थे। बल्कि इस व्यवसाय को जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन भी बना रखा था। इसके बावजूद निरंतर घट रहे चारागाह एवं बढ़ रही पेड़ों की कटान पशुपालन के कारोबार में रोड़ा बनती जा रही है। इसके अलावा घातक बीमारियों और इलाज के अभाव में बढ़ रही पशु मृत्यु दर से दिनों दिन पशुओं की संख्या घटती जा रही है। यही वजह है कि पशुपालक इस कारोबार से विमुख होता जा रहा है। बढ़ती महंगाई में पशुओं की मौत पर पशुपालक अमन ने बताया कि लाखों का नुकसान झेलना पड़ता है कुछ पशुपालक तो इस कारोबार में कर्जदार भी हो गए हैं। कन्नौज में पशु चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह लचर है। जिले के छह लाख पशुओं के इलाज के लिए शासन स्तर से केवल 13 पशु डॉक्टर और 12 पशुधन प्रसार अधिकारी तैनात किए गए हैं । इन डॉक्टरों के भरोसे जिले में 19 पशु अस्पताल संचालित हो रहे हैं। पशुपालक राजू ने बताया कि यही वजह है की घातक बीमारियां होने पर अधिकांश पशुओं का समय पर इलाज नहीं हो पाता है। लिहाजा इलाज के अभाव में मौत हो जाती है। लाखों रुपये की कीमत में खरीदे गए दुधारू पशु की मौत से पशुपालकों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है। जिसके चलते पशुपालकों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। नरेंद्र ने बताया कि अब अधिकांश खेती ट्रैक्टर एवं कृषि यंत्रों पर आधारित हो गई है। लिहाजा बैल आदि का पालन बिल्कुल समाप्त सा हो गया है। पशुपालन करने वाले लोग अब इस व्यवसाय से कतराने लगे हैं। शासन स्तर से भी उन्हें प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है। पशुपालन में आ रही गिरावट से दूध और दूध से बने पदार्थ महंगे होते जा रहे हैं। पशुपालकों ने बताया कि बड़ी दूध कंपनियों ने हमारे मुनाफे पर कब्जा कर लिया, फिर भी हमने हार न मानी क्योंकि तीज-त्योहारों पर अधिक दूध बेचकर पिछला मुनाफा औसत जो कर लेते हैं। इस पर भी पिछले कुछ वर्षों से प्रशासन की नजर लग गई है। कुछ लालची लोग मिलावट करते हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई के नाम पर हम सभी का उत्पीड़न किया जाना भी गलत है। कई किसान परिवार अब अपने मवेशियों को बोझ समझ कर पशुपालन का काम छोड़ने पर विचार करने लगे हैं। जो न केवल किसानों के लिए बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता है।

पशु इलाज की व्यवस्था धड़ाम

पशुपालक रमेश ने बताया कि सरकार पशु पालकों की बेहतरी के लिए कई योजनाएं चलाती है, लेकिन वे धरातल पर नहीं उतरती हैं। शासन ने मवेशियों के इलाज के लिए पशु चिकित्सालयों की व्यवस्था तो की है, लेकिन यहां गंभीर बीमारियों का इलाज नहीं हो पाता है। कई बार तो दवाएं भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। इससे मजबूरी में बाहर से महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती हैं। इसका भार उनकी जेबों पर पड़ता है। शासन ने मवेशियों के इलाज के लिए पशु एंबुलेंस की व्यवस्था की थी, लेकिन जिले में यह व्यवस्था पूरी तरह धड़ाम हो चुकी है। कई-कई बार जिम्मेदारों को जानकारी देने के बावजूद एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंचती है। इससे उनके पास निजी पशु चिकित्सकों के चक्कर काटने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता है। पशु चिकित्सक इलाज के नाम पर मनमाने रुपये वसूलते हैं। ऐसे में किसान के लिए अपना घर चलाना भी मुश्किल पड़ जाता है।

जानवरों के बढ़ते दाम से घट रही संख्या

ग्रामीण अंचलों में चारागाह एवं ग्राम सभा की खाली जमीन समाप्त होती जा रही हैं। लिहाजा पशुओं के लिए चारे का संकट भी पशुपालकों पर गहराता जा रहा है। यही वजह है कि पशुपालकों की संख्या के साथ-साथ पशुओं की भी तादाद दिनों दिन घटती जा रही है। पशुओं की तादाद घटना से पशुओं की कीमत में एकाएक उछाल आ गया है। जो दुधारू भैंस पहले 25 से 50,000 में आ जाती थी । आज उसकी कीमत आसमान छू रही है। करीब एक दशक पहले 50,000 में मिलने वाली भैंस अब डेढ़ लाख में मिल रही है।

शिकायतें

1. दिनों दिन घट रहे चारागाह पशुपालकों के लिए समस्या है।

2. जिले की लचर पशुचिकित्सा व्यवस्था के चलते पशुओं की संख्या घट रही है।

3. जागरूकता के अभाव में सरकारी योजनाओं का लाभ पशुपालकों को नहीं मिलता।

4. कृषि यंत्रों पर आधारित खेती से भी पशुपालकों की संख्या घटती रही है।

5. पशु बाजार का अभाव एवं मूल्य निर्धारण की विषमता से कम हो रहा पशुपालन।

6. जानवरों के रेट बहुत अधिक हो गए हैं। पशुओं की खरीद पर कोई सब्सिडी भी नहीं दी जाती है।

7. जानवर यूरिया युक्त चारा खाते हैं तो दूध में यूरिया मिलेगा ही। नमूने भरने के बाद अधिकारी जुर्माना लगा देते हैं।

सुझाव

1. जनपद में ग्रामसभा की खाली जमीनों पर चारागाह बनाए जाएं।

2. पशु चिकित्सकों एवं पशुधन प्रसार अधिकारी सहित चिकित्सा कर्मियों की जिले में तैनाती सुनिश्चित की जाए।

3. अधिकारियों को समय-समय पर गोष्ठी का आयोजन कर पशुपालकों को जागरूक करना चाहिए।

4. जैविक खाद के प्रयोग को लेकर किसानों को जागरूक किया जाए।

5. जनपद में पशु बाजार की संख्या में बढ़ोतरी की जाए और पशुओं के मूल्य निर्धारण के लिए भी ठोस कदम उठाया जाए।

6. खाद्य विभाग की एक निर्धारित गाइडलाइन तय की जाए। त्योहारों के समय दूधियों का शोषण बंद किया जाए।

बोले पशुपालक

पर्याप्त पशु डॉक्टर नहीं हैं। अधिकांश अस्पतालों में केवल चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही मिलता है। जिसे इलाज का कोई ज्ञान नहीं है। -राम स्वरूप

अस्पताल से हम लोगों को जरूरी दवाई नहीं मिल पाती है। पशुओं की दवाई बहुत महंगी होती है बाहर मेडिकल स्टोर से मंगानी पड़ती है।-राजू कठेरिया

शासन स्तर से संचालित योजनाओं का हमें लाभ नहीं मिल पाता है । योजनाओं की जानकारी देने को कोई कैंप भी नहीं लगाया जाता है। -रमेश गौतम

दुधारू जानवर काफी महंगे हो गए हैं। डेढ़ से दो लाख रुपये में भैंस खरीदने के बाद बीमारी लगने पर उसकी मौत हो जाए तो काफी घाटा हो जाता है। -राजू गौतम

बोले जिम्मेदार

कम स्टाफ के बावजूद प्रत्येक अस्पताल पर चिकित्साकर्मी मौजूद रहते हैं। समय-समय पर टीकाकरण एवं जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं पशुओं की आबादी को बढ़ाने के लिए पशु मित्रों को कृत्रिम गर्भाधान का प्रशिक्षण दिया गया है। यह लोग पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से गर्भधारण करने का कार्य करते हैं। इसके अलावा पशुपालकों की जो समस्याएं हैं,उसकी शिकायत करें समाधान किया जाएगा।

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