Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़कन्नौजTirwa Royalty s Role in India s Freedom Struggle and the Legacy of Rajmata Anand Uday Kumari

राजमाता आनन्द उदय कुमारी ने डटकर किया था अंग्रेजों का सामना

तिर्वा रियासत के राजा दुर्गा नारायन सिंह के निधन के बाद राजमाता आनंद उदय कुमारी ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने भारत माता की प्रतिमा स्थापित की और क्रांतिकारियों की मदद की। 15 अगस्त 1947...

Newswrap हिन्दुस्तान, कन्नौजWed, 14 Aug 2024 05:39 PM
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बिमलेन्द्र सिंह बघेल तिर्वा, संवाददाता। तिर्वा रियासत के सबसे विख्यात राजाओं में से एक दुर्गा नारायन सिंह का वर्ष 1944 में निधन हो गया था। इसके बाद रियासत की बागडोर राजमाता आनंद उदय कुमारी के हाथों में आई। वर्ष 1945 में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चरम सीमा पर थी। राजगद्दी की जिम्मेदारी मिलते ही राजमाता के अंदर भी अंग्रेजों के खिलाफ चिंगारी भड़क गई। उन्होंने रियासत के पूर्व राजाओं द्वारा सिद्धपीठ मां अन्नपूर्णा मन्दिर के निकट बनवाए गए प्रीतम सागर (पक्का तालाब) के मुख्य द्वार पर भारत माता की प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया। इसका अंग्रेजी हुकूमत ने पुरजोर विरोध किया, लेकिन राजमाता ने अंग्रेजी शासन का डटकर सामना किया।

आज भी मुख्य द्वार पर लगी भारत माता की प्रतिमा इसकी साक्षी है। अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए तिर्वा रिायासत ने भी अहम भूमिका निभाई थी। रियासत के बड़े राजा दिग्विजय सिंह बताते हैं कि तमाम क्रांतिकारी राजमाता से जुड़ गए थे। अंग्रेजों से युद्ध कर रहे क्रांतिकारियों के लिए भोजन, वस्त्र व अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती थी। इनके रुकने और रात्रि विश्राम के लिए भी रियासत सदैव खड़ी रहती थी। तिर्वा रियासत के छोटे राजा देवेश्वर नरायन सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने पिता शारदा नरायन सिंह से कहानियां सुनी हैं। उन्होंने बताया था कि तमाम क्रान्तिकारियों को तिर्वा रियासत में गुप्त रूप से शरण मिलती थी। इसकी भनक कभी भी अंग्रेजी शासकों को नहीं लग पाई। रियासत में बनी गुप्त रास्ताओं से इन क्रान्तिकारियों का आना-जाना रहता था।

क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी दरोगा को पटककर भगा दिया था

तिर्वा। अंग्रेजों को भारत से भागने एवं राष्ट्रप्रेम की भावना का जुनून क्रान्तिकारियों में बढ़ता जा रहा था। 1857 युद्ध के बाद क्रान्तिकारी अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए तरह-तरह के हथकण्डे अपनाने लगे थे। 1942 में ‘भारत छोड़ो नारे ने तो इसमें आग में घी डालने जैसा काम किया था। गांव-गांव क्रान्तिकारी अंग्रेजों के विरोध में योजनाएं बनाने लगे थे। इस आंदोलन की अलख जगाने में तिर्वा के क्रान्तिकारी भी पीछे नहीं रहे। 09 अगस्त को क्रान्ति चौराहे पर तमोली मन्दिर में क्रान्तिकारियों की एक बैठक के दौरान अंग्रेज अफसरों और क्रान्तिकारियों में आमने-सामने भिड़त हो गई। इसमें एक अंग्रेजी दरोगा को क्रान्तिकारियों ने पटक-पटक कर मार भगाया। अंग्रेजो ने गोलियां दागीं। क्रान्तिकारियों ने भागकर अपनी जान बचाई।

रेडियो से मिली थी आजादी की सूचना

आखिर, 15 अगस्त 1947 को क्रान्तिकारियों का सपना पूरा हुआ। अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए। 15 अगस्त 1947 को रेडियो में आजादी की घोषणा सुनते ही पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई थी। जगह-जगह आजादी का जश्न मनने लगा था। गांव, शहरों और गलियों में तिरंगा लहराने लगा।

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