बोले कन्नौज: सरहद से जीत कर लौटे सुविधा की जंग हार रहे
Kannauj News - कन्नौज के पूर्व सैनिकों को अपनी जमीनों और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। घर लौटने पर उन्हें सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने और समाज में सम्मान की कमी का सामना करना पड़ता है। 4500 पूर्व...
कन्नौज। सरहद पर अपने फौलादी इरादों से दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले हमारे जांबाज सैनिक अपने घर में अपनों से ही जंग लड़ रहे हैं। देश की रक्षा कर लौटे तो पता चला कि उनकी जमीनों पर कब्जे हो गए, अब जमीन छुड़ाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। इसके अलावा बदहाल अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए भी उनकी जंग जारी है। जिले में एक कैंटीन भी नहीं है, सामान लेने फतेहगढ़ और कानपुर की कैंटीन में जाना पड़ता है। ऐसी तमाम परेशानियों से जूझ रहे हैं पूर्व सैनिक। ड्यूटी के दौरान देश की सरहदों की सुरक्षा में हर पल तत्पर रहने वाले सैनिक देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर सेवानिवृत्ति के बाद जब अपने गांव या शहर लौटता है तो अपने आपको ठगा महसूस करता है। कारण- लंबे अरसे से अपनों से दूर होते हैं। ऐसे में सगे-संबंधियों और नाते रिश्तेदारों से रिश्ते लगभग टूट चुके होते हैं। भूमि विवाद हो या स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हर मामले में उन्हें परेशान होना पड़ता है। इस दौरान पूर्व सैनिकों की पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं होता है। न हेल्प डेस्क न ही अफसर। पूर्व सैनिकों से इनकी समस्याओं पर आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान ने चर्चा की तो इनका दर्द छलक पड़ा। पूर्व सैनिक विनोद राठौर ने बताया कि सरहद से जीत कर लौटे,सुविधा की जंग हार रहे । कन्नौज के 4500 पूर्व सैनिकों ने अपनी आधी उम्र देश की रक्षा के लिए कुर्बान कर दी और जब घर लौटे तो उन्हें अपनी जमीन पर दूसरों का कब्जा मिला। जमीन को कब्जा मुक्त कराने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे है। पूर्व सैनिक ब्रजपाल सिंह ने बताया कि रिटायर होने के बाद जब यह वापस आते हैं तो इन्हें उम्मीद रहती है कि वह समाज में सम्मान पाएंगे और अपनी जिम्मेदारियों का भी निर्वाहन करेंगे। बावजूद इसके कई जगहों पर खुद को तब उपेक्षित महसूस करते हैं जब उन्हें सम्मान तो दूर सहूलियत तक नहीं मिलती है। पूर्व सैनिकों ने बताया कि किसी मामले में थाने जाना पड़ जाए तो वहां इस तरह से बर्ताव होता है जैसे हम लोग कोई पेशेवर अपराधी हों। इतना ही नहीं अस्पतालों में भी हमारे लिए कोई अलग से काउंटर नहीं है, जहां हम आसानी से स्वास्थ्य सेवाएं लें सकें। देश के लिए आर्मी, एयरफोर्स और नेवी सहित अन्य सैन्य सेवाओं में कन्नौज के कई युवा अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अपनी समस्याओं पर चर्चा करते हुए रिटायर सूबेदार मेजर शंकर सिंह बताते हैं कि हम लोगों के सामने कई समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। कभी गांव में किसी से विवाद हो जाए तो पुलिस उनकी बात को तवज्जो नहीं देती है।
पूर्व सैनिकों के लिए खोली जाए हेल्प डेस्क
पूर्व सैनिक शैलेंद्र सिंह का कहना है कि हर सैनिक अपने जीवन का बड़ा हिस्सा घर से बाहर बॉर्डर पर बिताता है। सेवानिवृत्ति के बाद जब घर लौटते हैं तो भूमि विवादों में उलझना पड़ता है। खेत और प्ल्ॉाट को कब्जा मुक्त कराने के लिए तहसील और अफसरों के दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं, कहा कि पूर्व सैनिकों की समस्याओं के समाधान के लिए सभी विभागों में एक हेल्प डेस्क बने, जहां पर हम अपनी समस्याओं को रख सकें। इसके साथ ही जन प्रतिनिधियों और जिला प्रशासन को शहीद स्मारक पर विचार करना चाहिए। ताकि लोगों को शहीदों के बारे में जानकारी और उनकी वीरगाथा से रूबरू होने का मौका मिले। कहा कि जिले में शहीद स्मारक होने से युवाओं को प्रेरणा तो मिलेगी ही साथ ही शहीदों के परिवार खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे।
शिकायतें
1. जिले के अस्पतालों में पूर्व सैनिकों के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं मिलती।
2. जिला प्रशासन पूर्व सैनिकों के साथ बैठक में तय किए गए मसलों के निस्तारण के प्रति उदासीन।
3. जिले में कोई शहीद स्मारक स्थल विकसित नहीं किया गया। जो एक-दो बने हैं उनकी देख भाल नहीं हो रही।
4. पुलिस थानों में पूर्व सैनिकों के साथ कई बार पुलिसकर्मी करते हैं बदसलूकी व अभद्रता।
5. स्थानीय शहीदों के नाम पर नहीं रखे जाते परियोजनाओं के नाम।
6. आर्मी कैटीन न होने के कारण कानपुर- फतेहगढ़ जाना पड़ता है। जहां आने-जाने में खर्च ज्यादा हो रहा है। इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए।
सुझाव
1. सरकारी अस्पताल खासकर जिला अस्पताल व मेडिकल कॉलेज में पूर्व सैनिक काउंटर बनें।
2. पूर्व सैनिकों के साथ बैठक में जिन समस्याओं पर प्रशासन से चर्चा होती है उनका निस्तारण हो ।
3. जिले में विकसित किया जाए शहीद स्थल और यहां शहीदों की वीरगाथा दर्शाई जानी चाहिए
4. पुलिस संबंधित मामलों में पूर्व सैनिकों के साथ पुलिस को सहजता से पेश आना चाहिए।
5. जिले में बनने वाली सड़कों या अन्य परियोजनाओं के नाम स्थानीय शहीदों के नाम पर हों।
6. रोजगार से जुड़ी योजनाओं में पूर्व सैनिकों को प्राथमिकता मिले। राज्य सरकार और जिला प्रशासन को पूर्व सैनिकों की मांगों पर विचार करना चाहिए।
बोले-पूर्व सैनिक
देश की सेवा करने के बाद अब जाकर परिवार और घर के लिए समय मिला है, पर कई समस्याएं भी हैं। ब्रजपाल सिंह
पूर्व सैनिक को पुलिस संबंधित मामलों में इतनी राहत तो मिले कि जब तक जांच न हो उन्हें पुलिस परेशान न करे।-अनिल
पूर्व सैनिकों के साथ बैठक में जिला प्रशासन समस्याओं के निस्तारण का भरोसा दिलाते हैं, पर करते नहीं हैं।-देवकी नंदन
जिले में बनने वाली सड़कें व परियोजनाएं स्थानीय शहीदों के नाम पर हों। ताकि उन्हें सम्मान मिले।दीपेंद्र सिंह चौहान
हमारे लिए जिले के अस्पतालों में कोई सुविधा नहीं है। पूर्व सैनिकों के लिए अलग से काउंटर होना चाहिए। -विमलेश
बोले जिम्मेदार
अ.प्रा. जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल रोहित भटारा ने बताया कि जिले में ईसीएचएस को लेकर उच्चाधिकारियों को पूर्व में पत्र लिखकर इसकी मांग की जा चुकी है। एक बार फिर से कैंटीन और ईसीएचएस के लिए पत्राचार किया जाएगा। अस्पतालों और पुलिस थानों में पूर्व सैनिकों की सहूलियत को लेकर जिला प्रशासन से बात की गई है। -
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।