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सबके ख्वाबों का घर बनाते हैं अपने ख्वाबों की कीमतें देकर

Kannauj News - कन्नौज के दिहाड़ी मजदूरों को काम की कमी और ठंड में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मजदूरों का कहना है कि उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है और सरकार की योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा। कई मजदूर बिना...

Newswrap हिन्दुस्तान, कन्नौजWed, 19 Feb 2025 05:51 PM
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सबके ख्वाबों का घर बनाते हैं अपने ख्वाबों की कीमतें देकर

कन्नौज। शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूं मैं... मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूं मैं। मशहूर शायर राजेश रेड्डी ने यह शेर किसी मजदूर की मजबूरियां महसूस करके ही लिखा होगा। शहर के श्रमिक अड्डे पर यह ‘शेर‘ जगह-जगह झलकता है। इन अड्डों पर न साया है न पानी और टायलेट के इंतजाम। काम मिलने की गारंटी भी नहीं। समाज और सरकार दोनों से ही इन्हें उपेक्षा ही मिलती है। खुले आसमान के नीचे सर्दी में सड़क के किनारे खड़े दिहाड़ी मजदूर परेशान हैं कि आज भी कोई काम मिलेगा या नहीं। मिल गया तो परिवार खुश हो जाएगा नहीं तो फिर आधे पेट का ही खाना मिलेगा। काम की तलाश में बाजार में खड़े मजदूर रिजवान ने पूछते ही कहा कि क्या करोगे बाबू हमारी समस्या जानकर। कुछ बदलने वाला नहीं है। कई साल से ऐसे ही खुले में काम की तलाश में खड़े होते हैं। कहीं कोई छाया नहीं है। पानी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। सर्दी, गर्मी और बारिश में ऐसे ही पकते हुए हम लोगों की जिंदगी कीचड़ जैसी हो गई है। सरकार हमारे लिए कम से कम एक जगह तो चिन्हित कर ही सकती है, जहां हम काम की तलाश में खड़े हो सकें। हम जहां पर खड़े होते हैं वहां से दुकानदार और आसपास के लोग फटकार कर भगा देते हैं। दिहाड़ी मजदूरों की समस्याओं पर आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान ने इनसे बात की तो इनका दर्द छलक पड़ा। दिहाड़ी मजदूर नौसाद ने बताया कि सबके ख्वाबोंं का घर बनाते हैं अपने ख्वाबों की कीमतें देकर। हमें यहीं खुले आसमां के नीचे खड़ा होना पड़ता है। मजदूर दिनेश ने बताया कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं अच्छा जीवन स्तर देने की आस लेकर सुबह घर से निकलता हूं। भीषण गर्मी हो या सर्दी हम मजदूर अपने परिवार के लिए सुबह से शाम तक कड़ी मेहनत कर पसीना बहाते हंै। तब जाकर 300 से 400 के बीच की मजदूरी मिल पाती है। इसके साथ ही महीने में 10 से 15 दिन ही काम मिल पाता है। मजदूर पप्पू ने बताया कि लगातार काम लेने के लिए दलाल या ठेकेदार को भी अपनी कमाई से कुछ हिस्सा देना पड़ता है। काम करने के दौरान कभी-कभी मजदूर हादसे का शिकार भी हो जाता है। ऐसे में मजदूर को दोहरी मार झेलनी पड़ती है। मजदूरों का कहना है कि श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन करने वाले श्रमिकों को हादसे में मुआवजे की व्यवस्था है। बावजूद इसके अधिकांश मजदूर पंजीकृत नहीं हैं। जबकि दिहाड़ी मजदूरी कर हम लोग अपना परिवार पालते हैं। इतना ही नहीं जागरूकता की कमी के चलते मजदूरों की श्रम विभाग की योजनाओं की जानकारी नहीं होती। इसके चलते भी मजदूर वंचित हो रहे हैं।

कैंप लगाकर बनाए जाएं श्रमिकों के आयुष्मान कार्ड

दिहाड़ी मजदूर चंद्र कुमार ने बताया कि मजदूरों को सरकार की कोई योजना का लाभ भी नहीं मिल पाता है। हम लोगों को आयुष्मान कार्ड भी नहीं बनाया गया। मजदूरी से जीवन भर जैसे तैसे पेट पालने के बाद जब बुढ़ापा आता है हम लोगों का जीवन काफी दुखदायी बन जाता है। ऐसे में सरकार को कैंप लगाकर आयुष्मान कार्ड बनवाना चाहिए। साथ ही सरकार को लेबर पेंशन भी देनी चाहिए। हमारी गाड़ी कमाई तो ठेकेदार खा जाता है काम मिलने की लालच में हम लोग मजबूरन ठेकेदार के अंडर में ही काम करते हैं। स्वतंत्र रूप से काम नहीं मिल पाता। लेबर बाजार नहीं है जिसके चलते हम लोगों को काम नहीं मिल पाता।

काम है कम, मजदूर ज्यादा नहीं मिलता सही मेहनताना

मजदूर राजकुमार का कहना है कि चौराहे पर काम के लिए रोजाना सैकड़ों मजदूर आते हैं, लेकिन कुछ को ही काम मिल पाता है। काम की कमी और मजदूरों की संख्या ज्यादा होने से सही से मेहनताना भी नहीं मिलता है, अगर कोई लेबर किसी काम के 400 रुपये मांगता है तो वहीं खड़ा दूसरा लेबर उसी काम को 300 रुपये में करने के लिए तैयार हो जाता है। ऐसे में काम का सही मेहनताना भी नहीं मिल पाता है। दरअसल दिक्कत यह नहीं कि कोई कम रुपये में काम को राजी हो जाता है। संभव है कि कम रुपये में काम को तैयार साथी के हालात कुछ खराब हों, रुपये की जरूरत उसे ज्यादा हो। योजना ऐसी बनें कि रोज काम मिले और काम के दाम तय हों।

शिकायतें

1. इस भीषण सर्दी से बचने के लिए अलाव के इंतजाम भी नहीं किए गए हैं, न तिरपाल आदि लगाया गया। जहां खड़े होकर काम मिलने का इंतजार कर सकें।

2. सर्दी के चलते मजदूरी नहीं मिल रही है। मनरेगा से काम भी लगभग बंद है। शाम को खाली हाथ घर पहुंचते हैं तो खाने के लाले तक पड़ जाते हैं।

3. अगर किसी दुकान के आसपास या प्रतिष्ठान के सामने खड़े हो जाते हैं तो तुरंत दुकानदार संचालक हटा देता है

4. कोई यूनियन नहीं है। न सरकारी योजनाओं की जानकारी मिल पाती है, न ही उनका लाभ।

5. कई दैनिक मजदूरों को अब तक आयुष्मान सहित कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका।

6. दैनिक मजदूरी तय न होने के चलते ठेकेदार और बिचौलिए उठाते हैं फायदा ।

सुझाव

1. इस भीषण सर्दी से बचाव के लिए सुबह चिल्ला रोड पर जहां मजदूर खड़े होते हैं, वहां अलाव जलवाए जाएं।

2. मजदूरी न मिलने की दशा में परिवार का भरण-पोषण हो सके, इसके लिए सरकारी योजनाओं में काम मिले।

3. श्रम विभाग से चलने वाली योजनाओं की जानकारी दी जाए जिससे हम लोग भी सरकारी योजनाओं का लाभ ले सकें।

4. मनरेगा में दिहाड़ी मजदूर बनाए जाने के साथ काम भी दिए जाएं, हर हाथ को काम मिल सके और भटकना न पड़े।

5. मजदूरों के लिए कोई एक स्थायी जगह चिन्हित कर दी जाए।

6. अफसर और जनप्रतिनिधियों को हमसे मिलकर हमारी समस्याएं सुननी चाहिए। मजदूरों के स्वास्थ्य जांच के लिए महीने में एक बार कैंप लगाया जाए। जिससे उनके साथ परिवार का भी जांच हो सके।

बोले मजदूर

सर्दी में हम लोग काम की तलाश में चौराहे पर बैठे रहते हैं। यहां पर जिला प्रशासन ने अलाव की व्यवस्था भी नहीं कराई है। -रज्जन

आज तक हम लोगों की कोई भी बैठक नहीं की गई और न ही कोई अधिकारी हमसे हमारा सुख-दुख पूछने आया। हम ठगा सा महसूस करते हैं। -नौसाद

मजदूरी से जीवन भर जैसे तैसे पेट पालने के बाद जब बुढ़ापा आता है, तो जीवन काफी दुखदाई बन जाता है ऐसे में पेंशन मिलनी चाहिए। - दिनेश

हमारी गाढ़ी कमाई तो ठेकेदार खा जाता है काम मिलने के लालच में हम लोग मजबूरन ठेकेदार के अंडर में ही काम करते हैं।-पप्पू मिस्त्री

बोले जिम्मेदार

श्रम प्रवर्तन अधिकारी नवनीत कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि श्रमिकों को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके अलावा सरकार से श्रमिकों के लिए आने वाली योजनाओं के बारे में बताया जा रहा है। हालांकि जहां तक श्रमिकों के लिए स्थान की बात है तो इसके लिए प्रयास किया जाएगा। जो भी दिक्कतें होंगी उसे ठीक कराएंगे। बचे हुए श्रमिक अपना पंजीकरण और नवीनीकरण कराएं ताकि उन्हें योजनाओं कालाभ मिल सके।

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