बोले कन्नौज: बीड़ी बनाने में खप गई पीढ़ी..अब थक गए हैं
Kannauj News - कन्नौज में बीड़ी बनाने के काम में लगे श्रमिकों को कम मजदूरी और स्वास्थ्य जांच की कमी का सामना करना पड़ रहा है। पहले हजारों लोग इस काम में थे, अब उनकी संख्या आधी रह गई है। श्रमिकों का कहना है कि कम पैसे...
कन्नौज। डब्ल्यूएचओ सहित कई संगठनों ने समय-समय पर बीड़ी बनाने के काम को खतरनाक बताते हुए कारीगर और मजदूरों के लिए चिंता व्यक्त की है। इसके बाद भी परिवार का पेट पालने के लिए बीड़ी कारीगर और मजदूर अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर इस काम में दिनरात लगे हैं। तय मजदूरी भी न मिलने व नियमित स्वास्थ्य जांच न होने से वे हताश हैं। यही कारण है कि पहले जहां हजारों लोग बीड़ी बनाते थे, अब संख्या आधी रह गई है। इत्र के लिए मशहूर कन्नौज में बीड़ी कारोबार भी बड़े पैमाने पर होता है। यहां कई कारखाने हैं, जिनमें तैयार हुई बीड़ी न सिर्फ कन्नौज बल्कि, दूसरे शहरों में भी जाती है। बावजूद इसके कन्नौज में बीड़ी कारीगर संकट में हैं। इसके दो प्रमुख कारण हैं। एक- सरकार द्वारा तय मजदूरी भी न मिलना। दूसरा- नियमित स्वास्थ्य जांच न होना। वह भी उस स्थिति में जब बीड़ी बनाने के उद्योग में लगे मजदूरों को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में कुछ साल पहले के मुकाबले बीड़ी मजदूरी करने वाले लोगों की तादाद काफी घट गई है। मजदूरों को मलाल है कि एक सामान्य मजदूर कुछ घंटे तक काम करके पांच सौ रुपये तक कमा लेता है लेकिन बीड़ी मजदूर दिन भर की मेहनत के बाद भी 160 रुपये से अधिक नहीं कमा पाता। बीड़ी कारीगरों का कहना है कि इतनी कम मजदूरी के चलते उनकी नई पीढ़ी यह काम नहीं करना चाहती है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान ने बीड़ी मजदूरों ने उनकी समस्याओं पर बात की तो उनका दर्द छलक उठा। बीड़ी मजदूर जगपाल ने कहा कि बीड़ी बनाने में खप गई पीढ़ी..अब हम थक गए हैं।
कन्नौज में करीब एक सैकड़ा बीड़ी कंपनियां हैं। बीड़ी उद्योग से जुड़ी कई नामचीन कंपनियों का माल भी यहीं तैयार होता है। बीड़ी बनाने के काम में जिले के करीब चार लाख लोग जुड़े हैं। जो अपने घरों या कारखानों में बीड़ी बनाने का काम करते हैं। बीड़ी बनाने का काम करने वाले श्रमिकों को इसके बदले कंपनी के ठेकेदार रुपये देते हैं। बीमारियों के खतरे के बीच बीड़ी बनाने के काम में लगे मजदूरों को उनकी मेहनत के बदले सरकार द्वारा तय पारिश्रमिक की जगह ठेकेदार कम रुपये देते हैं। मुख्य रूप से गुरसहायगंज इलाके में बीड़ी बनाने का कारोबार काफी बड़े पैमाने पर होता चला आ रहा है। इसके अलावा समधन, तालग्राम, कुसुमखोर सहित सैकड़ों गांवों में लोग बीड़ी कारोबार से जुड़े हैं। बीड़ी मजदूर रामसागर ने बताया कि पूरा परिवार इस काम से जुड़ा है। बीड़ी कंपनियों के लोग यहां आते हैं और श्रमिकों को मटेरयिल देकर चले जाते हैं। मजदूर रामचंद्र ने कहा कि बीड़ी कंपनियां उनकी मेहनत के पैसे पर डाका डाल रही हैं। सरकार द्वारा प्रति हजार पर 163 रुपये निर्धारित हैं। जबकि बीड़ी कंपनियों के ठेकेदार मजदूरों को प्रति हजार पर 80 से 100 रुपये ही देते हैं। बीड़ी कारीगरों ने कारीगरी के साथ-साथ स्वास्थ सुविधाओं और सरकारी योजनाओं का लाभ दिए जाने की मांग की है। कुछ बीड़ी कारीगरों और मजदूरों ने कहा कि बीड़ी के काम में अब कोई फायदा नहीं है।
कम पैसों के कारण काम छोड़ रहे हैं बीड़ी श्रमिक
बीड़ी कारीगरी का पहिया धीरे-धीरे अपनी पटरी से उतर रहा है। मौजूदा दौर में बीड़ी उद्योग कारोबारियों और श्रमिकों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। बीड़ी कारोबार की गिरती साख का सबसे बड़ा कारण मजदूरी कम होना माना जा रहा है। जिस कारण कारीगरों को अपना भरण-पोषण करना दुश्वार हो गया है। कारीगर लगातार घंटों काम करने के बाद भी कुछ समय ओवर टाइम करते हैं ताकि वह अपनी आय में वृद्धि कर सकें। बीड़ी कारीगरी में दिहाड़ी पूरी न होने के कारण उन्होंने अपने बच्चों को दूसरे कामों में लगा दिया है।
शिकायतें
1. पूरे दिन काम करने के बाद घर खर्च पूरा नहीं हो पाना सभी शिकायतों में सबसे बड़ी।
2. कम पैसों में गुजर बसर नहीं होने से छोड़ रहे बीड़ी कारीगरी।
3. बीड़ी मजदूरों का समय-समय पर स्वास्थ्य चेकअप न होना भी काम छोड़ने की एक बड़ी वजह।
4. कारीगरों को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ न मिलता है।
5. नेताओं ने पेंशन बनवाने का वादा किया था लेकिन अभी तक सुनवाई नहीं हुई।
6. जागरूकता कैंप लगाकर योजनाओं की जानकारी दी जाए।
सुझाव
1. बीड़ी कंपनियों को मजदूरों और कारीगरों का लगातार स्वास्थ्य चेकअप कराना चाहिए।
2. कारीगर की मजदूरी 160 रुपये से बढ़ाकर 300 रुपये प्रति हजार होना चाहिए।
3. सरकार को पक्के मकान बनाकर देना चाहिए, जिससे वह अपना जीवन यापन कर सकें।
4. सरकार को कारीगरों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर उनका प्रत्येक महीने चेकअप कराना चाहिए। जिससे वे स्वस्थ रहें।
5. कारोबारियों व मजदूरों के लिए योजनाएं बनाई जाएं, जिससे वे अच्छे से जीवन यापन कर सकें।
बोले- बीड़ी मजदूर
मजदूरी कम होने के कारण अब तक हजारों लोगों ने काम छोड़ दिया। इस काम से अब घर चलाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। -जगपाल
बीड़ी कारीगरों को योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। उद्योग को बढ़ावा देने के लिए श्रमिकों को आवास योजना का लाभ मिले। -रामसागर
बीड़ी कारोबार को गुटखा और तंबाकू के प्रचलन ने ठप कर दिया है। बीड़ी का प्रयोग गांव-देहात तक सीमित है।-वाहमद
बीड़ी उद्योग बिल्कुल खत्म होने की कगार पर है। अब बीड़ी में गुजर बसर नहीं हो पा रहा है इसलिए बच्चों को अन्य काम सिखा रहे हैं। -धर्मेंद्र
बीड़ी श्रमिकों के लिए गुरसहायगंज में एक अस्पताल बनाया गया है। इस अस्पताल में सिर्फ ओपीडी ही चलती है। -जलालुद्दीन
बोले जिम्मेदार
श्रम प्रवर्तन अधिकारी कीर्ति कुरील ने बताया कि बीड़ी श्रमिकों की जो समस्याएं हैं उनके निस्तारण के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। जहां तक बात कम मजदूरी की है तो इसकी शिकायत करें। जिस भी कंपनी द्वारा कम पैसा दिया जा रहा है, जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी। योजनाओं के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
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