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पसीना बहा कर फूल उगाएं हम दाम तय करें आढ़तिए ..नहीं चलेगा

Kannauj News - कन्नौज में फूलों की खेती करने वाले किसान कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। फूल मंडी की कमी और दामों के निर्धारण में बिचौलियों की मनमानी से किसान हताश हैं। उन्हें दैवीय आपदा के समय मुआवजा नहीं मिलता है,...

Newswrap हिन्दुस्तान, कन्नौजThu, 20 Feb 2025 01:10 AM
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पसीना बहा कर फूल उगाएं हम दाम तय करें आढ़तिए ..नहीं चलेगा

कन्नौज। कन्नौज इत्र नगरी के नाम से पूरी दुनिया में जाना जाता है। कई दशकों से यहां फूलों से बने शुद्ध इत्र का व्यापार होता आ रहा है। जिले में 200 हेक्टेयर में हो रही फूलों की खेती से पांच हजार किसान जुड़े हैं। इतनी बड़ी तादाद में फूलों की खेती होने के बाद भी जिले में फूल किसानों को कई समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है। फूल मंडी न होना और किसानों को अपने फूल के दाम तय करने की छूट न मिलना सबसे बड़ी समस्या है। इत्र उद्योग फूलों की खेती पर निर्भर है लेकिन यहां के फूल किसान कड़ी मेहनत और महंगी लागत के बावजूद अपनी फसल का वाजिब मूल्य न मिलने से हताश हैं। उनका कहना है कि अगर हमारी मंडी हो और ट्रांसपोर्ट की सुविधा हो तो हमें फूलों के अच्छे दाम मिल सकते हैं। किसान जयवीर सिंह व अखिलेश सिंह कहते हैं कि शासन व जिला स्तर से हमारे लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं। यहां केवल आढ़ती और इत्र व्यापारियों के द्वारा तय किए गए दाम पर अपने माल को बेचना हमारी मजबूरी बन गई है, जबकि पसीना बहा कर फूल उगाएं हम, दाम तय करें आढ़तिए..अब यह नहीं चलेगा। कन्नौज में लगभग बीस हजार लोग इत्र उद्योग पर निर्भर हैं। इत्र कारोबार की वजह से ही यहां के किसान अन्य फसलों की अपेक्षा फूलों की खेती बड़ी तादात में करते हैं। जिले के करीब पांच हजार किसान लगभग 200 हेक्टेयर में केवल फूलों की खेती कर रहे हैं। साल में यहां करीब 70 से 80 करोड़ का फूल कारोबार होता है। इत्र उद्योग को बढ़ावा देने के लिए शासन स्तर से यहां एफएफडीसी (सुगंध एवं स्वाद विकास केंद्र) का निर्माण कराया गया। जहां समय-समय पर खुशबू को लेकर अनुसंधान भी होते रहते हैं। कार्यशालाओं का आयोजन कर इत्र व्यापारियों को अत्याधुनिक तकनीक से इत्र उत्पादन को बेहतर बनाने के अलावा कम लागत में अधिक उत्पादन करने की जानकारी भी दी जाती है। जिसका फायदा उठाकर इत्र व्यापारी कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। वहीं फूल किसान लगातार उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान ने जब फूल किसानों से बात की तो उनका दर्द छलक उठा। उन्होंने कहा कि सरकार फूल किसानों को भी अन्य फसलों में जोड़कर नुकसान का मुआवजा दे। इसके साथ ही स्थायी फूल मंडी भी उपलब्ध कराए। जबकि इत्र उद्योग की रीढ़ कहे जाने वाले फूल किसान पिछले कई दशकों से पारंपरिक खेती पर निर्भर हैं। यही वजह है कि किसानों को भी कड़ी मेहनत और महंगी लागत के अनुसार लाभ नहीं मिल पा रहा है। फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

फूलों की खेती करने वाले प्रताप सिंह के मुताबिक उनकी फसल का मूल्य निर्धारण इत्र व्यापारी और फूल आढ़ती मनमाने ढंग से करते हैं जिससे किसानों को अक्सर घाटा उठाना पड़ता है। फूल किसान अव्यवस्थाओं और असुविधाओं के साथ उत्पीड़न झेल रहा है । एक अन्य किसान रमाकांत ने कहा कि दैवीय आपदा एवं मिठुरा रोग से कभी-कभी फूलों की पूरी फसल नष्ट हो जाती है। दैवीय आपदा में अन्य फसलों पर मुआवजा मिलता है, पर फूल किसानों को कोई राहत नहीं मिलती। फूल किसान इत्र व्यापारी एवं आढ़तियों की मनमानी के बीच पिसता जा रहा है। फूल की खरीद करने वाले आढ़तियों को निश्चित कमीशन मिल जाता है। वहीं इत्र व्यापारी भी अपने सामान को लागत मूल्य से बढ़ती दर पर बेच कर मुनाफा कमाते हैं, किसानों का नुकसान होता है और हर साल घाटा उठाकर कर्ज में दब रहे हैं। फूल किसानों ने बताया कि अगर फूल मंडी बन जाए तो हमे इधर उधर भटकना नहीं पड़ेगा। और फूल के अच्छे दाम भी मिल सकेंगे। इस समस्या को दूर किया जाए।

फूल मंडी नहीं होने से नहीं मिलते सही दाम

इत्र उद्योग के लिए देश-विदेश में पहचान बनाने वाले कन्नौज में किसान फूलों की खेती पर निर्भर हैं। कड़ी मेहनत और लागत के बाद किसान फूल की खेती करते हैं जिनकी बिक्री के लिए उन्हें फूल आढ़ती एवं व्यापारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। फूलों की बिक्री के लिए जिले में कोई भी अधिकृत फूल मंडी नहीं है जिससे उन्हें सही दाम नहीं मिल पाता है।

दैवीय आपदा से नुकसान की नहीं होती है भरपाई

फूलों की खेती करने वाले किसानों को कभी-कभी जोखिम भी उठाना पड़ता है। दैवीय आपदा एवं फसल में लगने वाली बीमारी से कभी-कभी फूलों की पूरी फसल नष्ट हो जाती है। दैवीय आपदा आने पर अन्य फसलों के नष्ट होने पर मुआवजा मिलता है, पर फूल किसानों को कोई राहत नहीं मिलती।

शिकायतें

1. बिचौलियों की वजह से फूल किसान को उनकी उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पाता ।

2. सीधे इत्र व्यवसायी किसान से नहीं जुड़ पाते जिससे उनको फूलों के रेट कम या ज्यादा होने की जानकारी नहीं मिल पाती।

3. मौसम की मार से फसलें खराब होने पर किसान को कोई मुआवजा नहीं मिल पाता ।

4. किसान को आधुनिक खेती के तरीके पता नहीं होने के चलते पारंपरिक तरीके से ही खेती होती है।

5. फूलों की खरीद फरोख्त के लिए जिले में कोई अधिकृत मंडी नहीं है।

सुझाव

1. फूल की खेती के लिए अनुदान के साथ नुकसान की हालत में मुआवजे की व्यवस्था होनी चाहिए ।

2. फूलों के दाम तय करने को जिला प्रशासन को दखल करना चाहिए ताकि बिचौलियों का खेल खत्म हो ।

3. फूलों की खेती से जुड़े किसानों से इत्र व्यवसायियों का सीधा संपर्क होना चाहिए ।

4. अन्ना पशुओं की समस्या पर लगाम लगनी चाहिए, ताकि किसान की खेती सुरक्षित रहे।

5. फूलों की न्यूनतम बिक्री दर निर्धारित होने पर फूल किसान नुकसान से बच सकते हैं।

बोले किसान

हम लोग परंपरागत ढंग से खेती कर रहे हैं। संसाधन न मिलने से कभी-कभी नुकसान भी झेलना पड़ता है। -श्याम जी

फूलों के दाम किसानों के मुताबिक होने चाहिए न कि आढ़ती तय करें। प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए।-जयवीर सिंह

आलू, गेहूं, मक्का की फसल बर्बाद होने पर जिस तरह सरकार से राहत मिलती है। वैसे फूल किसान को भी मिले। -रामजी

दैवीय आपदा एवं फसल में रोग लगने पर पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। सरकार से कोई राहत नहीं मिल पाती है। -रामराज

अक्सर फूलों में मिठुरा रोग लग जाता है। जिससे उपज कम होती है और फूलों की कीमत कम मिलती है।-रमाकांत

बोले जिम्मेदार

उद्यान अधिकारी सीपी अवस्थी ने बताया कि जिले में फूलों की खेती करने वाले किसानों के लिए सरकार की ओर से प्रशिक्षण और अनुदान की व्यवस्था है। जहां तक रही बात रेट तय करने की तो इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इस तरह के फैसले नीतिगत होते हैं जो शासन स्तर से ही तय किए जा सकते हैं। स्थायी फूल मंडी के लिए शासन स्तर पर प्रयास जारी है।

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