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बेपनाह दुश्वारियों से मुकाबला करने को मजबूर छोटी सी आशा

Kannauj News - कन्नौज में आशा बहुएं स्वास्थ्य विभाग की पहली कड़ी हैं, लेकिन उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों में बैठने की व्यवस्था नहीं है और उन्हें प्रोत्साहन राशि मिलती है, जो महंगाई के कारण...

Newswrap हिन्दुस्तान, कन्नौजWed, 19 Feb 2025 06:18 PM
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बेपनाह दुश्वारियों से मुकाबला करने को मजबूर छोटी सी आशा

कन्नौज। स्वास्थ्य विभाग की पहली और मजबूत कड़ी हैं आशा बहू। सर्दी, गर्मी और बारिश कोई भी मौसम हो और कैसी भी परिस्थति हो हर समय आपके द्वार पर मौजूद रहने वालीं आशा बहुएं शिकायतों, दर्द और अनगिनत समस्याओं से जूझ रही हैं। आशा बहुओं के लिए विभाग इतना उदासीन है कि केंद्रों में उनके बैठने का ठिकाना तक नहीं है। अस्पतालों में वसूली, गर्भवती महिलाओं के तीमारदारों द्वारा अभद्रता इनसे आम है। आशा बहुओं ने आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से साझा की अपनी समस्याएं। उन्होंने सुझाव भी बताए। कन्नौज में सबसे निचले पायदान पर रहकर लोगों को स्वास्थ्य महकमे से जोड़ने की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी आशा बहुएं खुद को उपेक्षित महसूस कर रही हैं। इनकी तमाम समस्याएं हैं और तमाम आशाएं भी हैं । इन आशा बहुओं की समस्याओं पर आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान ने इनसे बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा। अर्चना ने बताया कि अस्पताल में हम लोगों से पैसे वसूले जाते हैं। रुपये न देने पर कई परेशानियां आती है। वसूली बंद होनी चाहिए। वहीं मंशा देवी ने कहा आशा बहुओं के लिए अस्पतालों में बैठने की व्यवस्था की जानी चाहिए। रात में रुकने पर सुरक्षा की भी व्यवस्था होनी चाहिए।मातृ शिशु मृत्यु दर पर बढ़ती चिंताओं के बीच साल 2005 में आशा बहुओं की अवधारणा अमल में लाई गई थी। गरीब और निचले तबके को स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ने के क्रम में यह बहुत ही महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। करीब दो दशक से आशा बहुएं अपनी कामकाजी और आर्थिक परिस्थितियों में सुधार की आस लगाए लगातार काम कर रही हैं। वर्तमान में 1472 आशा बहुओं की बड़ी पीड़ा यह है कि इनको आंगनबाड़ी की तरह मानदेय न देकर प्रोत्साहन राशि या ‘इंसेंटिव दिया जाता है। वहीं ब्लॉक मुख्यालयों, स्वास्थ्य केंद्रों पर होने वाली बैठकों में शामिल होने के लिए यात्रा भत्ता के तौर पर 150 रुपये से लेकर प्रसव कराने के लिए 600 तक के बीच इंसेंटिव दिया जाता है। अब यदि ब्लाक मुख्यालय के अलावा दूसरे केंद्र पर प्रसव होता है तो उसका प्रमाण पत्र लेना होता है। इसके एवज में आशा बहू शोषण की शिकार होती हैं।

आशा बहू सरोज ने बताया कि स्वास्थ्य केंद्रों पर बैठने तक की व्यवस्था नहीं होती। इसके अलावा अस्पताल में थोड़ी से भी लापरवाही होती है तो गर्भवती महिला के परिजन हमें इस परेशानी का जिम्मेदार मानते हैं और उनसे बदसलूकी करने लगते हैं। ऐसे में हमें सुरक्षा मिलनी चाहिए।

माधुरी ने बताया कि स्वास्थ्य केंद्र जाने तक ही थक जाते हैं लेकिन वहां पर बैठने तक की जगह नहीं मिलती है। केंद्रों पर खड़े होकर डॉक्टरों या विभागीय कर्मचारियों का घंटों इंतजार करना पड़ता है। आशा बहू राधा का कहना है कि इतनी महंगाई में हमको प्रोत्साहन नहीं निश्चित मानदेय दिया जाए। इतनी महंगाई में भत्ते से गुजारा नहीं होता।

शिकायतें

1. आशा बहुओं को कोई फिक्स मानदेय नहीं मिलता, इसकी जगह प्रोत्साहन राशि दी जाती है।

2. अधिकतर आशा बहुएं मोबाइल पर ऑनलाइन काम करने में सक्षम नहीं है इससे परेशानी पेश आती है ।

3. अस्पतालों में आशा बहुओं को बैठने या रात में रुकने के लिए कोई पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं।

4. जिले के सभी पीएचसी और सीएचसी पर अल्ट्रासाउंड और जांचों की व्यवस्था होनी चाहिए।

5. महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है आशा बहुओं को लगभग 20 साल पहले तय प्रोत्साहन राशि ही मिल रही।

6. कागज जमा करने और प्रसव प्रमाण पत्र जमा करने और लेने में अवैध वसूली की जाती है, जिससे आशा बहुएं काफी परेशान होती हैं।

सुझाव

1. आशा बहुओं से डाटा फीडिंग जैसे काम मोबाइल की जगह कागजों पर करवाए जाएं। इससे काम करने मेंआसानी होगी।

2. अस्पतालों में रात को रुकने के लिए अलग से एक कक्ष बनाया जाए। जिससे रात में कोई परेशानी न हो।

3. आशा बहुओं को आंगनबाड़ी की तर्ज पर मानदेय दिया जाए

4. अस्पतालों में आशा बहुओं से की जाने वाली पैसों की वसूली बंद की जाए।

5. सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त जांचों की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि रेफर करने की परंपरा बंद हो।

6. आशा कार्यकत्रियों को ब्लाक वार नहीं नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र वार संबद्ध किया जाए, विभागीय वसूली पर अधिकारी निगरानी करें।

बोलीं आशा बहुएं

हमें प्रोत्साहन राशि के तौर पर जो पैसा मिल रहा है वह नाकाफी है। हम को रात दिन मेहनत करनी पड़ती है। -राधा

आशा बहुएं अपना काम विपरीत हालात में करती हैं। हम को इसके एवज में पर्याप्त पैसा नहीं मिलता। -विनीता

हम को मोबाइल पर ऑनलाइन काम करना पड़ रहा है। अधिक उम्र की आशाओं को दिक्कत हो रही है। -रजनी

आशाओं को सिर्फ डिलीवरी ही नहीं टीकाकरण में भी लगाया जाता है। हमारी मांगों को नहीं सुना जा रहा है। -सरोज

आज महंगाई चरम पर है। सरकार हमारी मांगों पर विचार करे और हमें भी उचित मानदेय दिलाए। -पुनीता शर्मा

बोले जिम्मेदार

सीएमओ डॉ.स्वदेश गुप्ता ने बताया कि सरकारी अस्पतालों मे आशा बहुओं के रुकने के लिए एक रूम की व्यवस्था है। साथ ही अगर किसी मरीज के परिजन आशा बहू के साथ केस बिगड़ने पर लड़ाई-झगड़ा करते हैं। तो आशाएं उसकी शिकायत तत्काल अस्पताल के एमओआईसी से करें। एमओआईसी आशा बहुओं को सुरक्षा उपलब्ध करवाएंगे। कागजात के नाम पर आशाओं से उगाही किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

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