नर्सरी तैयार करके दाम कमाने का किसानों को बेहतर मौका
झांसी में रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों को सजावटी पौधों की कटिंग करके नर्सरी तैयार करने की सलाह दी है। इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी का स्रोत मिलेगा। कटिंग की...
झांसी,संवाददाता। यदि दाम कमाने के लिए किसानों को विकल्प की तलाश है तो बेहतर मौका है कि वह सजावटी पौधों की कटिंग आदि करके नर्सरी तैयार कर सकते है। इससे उनकी जेब भी भारी होगी और रोजगार का नया विकल्प भी तैयार हो जाएगा। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सजावटी पौधों की कटिंग द्वारा नर्सरी तैयार करने की सलाह दी है। डॉ. प्रियंका शर्मा और डॉ. गौरव शर्मा ने बताया कि सजावटी पौधों का सौंदर्यीकरण में एक अहम महत्व है। सजावटी पौधों का प्रवर्धन कर्तनों या कटिंग द्वारा बरसात के मौसम में किया जाता है। कटिंग या कर्तनों वाली विधि से पौधे तीन प्रकार से तैयार किए जाते हैं जैसे कठोर, अर्ध-कठोर एवं शाकीय कटिंग। कठोर कटिंग एक वर्ष पुरानी व परिपक्व शाखाओं से तैयार की जाती है। कटिंग की लम्बाई 15-30 से.मी. होनी चाहिए एवं प्रत्येक कटिंग में कम से कम 3-4 आंखे या गांठे जरुरी होनी चाहिए। कटिंग का ऊपरी भाग तिरछा एवं निचला भाग सीधा कटा होना चाहिए। कटिंग में शीघ्र जड़े उत्पन्न करने के लिए सेरेडेक्स ष्बीष् पाउडर या आई.बी.ए. (इंडोल ब्युटाइरिक एसिड) 1500-2000 मि.ग्रा. प्रति लीटर के घोल में डुबोकर लगाना चाहिए। इसके बाद कटिंग को उपयुक्त मीडियम जैसे रेत, कोकोपीट, परलइट या बराबर भाग में रेत और कोकोपीट मिलाकर बनाये मिश्रण में लगाना चाहिए। कटिंग को दोमट या बलुई मिट्टी में गोबर खाद मिलाकर भी लगा सकते हैं। कटिंग छायादार जगह या शेडनेट हाउस में लगानी चाहिए। कटिंग का लगभग 5-10 से.मी. हिस्सा व एक गांठ मिट्टी में जाना चाहिए। कटिंग लगाने के बाद नियमित रूप से पानी डालना चाहिए। कटिंग में लगभग 1-2 महीनों में जड़ें उत्पन्न हो जाती हैं। कठोर कटिंग से तैयार होने वाली पुष्प झाड़ियां जैसे बोगेनविलिया, क्लेरोडेंड्रोन, टिकोमा, चांदनी, कनेर, गुलाब, हेमेलिया, रात की रानी, गुड़हल इत्यादि हैं। अर्ध-कठोर कटिंग लगभग 6 महीने पुरानी शाखाओं से लेते हैं। इन कटिंग को सेरेडेक्स ष्बीष् पाउडर या आई.बी.ए. (इंट्रोल ब्युटाइरिक एसिड) की मात्रा 1000 मि.ग्रा. प्रति लीटर के घोल में डुबोकर लगाते हैं। अर्ध-कठोर कटिंग से तैयार होने वाली प्रजातियां मोगरा, चांदनी, पारीजात, कनेर, दुरांटा, थुजा, क्लेरोडेंड्रोन, बोगेनवीलिया, गुलाचीन इत्यादि हैं। शाकीय कटिंग पौधे की शाखाओं के नरम एवं ऊपरी भाग से लेते हैं। कलमों के ऊपरी भाग पर 2 - 4 पत्तियाँ छोड़ देते हैं एवं बाकी निचले हिस्से की पत्तियों को निकाल देते हैं। इसके पश्चात् इन कटिंग के निचले भाग को सेरेडेक्स ष्बीष् पाउडर या एन.ए.ए. (नैेपथलीन एसीटिक एसिड) 500 मि.ग्रा. प्रति लीटर के घोल में डुबोकर लगाते हैं। कटिंग लगाने के बाद अच्छी तरह पानी डालना चाहिए। कटिंग को मुरझाने से बचाने के लिए स्प्रे पंप से दिन में दो बार पानी का छिड़काव करना चाहए। शाकीय कटिंग से ज्यादातर गुलदाउदी, कोलियस, डहेलीया, मनी प्लांट, ड्रेसीना, डेफेनबेकिया, छोटी चांदनी, जेड प्लांट, केलेनचू इत्यादि जैसे पौधे हैं।
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