बोले जौनपुर : कारोबार पर दोहरी मार, ऑनलाइन की चुनौती और जीएसटी का वार
Jaunpur News - ऑनलाइन खरीददारी के बढ़ते चलन ने छोटे किराना कारोबारियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। स्थानीय दुकानों की बिक्री में गिरावट आ रही है, जबकि जीएसटी की जटिलताएं छोटे व्यापारियों के लिए नई परेशानी बन गई हैं।...

ऑनलाइन खरीददारी के बढ़ते चलन ने छोटे किराना कारोबारियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ग्राहक अब घर बैठे सामान मंगा रहे हैं, जिससे स्थानीय दुकानों की बिक्री लगातार गिर रही है। दूसरी ओर, जीएसटी की जटिलताएं छोटे व्यापारियों के लिए नई परेशानी खड़ी कर रही हैं। कई दुकानदारों का कहना है कि न तो वे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से मुकाबला कर पा रहे हैं और न ही कर व्यवस्था की उलझनों से निपट पा रहे हैं। प्रशासन से राहत की उम्मीद भी फीकी पड़ती जा रही है। गोमती नदी के गोपीघाट पर जुटे शहर के किराना कारोबारियों ने ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में अपनी कारोबारी समस्या को बताना शुरू किया तो सबके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। कोई उधारी में डूबी पूंजी को लेकर परेशान है तो कोई ऑनलाइन कारोबार की मार झेल रहा है। किसी को पुलिस प्रशासन से शिकायत है तो किसी को जीएसटी की जटिलताओं ने उलझा रखा है। समस्या एक नहीं, कई हैं, और हर व्यापारी की अपनी अलग कहानी। सुतहट्टी स्थित गल्ला मंडी में किराने की थोक दुकान चलाने वाले अभिमन्यु साहू उर्फ़ मन्नू परेशान हैं। कहा कि हमसे उधार लेकर कई कारोबारी पैसा नहीं लौटाते। पूंजी अटकी रह जाती है, आगे का कारोबार ठप पड़ जाता है। पुलिस-प्रशासन के पास जाएं तो वहां सुनवाई आसान नहीं, ऊपर से खर्च भी लगता है। तो हम करें भी तो क्या करें? पूंजी डूब रही है, और जेब में जो थोड़ा-बहुत है, उसे भी फंसा दें, ऐसा कैसे हो सकता है? बस, संतोष कर बैठे हैं।
ऑनलाइन कारोबार से उजड़ते दुकानदार
ओलंदगंज की फल वाली गली में किराना की दुकान चलाने वाले शंभू गुप्ता के चेहरे पर बेबसी साफ दिखती है। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन बाजार ने हमें लगभग खत्म कर दिया है। घर बैठे ही लोगों को सामान मिल रहा है और वो भी हमसे सस्ता। फिर हमारे पास कोई क्यों आएगा? पहले तीन-चार लोगों को काम पर रखते थे, अब अकेले ही दुकान पर बैठे हैं। सरकार को कम से कम यह तो तय करना चाहिए कि 2000 रुपये से कम के सामान की ऑनलाइन बिक्री रोकी जाए। नहीं तो हम पूरी तरह टूट जाएंगे। किराना कारोबारी अभिमन्यु कुमार, विनय और शंभू नाथ गुप्ता ने कहा कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बड़े ब्रांड को बढ़ावा देते हैं जबकि छोटे व्यापारी संकट में हैं। छोटे कारोबारियों का अस्तित्व कैसे बचा रहे, वे अपनी और अपने परिवार की आजीविका कैसे चलाते रहें, इसके बारे में सरकार को जरूर सोचना चाहिए। ऑनलाइन खरीदारी के बढ़ते चलन ने छोटे दुकानदारों पर बहुत बड़ा असर डाला है। पहले ग्राहक स्थानीय दुकानों से सामान खरीदते थे, लेकिन अब ऑनलाइन छूट और घर तक डिलीवरी जैसी सुविधाओं के कारण उनकी निर्भरता ई-कॉमर्स पर बढ़ गई है। यह बदलाव छोटे व्यापारियों के लिए चुनौती बन गया है।
त्योहारी सीजन में पुलिस का उत्पीड़न
शंभू गुप्ता ने एक और मुद्दा उठाया। कहा कि त्योहारों पर हम दुकानों के बाहर कुछ सामान सजाते हैं, ताकि ग्राहकों को आकर्षित कर सकें। ओलंदगंज की फल वाली गली कोई ऐसी गली नहीं है कि इधर चार पहिया वाहनों का आना जाना हो। इस गली में जितनी दुकाने हैं वहां खरीदारी करने वाले ग्राहक ही आते हैं। फिर भी पुलिस हमें परेशान करने आ जाती है। कहते हैं कि जाम लग रहा है, जबकि शहर में जाम की असली समस्या ई-रिक्शा की भरमार और ट्रैफिक पुलिस की निष्क्रियता है। ओलन्दगंज चौराहे के पास हर रोज जाम लगता है, ग्राहक रुकते ही नहीं। अगर प्रशासन चाहे तो पार्किंग की सही व्यवस्था करके यह समस्या खत्म कर सकता है।
अंडरग्राउंड पार्किंग बने, तभी मिलेगी राहत
विनय कहते हैं कि हम व्यापारियों की राय स्पष्ट है। ओलन्दगंज, चहारसू और कोतवाली के आसपास अंडरग्राउंड पार्किंग बने तो जाम से राहत मिलेगी और ग्राहक बेफिक्र होकर खरीदारी कर सकेंगे। सद्भावना के पास लोक निर्माण विभाग की जमीन पड़ी है, वहां भी पार्किंग बनाई जा सकती है। प्रशासन को अगर वाकई व्यापारियों की चिंता है तो पहल करे।
जीएसटी: न निगल पा रहे, न उगल पा रहे
रमाशंकर मौर्य कहते हैं कि सरकार ने कहा था कि 40 लाख से कम टर्नओवर वाले व्यापारियों को जीएसटी की झंझट नहीं होगी, लेकिन हम जैसे छोटे दुकानदारों पर भी दबाव बनाकर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन करवा दिया गया। अब हर महीने सीए और वकील के चक्कर काटने पड़ते हैं । दुकानदारी करें या कागजों में उलझे रहें? समय भी बर्बाद हो रहा है और पैसा भी। विनय की शिकायत इससे भी आगे है। कहते हैं कि हम सुबह सात बजे दुकान खोलते हैं और रात 11 बजे बंद करते हैं। हमारा इतना टर्नओवर भी नहीं कि जीएसटी का बोझ झेल सकें, लेकिन फिर भी हमें इसमें झोंक दिया गया है। सीए रखने का खर्च अलग, कागजात तैयार करने का झंझट अलग। सरकार को छोटे व्यापारियों के लिए इसे सरल बनाना चाहिए। अनिल कुमार, शशिकांत और राजन ने कहा कि हम जैसे छोटे कारोबारी के लिए जीएसटी प्रक्रिया को सरल करने की जरूरत है। हमें अकाउंटिंग और टैक्स फाइलिंग में मुश्किलें आती हैं, जिससे अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। जीएसटी की जटिलताओं के कारण हमें चार्टर्ड अकाउंटेंट और अन्य पेशेवरों की सेवाएं लेनी पड़ती हैं, जो हमारे सीमित मुनाफे में और कटौती कर देती हैं। यदि सरकार छोटे व्यापारियों के लिए विशेष सहायता केंद्र स्थापित करे, तो हमें राहत मिलेगी। इसके अलावा, जीएसटी रजिस्ट्रेशन और रिटर्न फाइलिंग की प्रक्रिया को और सरल बनाना जरूरी है ताकि छोटे व्यापारियों को बिना किसी अतिरिक्त खर्च के इसे पूरा करने में आसानी हो।
ई-रिक्शा चालकों पर अनावश्यक पाबंदी
विनय का कहना है कि हमारे शहर में जाम लगता है, लेकिन इसका ठीकरा हमेशा व्यापारियों और ई-रिक्शा चालकों पर फोड़ा जाता है। हम अपना माल ई-रिक्शा से मंगवाते हैं, लेकिन पुलिस उसे भी रोक लेती है। कहती है कि रात 9 बजे के बाद ही सामान लाओ। अब 9 बजे के बाद हमारे वर्कर घर चले जाते हैं, तो कौन उतारेगा सामान? तीन पहिया वाहनों को हर गली में जाने दिया जाता है, फिर हमारे सामान से लदा ई-रिक्शा क्यों रोका जाता है?
हमारी समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं
सौरभ बैंकर का सवाल गंभीर है। वह कहते हैं कि नगर पालिका यह पड़ताल करे कि किन बाजारों में ग्राहक कम आते हैं और वहां पार्किंग व्यवस्था बनाएं। इससे जाम की समस्या भी कम होगी और बाजारों में संतुलन भी आएगा। लेकिन प्रशासन कुछ करेगा तभी तो? हम व्यापारियों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, लेकिन समाधान कहीं नजर नहीं आ रहा। प्रशासन से गुहार लगाने का कोई फायदा नहीं हो रहा, और सरकार तक आवाज पहुंचती नहीं दिख रही।
किराना व्यापारियों की समस्याएं और समाधान की राह
राजकुमार गुप्ता कहते हैं कि हम किराना व्यापारियों की सबसे बड़ी परेशानी उधारी में फंसी पूंजी है, जो हमारे कारोबार को प्रभावित कर रही है। ऑनलाइन खरीदारी के बढ़ते चलन ने बिक्री घटा दी है, जिससे हम सरकार से छोटे व्यापारियों के लिए सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं। शहर की यातायात व्यवस्था चरमराई हुई है, जिससे ग्राहकों की आवाजाही बाधित होती है। हम व्यापारी प्रशासन से चाहते हैं कि पार्किंग व्यवस्था सुधारी जाए, जीएसटी की जटिलताओं ने छोटे व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है। हमारी परेशानियों को देखते हुए जीएसटी को और सरल करने की जरूरत है।
सुझाव :
व्यापारियों को एक मजबूत उधारी प्रबंधन प्रणाली अपनानी चाहिए और उधारी देने से पहले कानूनी अनुबंध या गारंटी की व्यवस्था करनी चाहिए।
सरकार को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर छोटे व्यापारियों के लिए न्यूनतम मूल्य सीमा तय करनी चाहिए, जिससे उनका कारोबार सुरक्षित रह सके।
प्रशासन को शहर के प्रमुख बाजारों में पार्किंग की बेहतर व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि ग्राहकों को खरीदारी के लिए सुविधाजनक माहौल मिल सके।
सरकार को छोटे व्यापारियों के लिए जीएसटी प्रक्रिया सरल करनी चाहिए और उन्हें कानूनी मदद के लिए विशेष सहायता केंद्र स्थापित करने चाहिए।
प्रशासन को व्यापारिक गतिविधियों में बाधा डालने के बजाय ई-रिक्शा और मालवाहक वाहनों के लिए अलग लेन और समय-सीमा तय करनी चाहिए।
शिकायतें :
उधारी में दिए गए सामान का भुगतान नहीं होने से व्यापारियों की पूंजी फंस जाती है, जिससे उनका व्यवसाय प्रभावित होता है और आगे की खरीदारी में दिक्कत होती है।
ऑनलाइन खरीदारी के बढ़ते चलन ने छोटे दुकानदारों की बिक्री घटा दी है, जिससे उनका मुनाफा कम हो रहा है और कई व्यापारियों की आमदनी लगातार घट रही है।
यातायात अव्यवस्था और पार्किंग की कमी के कारण ग्राहक बाजार आने से बचते हैं, जिससे व्यापार घटता है और दुकानदारों की आय पर असर पड़ता है।
जीएसटी की जटिल प्रक्रियाओं और अनावश्यक कानूनी औपचारिकताओं के कारण छोटे व्यापारियों को अधिक खर्च और समय की बर्बादी झेलनी पड़ती है।
ई-रिक्शा और सामान लाने-ले जाने वाले वाहनों पर पुलिस की रोकटोक से दुकानदारों को जरूरी सामान लाने में परेशानी होती है, जिससे व्यापार बाधित होता है।
व्यापारियों के कोट
उधारी में दिया गया पैसा वापस नहीं मिलता। हमारी पूंजी फंस जाती है, जिससे नया सामान खरीदने में दिक्कत होती है और कारोबार धीमा पड़ जाता है।
अभिमन्यु कुमार
ऑनलाइन खरीदारी से छोटे दुकानदारों की कमाई घट गई है। सरकार को नियम बनाने चाहिए कि 2000 रुपये से कम का सामान ऑनलाइन न बेचा जाए।
शंभू नाथ गुप्त
पार्किंग की व्यवस्था न होने से ग्राहक दुकान तक नहीं पहुंच पाते। हमें अपने बाजारों के पास उचित पार्किंग की व्यवस्था चाहिए।
जयशेंद्र गुप्ता
जीएसटी प्रक्रिया बहुत जटिल है। हमें सीए और वकील पर खर्च करना पड़ता है। सरकार को छोटे व्यापारियों के लिए इसे आसान बनाना चाहिए।
अनिल कुमार
हमारा सामान लाने वाले ई-रिक्शा को पुलिस रोक लेती है। इससे हमारा कारोबार प्रभावित होता है। प्रशासन को स्पष्ट नियम बनाने चाहिए।
विनय कुमार
त्योहारों पर पुलिस हमें बाहर सामान रखने नहीं देती, जबकि सड़कों पर अतिक्रमण और ई-रिक्शा की वजह से जाम लगता है।
रविशंकर मोदनवाल
हमारी दुकानें पहले तीन-चार लोगों को रोजगार देती थीं, लेकिन अब अकेले ही दुकान चलानी पड़ रही है। ऑनलाइन व्यापार ने हमारी कमर तोड़ दी है।
शशिकांत
नगर पालिका को खाली जगहों पर पार्किंग विकसित करनी चाहिए। इससे ग्राहकों को सहूलियत मिलेगी और हमारा व्यापार भी बढ़ेगा।
संजीव साहू
हमारा टर्नओवर 40 लाख से कम है, फिर भी जीएसटी की उलझनों में फंसा दिया गया। छोटे व्यापारियों के लिए इसे सरलीकृत करना जरूरी है।
राजन कुमार
बाजारों में वन-वे व्यवस्था लागू नहीं हो पाती, जिससे जाम लगता है। ट्रैफिक पुलिस को इसे सख्ती से लागू करना चाहिए।
रवि शास्त्री
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बड़े ब्रांड को बढ़ावा देते हैं, जबकि छोटे व्यापारी संकट में हैं। सरकार को लोकल व्यापारियों को राहत देने के उपाय करने चाहिए।
राज कुमार गुप्ता
हम किराना व्यापारी शहर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन प्रशासन हमें सहयोग देने के बजाय आए दिन नए नियम थोपता है।
सतीश गुप्ता
बोले जिम्मेदार:
यातायात सुधार के लिए हो रहा प्रयास, कारोबारी भी करें सहयोग
शहर की यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं। पुलिस की अपनी सीमाएं हैं, लेकिन नगर पालिका प्रशासन और सिटी मजिस्ट्रेट के साथ मिलकर समाधान निकाला जा रहा है। किराना कारोबारियों के सामान लाने वाले ई-रिक्शा को केवल वहां रोका जाता है जहां यातायात बाधित होने की आशंका होती है। सभी रिक्शा चालकों के लिए रूट तय हैं, और नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। यदि किसी व्यापारी को समस्या है, तो वह पुलिस कार्यालय में शिकायत कर सकता है, और समाधान निकालने का पूरा प्रयास किया जाएगा।
आयुष श्रीवास्तव, अपर पुलिस अधीक्षक नगर।
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