जौनपुर: केराकत में पहली बार हुई ड्रम सीडर से धान की बुवाई
ब्लाक के अमिहित स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के मुख्य वैज्ञानिक डा. नरेन्द्र सिंह रघुवंशी की निगरानी में ब्लाक में सोमवार को पहली बार ड्रम सीडर विधि से बुवाई की...
ब्लाक के अमिहित स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के मुख्य वैज्ञानिक डा. नरेन्द्र सिंह रघुवंशी की निगरानी में ब्लाक में सोमवार को पहली बार ड्रम सीडर विधि से बुवाई की गई। इस विधि से थानागद्दी क्षेत्र के भैसा गांव के पांच किसानों गौरव पाठक, सौरभ दत्त सिंह, मेवालाल पाठक, लालबहादुर निषाद और राजेश यादव ने ड्रम सीडर विधि से धान की बुवाई की। बुवाई के समय डा. नरेन्द्र के साथ क्षेत्र के अन्य प्रगतिशील किसान सोहनी गांव के त्रिभुवन सिंह, इन्द्रसेन सिंह, कनौरा गांव के सुनील दत्त और ध्रुव सिंह, कनुवानी गांव के जीत बहादुर वर्मा तथा कृषि विभाग के महीप श्रीवास्तव मौजूद रहे।
डा. रघुवंशी ने बताया कि जो किसान किसी कारण से धान की बुवाई नहीं कर पाए हैं। ऐसे में वे ड्रम सीडर विधि से बुवाई कर सकते हैं। इस विधि से बुवाई करने पर पैदावार कम नहीं बल्कि परम्परागत तरीके से बुवाई या रोपाई की अपेक्षा अधिक होता है।
क्या है ड्रम सीडर
यह अत्यन्त सस्ती और आसान तकनीक है। बीज भरने के लिए चार प्लास्टिक के खोखले ड्रम लगे रहते है जो एक बेलन पर बंधे रहते हैं। ड्रम मे दो पंक्तियों पर 9 मिमीटर व्यास के छिद्र बने होते हैं। ड्रम की एक परिधि मे बराबर दूर पर कुल 15 छिद्र होते हैं। 50 फीसदी छिद्र बंद रहते हैं, बीज का गिराव गुरुत्वाकर्षण के कारण इन्ही छिद्रों द्वारा होता है। बेलन के दोनों किनारों पर पहिए लगे होते हैं। इनका व्यास 60 सेंटीमीटर होता है ताकि ड्रम पर्याप्त ऊंचाई पर रहे। मशीन को खींचने के लिए एक हत्था लगा रहता है। आधे छिद्र बंद रहने पर मशीन द्वारा सूखा बीज दर 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जाता है। पूरे छिद्र खुले होने पर 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। प्रत्येक ड्रम के लिये अलग-अलग ढक्कन बना होता है, जिसमे बीज भरा जाता है। मशीन में पूर्व अंकुरित धान का बीज प्रयोग में लाते हैं। धान की सीधी ड्रम सीडर से बुआई करते समय खेत समतल होना और कीचड़ होना चाहिए। ड्रम सीडर से बुआई के लिए एक बीघा में चार से पांच किलोग्राम बीज लगता है।
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