भरत का भातृत्व प्रेम देख छलक पड़ी दर्शकों की आंखें
फोटो-01 के साथ सिर पर राम का खड़ाऊ रखकर अश्रुपूरित नेत्रों से वापस अयोध्या लौटने लगे तो यह देख दर्शक भी रो पड़े। वन से श्रीराम को वापस अयोध्या लाने क
खुटहन। हिन्दुस्तान संवाद। आदर्श रामलीला धर्म मंडल उसरौली शहाबुद्दीनपुर में शुक्रवार कई प्रसंगों की लीला का मंचन किया गया। श्रीराम के मनावन में भरत का त्याग और निश्छल प्रेम देख दर्शकों की आंखें छलक पड़ी। जब वह गुरु और माताओं के साथ सिर पर राम का खड़ाऊ रखकर अश्रुपूरित नेत्रों से वापस अयोध्या लौटने लगे तो यह देख दर्शक भी रो पड़े। वन से श्रीराम को वापस अयोध्या लाने के लिए भरत हर संभव तरीके से मनाते हैं। लेकिन राम चंद्र जी पिता के बचनों के आगे खुद को असमर्थ बताते हैं। इसका निर्णय महाराज जनक से करने का दोनों भाई आग्रह करते हैं। असमंजस में पड़े जनक ने कहा कि आप दोनों में महान कौन है। यह ब्रह्मा भी तय नहीं कर सकते। राम कर्तव्य और मर्यादा की सीमा हैं तो भरत त्याग और निश्छल प्रेम की परिसीमा। जब प्रेम पराकाष्ठा में अनन्य भक्ति का रूप धर लेता है तो सारे बंधन तोड़ स्वयं ईश्वर को भक्त के पास भागकर आना पड़ता है। वहीं राम मर्यादा और धर्म के शिखर हैं। तीनों लोकों में धर्म से बड़ा कुछ नहीं होता। इस प्रेम, त्याग, मर्यादा और धर्म के द्वंद में देखें तो भक्त भरत का पलड़ा भारी दिख रहा हैं। लेकिन प्रेम सदैव निस्वार्थ होता है। इस लिए भरत तुम श्रीराम के चरणों में बैठ उन्हीं से निर्णय पूछिए। व्याकुल भरत भागकर श्रीराम के चरणों में गिर याचना करने लगते हैं। श्रीराम ने कहा भाई भरत मैं तुम्हारे द्वारा दिए गए राज्य को स्वीकार करता हूं। रामलीला का शुभारंभ विधायक रमेश सिंह ने फीता काटकर किया। इस मौके पर सांवले शर्मा, राधेश्याम उपाध्याय का अभिनय तथा गायक सत्यम मनचला के धार्मिक गीतों को खूब सराहा की गई।
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