बोले जौनपुर : सुविधा न संसाधन, कैसे बढ़े देवभाषा का सम्मान
Jaunpur News - भारत में संस्कृत शिक्षा की स्थिति गंभीर है। जौनपुर में संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। वेतन की असमानता और डिजिटल संसाधनों की कमी के कारण शिक्षकों की...
संस्कृत, जिसे भारत की प्राचीनतम और सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक माना जाता है, आज अपनी ही जड़ों में कमजोर होती जा रही है। मंचों से संस्कृत के गौरव का गुणगान करने वाले नेताओं और नीति निर्माताओं के भाषण जितने जोशीले होते हैं, वास्तविकता उससे बिलकुल उलट हैं। जौनपुर में संचालित संस्कृत विद्यालयों की स्थिति इतनी खराब है कि शिक्षक ही वहां झाड़ू लगाने और ताला खोलने से लेकर प्रशासनिक कार्य करने तक हर जिम्मेदारी निभा रहे हैं। जिन शिक्षकों को ज्ञान के प्रचार-प्रसार में लगे रहना चाहिए, वे स्कूलों में चपरासी का काम करने को मजबूर हैं।
शहर के रासमंडल जुटे संस्कृत विद्यालयों के शिक्षकों ने ‘हिन्दुस्तान के साथ बातचीत की। इस दौरान अपनी समस्याओं को खुलकर बताया। नौकरी कजह से थोड़े हिचके जरूर, लेकिन मन का मलाल बातचीत के दौरान निकाल ही दिए। कहा कि संसाधनों की भारी कमी, कर्मचारियों की अनुपलब्धता और आर्थिक असुरक्षा जैसी समस्याओं ने संस्कृत शिक्षकों को इस कदर परेशान कर दिया है कि वे अपनी जीविका और सम्मान दोनों बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जौनपुर जिले में 40 संस्कृत महाविद्यालय और 37 संस्कृत माध्यमिक विद्यालय हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से केवल 7 विद्यालयों में ही लिपिक और परिचारक नियुक्त किए गए हैं। बाकी विद्यालयों में प्रधानाचार्य खुद या एक-दो सहयोगी शिक्षकों के साथ पूरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इन विद्यालयों में प्रबंधन की स्थिति यह है कि ताले खोलने से लेकर झाड़ू लगाने, परीक्षा की कॉपियां संकलन केंद्र तक पहुंचाने तक का काम खुद प्रधानाचार्य को करना पड़ता है। रामदेव संस्कृत महाविद्यालय, बड़ेरी एक ऐसा उदाहरण है जहां एक भी शिक्षक नहीं है, फिर भी यह विद्यालय किसी तरह चल रहा है। बदलापुर समेत कई विद्यालय सिर्फ प्रधानाचार्य के भरोसे चल रहे हैं। छंगापुर लेदुका संस्कृत विद्यालय में 135 छात्र पंजीकृत हैं, लेकिन यहां भी सुविधाओं का अभाव है। संस्कृत विद्यालयों में फर्नीचर की भारी कमी है, जिससे विद्यार्थियों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है।
जिन विषयों की है मान्यता उसके भी शिक्षक नहीं
संस्कृत विद्यालय शिक्षक समिति जौनपुर के जिलाध्यक्ष डॉ. ज्ञान प्रकाश ने कहा कि संस्कृत माध्यमिक विद्यालयों में इतिहास, नागरिक शास्त्र, विज्ञान, भूगोल, गृह विज्ञान, पौरोहित्य, भारतीय संस्कृति, कम्प्यूटर, प्राच्य विज्ञान और संस्कृत विषय की मान्यता मिली है, लेकिन जिन विषयों की मान्यता है उसके भी शिक्षक नहीं है। ज्यादातर विद्यालयों में संस्कृत, हिंदी और विज्ञान के ही शिक्षक नियुक्त हैं। बाकी विषयों की पढ़ाई कराने के लिए प्रबंधन को निजी स्तर पर प्रयास करना पड़ता है। दिनेश दुबे ने कहा कि संस्कृत शिक्षा की जो स्थिति है, ऐसी स्थिति की कल्पना कभी नहीं की गई थी। अगर अभी भी संस्कृत विद्यालयों पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में ऐसे विद्यालयों का अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा।
वेतन विसंगति और आर्थिक असुरक्षा
संस्कृत शिक्षकों की एक और बड़ी समस्या वेतन की असमानता है। राज्य के अन्य विद्यालयों की तुलना में संस्कृत शिक्षकों को काफी कम वेतन दिया जाता है। उत्तर प्रदेश संस्कृत विद्यालय शिक्षक समिति जौनपुर के अध्यक्ष डॉ. ज्ञानप्रकाश मिश्र ने कहा कि अस्थायी संस्कृत शिक्षकों को 12,000 से 15,000 रुपये मानदेय मिलता है। इतने कम मानदेय में कोई कैसे अपना परिवार चला सकता है। ऐसे शिक्षकों को आजीविका के लिए शिक्षण के अलावा दूसरे काम भी करने होते हैं। डॉ. केके पांडेय का कहना है कि हमारी मांग पुरानी पेंशन योजना की बहाली है। एनपीएस (नई पेंशन योजना) हमें स्वीकार नहीं है, क्योंकि यह हमें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा नहीं देती। संस्कृत विद्यालय जमालपुर के सहायक अध्यापक नरेंद्र प्रताप शुक्ला की मृत्यु हो गई, लेकिन उनके जीपीएफ (भविष्य निधि) का पैसा उनके परिवार को नहीं मिला। संस्कृत शिक्षकों के लिए यह एक गंभीर समस्या है कि उनके फंड का सही इस्तेमाल नहीं हो रहा।
डिजिटल संसाधनों की भारी कमी, कैसे अपग्रेड हो विद्यालय
संस्कृत शिक्षा को आधुनिक बनाने के नाम पर सरकार ने संस्कृत विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा अनिवार्य कर दी, लेकिन समस्या यह है कि दो वर्षों में एक भी कंप्यूटर शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई। संस्कृत विद्यालय छंगापुर के प्रधानाचार्य विनय दुबे ने कहा कि संस्कृत विद्यालयों को अपग्रेड करने की बात सिर्फ फाइलों में होती है। जमीनी हकीकत यह है कि न तो कोई कंप्यूटर शिक्षक है, न ही पर्याप्त डिजिटल संसाधन। अन्य स्कूलों की तरह संस्कृत विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए भी एमडीएम बनना चाहिए।
वेतन की समानता से लेकर प्रशासनिक सुधार तक की जरूरत
संस्कृत शिक्षकों ने वेतन समानता, छात्रवृत्ति वृद्धि और प्रशासनिक सुधार की मांग की है। राकेश कुमार तिवारी, रामकेवल, अमित मिश्रा और विष्णु तिवारी सहित अन्य शिक्षकों ने भी इसी बात पर जोर देते हुए कहा कि सरकार को संस्कृत शिक्षकों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। कहा कि हमारा वेतन अन्य शिक्षकों के समान किया जाए और संस्कृत विद्यालयों में गणित, विज्ञान, भूगोल और कंप्यूटर के शिक्षकों की नियुक्ति हो। अमित मिश्रा ने कहा कि विद्यार्थियों को संपूर्ण शिक्षा देने के लिए अन्य विषयों के शिक्षक होना जरूरी है। रामकेवल ने संस्कृत छात्रों की छात्रवृत्ति न्यूनतम 1000 रुपये तथा आचार्य स्तर पर 2500-3000 रुपये करने की मांग की। वहीं, विष्णु तिवारी ने कहा कि संस्कृत विद्यालयों के लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था बने, जिससे शिक्षकों को समय पर वेतन और अन्य सुविधाएं मिल सकें। राकेश कुमार तिवारी ने कहा कि संस्कृत शिक्षकों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल की जाए। साथ ही, कंप्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति और डिजिटल संसाधनों की व्यवस्था की जाए। उन्होंने विद्यालयों में लिपिक और परिचारक की अनिवार्य नियुक्ति की भी मांग की ताकि शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों से मुक्ति मिल सके।
संस्कृत शिक्षा की वर्तमान स्थिति: एक आत्मचिंतन
विनय दुबे और राकेश कुमार तिवारी ने कहा कि संस्कृत भाषा को लेकर मंचों पर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि संस्कृत विद्यालयों और शिक्षकों की स्थिति लगातार खराब हो रही है। सरकार की ओर से कोई ठोस नीति नहीं बनाई जा रही, जिससे शिक्षकों में असंतोष बढ़ रहा है। दिलीप कुमार और अमित मिश्रा ने कहा कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति और परंपरा का आधार है। यदि सरकार और प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं लेंगे, तो आने वाले समय में संस्कृत शिक्षा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।
स्थिति सुधरे तो देव भाषा का भी हो भला
संस्कृत विद्यालय शिक्षक समिति के प्रवक्ता केके पांडेय ने कहा कि कई विद्यालयों में नामांकित छात्रों की संख्या अधिक है, लेकिन पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। संस्कृत शिक्षा को आधुनिक विषयों के साथ जोड़ने और शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत है, ताकि इन विद्यालयों की स्थिति सुधर सके और संस्कृति भाषा का भी भला हो सकेगा।
सुझाव :
लिपिक और परिचारक की अनिवार्य नियुक्ति हो, ताकि शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों में न उलझना पड़े और वे केवल शिक्षण पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
सभी मान्यता प्राप्त विषयों के शिक्षक नियुक्त किए जाएं, ताकि छात्रों को विज्ञान, गणित, भूगोल और कंप्यूटर जैसे विषयों की भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
संस्कृत शिक्षकों का वेतन अन्य शिक्षकों के समान किया जाए, साथ ही पुरानी पेंशन योजना बहाल हो, ताकि उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
प्रत्येक विद्यालय को डिजिटल सुविधाओं से लैस किया जाए और कंप्यूटर शिक्षकों की नियुक्ति हो, ताकि संस्कृत शिक्षा को आधुनिक तकनीक से जोड़ा जा सके।
संस्कृत विद्यालयों में बुनियादी सुविधाएं जैसे फर्नीचर, शौचालय, पुस्तकालय और विज्ञान प्रयोगशालाएं उपलब्ध कराई जाएं, एमडीएम का भी संचालन हो।
शिकायतें:
जिले के 40 संस्कृत महाविद्यालय और 37 माध्यमिक विद्यालयों में से केवल सात में लिपिक और परिचारक हैं, जिससे बाकी विद्यालयों में शिक्षकों को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है।
विद्यालयों में केवल संस्कृत, हिंदी और विज्ञान के शिक्षक हैं, जबकि अन्य मान्यता प्राप्त विषयों के शिक्षक नहीं हैं, जिससे छात्रों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
संस्कृत शिक्षकों को अन्य शिक्षकों की तुलना में काफी कम वेतन दिया जाता है और नई पेंशन योजना लागू होने से उनकी आर्थिक सुरक्षा खतरे में पड़ गई है।
सरकार ने संस्कृत विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा अनिवार्य कर दी, लेकिन अब तक किसी भी विद्यालय में कंप्यूटर शिक्षक नियुक्त नहीं किया गया है।
बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है, जिससे कई विद्यालय बिना फर्नीचर, प्रयोगशाला और पुस्तकालय के संचालित हो रहे हैं। एमडीएम नहीं बनता।
शिक्षकों के कोट:
विद्यालय में चपरासी नहीं है, झाड़ू लगाने से लेकर परीक्षा की कॉपियां संकलन केंद्र तक पहुंचाने का काम भी हमें ही करना पड़ता है।
दिलीप कुमार गुप्ता
हमारे जीपीएफ का पैसा कहां रखा गया है, इसकी कोई जानकारी नहीं मिल रही है, जबकि यह पूरी तरह से हमारा अर्जित धन है।
रामकेवल यादव
हम चाहते हैं कि पुरानी पेंशन योजना बहाल हो, क्योंकि एनपीएस से हमें सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी तरह की वित्तीय सुरक्षा नहीं मिलती।
विनय दुबे
विद्यालय की बिल्डिंग तो बनी है, लेकिन वहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है, जिससे छात्रों और शिक्षकों को काफी परेशानी होती है।
राकेश कुमार तिवरी
संस्कृत विद्यालयों में सभी विषयों की मान्यता है, लेकिन ज्यादातर जगहों पर केवल संस्कृत और हिंदी के ही शिक्षक उपलब्ध हैं, बाकी विषयों की पढ़ाई प्रभावित होती है।
डॉ. ज्ञान प्रकाश
कंप्यूटर शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है, लेकिन अब तक एक भी संस्कृत विद्यालय में कंप्यूटर शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई है, जिससे छात्र प्रभावित हो रहे हैं।
दिनकर पांडेय
रामदेव संस्कृत महाविद्यालय बड़ेरी में एक भी शिक्षक नहीं है, जिससे वहां पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य पूरी तरह से अंधकार में है।
केके पांडेय
विद्यालयों में न तो फर्नीचर की व्यवस्था है और न ही विज्ञान प्रयोगशाला, जिससे छात्रों को मूलभूत सुविधाओं के बिना ही अध्ययन करना पड़ता है।
रामचंद्र चौबे
संस्कृत विद्यालयों में पढ़ाई बाधित हो रही है, क्योंकि प्रशासन की ओर से शिक्षकों की तैनाती, वेतन सुधार और सुविधाओं की व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
दिनेश दुबे
संस्कृत विद्यालयों में नियुक्ति प्रक्रिया में देरी हो रही है, जिससे कई विद्यालय सिर्फ प्रधानाचार्य के भरोसे चल रहे हैं और शिक्षण व्यवस्था चरमरा रही है।
वाजिश त्रिपाठी
विद्यालयों में सरकारी स्तर पर कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिल रहा, जिससे प्रबंध तंत्र को अपने स्तर से व्यवस्था करनी पड़ती है, जो हमेशा संभव नहीं होता।
विष्णू तिवारी
संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने की बात की जाती है, लेकिन जब विद्यालयों की स्थिति इतनी दयनीय है तो छात्र संस्कृत की ओर आकर्षित कैसे होंगे?
अमित पांडेय
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