श्रीलाल शुक्ल को भूगोल-अर्थशास्त्र के दायरे में न बांधे: मनोज सिन्हा
- लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर्स कोआ´परेटिव (इफको) की ओर से गुरुवार को आयोजित श्रीलाल शुक्ल जन्मशती उत्सव में जुटे साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों ने उनकी रचनाधर्मिता और जीवन यात्रा पर चर्चा की।

लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर्स कोआ´परेटिव (इफको) की ओर से गुरुवार को आयोजित श्रीलाल शुक्ल जन्मशती उत्सव में जुटे साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों ने उनकी रचनाधर्मिता और जीवन यात्रा पर चर्चा की। उनके पहले उपन्यास सूनी घाटी का सूरज, अंगद का पांव, राग दरबारी, आदमी का जहर, मकान, विश्रामपुर का संत, बब्बर सिंह व उसके साथी पर बात हुई। जन्मशती उत्सव के केंद्र में था उपन्यास राग दरबारी। चित्र और पुस्तक प्रदर्शनी का उद्घाटन जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने किया। अभिनेता पंकज त्रिपाठी, अशोक पाठक ने राग दरबारी के अंशों का सजीव पाठ कर अनमोल कृति के किरदारों को जीवंत कर दिया।
उद्घाटन के बाद जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि मेरा निजी मत है कि श्रीलाल शुक्ल को भूगोल, अर्थशास्त्र के नजरिए से न देखा जाए। मैं साहित्यकार तो नहीं हूं लेकिन श्रीलाल शुक्ल के विराट व अमर व्यक्तित्व को पढ़ा है। उन्होंने अपनी रचनाओं क माध्यम से ग्रामीण भावनाओं को स्वर दिया। वह वास्तव में साहित्य की आत्मा थे। मुख्य अतिथि मनोज सिन्हा ने कहा कि मैं मानता हूं कि किसी के जीवन में अकारण कुछ नहीं होता। श्रीलाल शुक्ल ने 1949 में जब सरकारी सेवा की शुरुआत की तो इसके पीछे भी कोई न कोई कारण रहा होगा। उस समय राजनैतिक, सामाजिक क्षेत्र में अनेक घटनाएं हो रही थीं। देश विकास का पहला कदम बढ़ा रहा था। श्रीलाल शुक्ल सरकारी सेवा में रहते हुए भारत में बदलाव के साक्षी ही नहीं बल्कि ‘चेंज ऑफ एजेंट’ की भूमिका में थे। उनका सृजन साहित्य तक ही सीमित नहीं रहा।
शिवपालगंज जैसा दृश्य हर मुल्क में
उप राज्यपाल ने कहा कि आज लोग श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास राग दरबारी की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हैं। मेरी राय है कि राग दरबारी को शिवपालगंज की भौगोलिक स्थिति के रूप में न देखें। लक्षण व चिंतन के रूप में देखेंगे तो दुनिया के हर मुल्क में शिवपालगंज जैसे परिदृश्य आज भी मौजूद हैं। मैं यह जोर देकर कह रहा हूं कि श्रीलाल शुक्ल को भूगोल व अर्थशास्त्र के नजरिए से न दखें। उस समय भारत में गंभीर अन्न संकट था। विदेश से अनाज मंगाना पड़ता था। लाइसेंस राज का बोलबाला था। 72.4 फीसदी किसान कर्ज में डूबा था। उस परिस्थिति में राग दरबारी लिखा गया था।
राग दरबारी श्रीलाल शुक्ल की अलौकिक रचना
मनोज सिन्हा ने कहा कि राग दरबारी में अनेक पत्र हैं। शिवपालगंज के सभी पात्रों के बिना उपन्यास का भव्य भवन खड़ा नहीं हो सकता। भौगोलिक, आर्थिक रूप से देखना छोड़ दें तो राग दरबारी शाश्वत, सर्वव्यापी नजर आएगा। शिवपालगंज जैसा अपराध उस समय अमेरिका में भी था। जिन समस्याओं का चित्रण राग दरबारी में किया गया है वह समीचीन था। श्रीलाल शुक्ल की राग दरबारी अलौकिक रचना है। यदि पढ़ने वाला किसी अंश पर आनंदित होता तो है तो प्रायोजन पूर्ण हो जाता है।