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MLC चुनाव की तरह हो MP, MLA का इलेक्शन तो घट जाएगी नफरत; इकरा हसन चौधरी की गजब दलील

  • कैराना से समाजवादी पार्टी की युवा सांसद इकरा हसन चौधरी ने कहा है कि अगर देश की चुनाव व्यवस्था को बहुलवादी मतदान से वरीयता मतदान की प्रणाली पर लाया जाए तो नफरत की राजनीति में कमी आ जाएगी।

Ritesh Verma लाइव हिन्दुस्तान, लखनऊWed, 25 Dec 2024 08:52 PM
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कैराना से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन चौधरी ने कहा है कि देश की चुनाव व्यवस्था को बहुलवादी मतदान प्रणाली से बदलकर वरीयता मतदान प्रणाली पर लाया जाए तो नफरत में कमी आ जाएगी। इकरा ने एकल संक्रमणीय मत वाले आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation by Means of Single Transferable Vote) प्रणाली अपनाने की वकालत की है। इसी प्रणाली से कुछ राज्यों में विधान परिषद की टीचर, ग्रेजुएट और लोकल बॉडी सीटों के चुनाव वरीयता वोट के आधार पर होते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव अभी जो सबसे आगे वही जीते (First Past the Post System) तरीके से होता है। इसे बहुलवादी चुनाव व्यवस्था भी कहते हैं जिसमें सबसे ज्यादा वोट पाने वाला विजेता होता है भले ही उसे मतदान का 50 फीसदी वोट (बहुमत) ना मिला हो।

आम लोगों की चुनाव में हिस्सेदारी के नजरिए से देखें तो देश की जिन छह राज्यों में विधान परिषद है, वहां शिक्षक, स्नातक और स्थानीय निकाय कोटे की एमएलसी सीटों के लिए चुनाव में मतदाता वरीयता वाला मतदान करते हैं। इस प्रणाली में वोटर चुनाव लड़ रहे सारे उम्मीदवारों को पहली वरीयता, दूसरी वरीयता, तीसरी वरीयता के क्रम में आखिरी कैंडिडेट तक को वोट दे सकता है। इस व्यवस्था में मतगणना की प्रक्रिया थोड़ी जटिल और लंबी होती है लेकिन इसे सबसे समावेशी चुनाव व्यवस्था माना जाता है। वरीयता वाले मतदान की चुनाव प्रक्रिया को आपको आगे समझाते हैं लेकिन पहले इकरा हसन चौधरी ने कहा क्या, वो पढ़ लीजिए।

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इकरा हसन चौधरी ने शालिनी कपूर तिवारी के पॉडकास्ट में बताया कि यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में उनके मास्टर्स का थीसिस चुनावी राजनीति पर ही था। उन्होंने कहा- “हम सिस्टम बदल दें तो बदलाव आ सकता है। अगर चार कैंडिडेट लड़ रहे हैं तो आपको वोट नहीं देना है, उनको रैंक करना है। आप पहली पसंद अपनी पूर्वाग्रह से देंगे लेकिन दूसरे में देखेंगे कि कौन ऐसा संतुलित कैंडिडेट है जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आएगा। इस से हेट स्पीच कम होगा, चरमपंथ खत्म होगा। मैं एक समुदाय से वोट मांग रही हूं तो दूसरे समुदाय को गाली नहीं दूंगी। मैं कोशिश करूंगी कि ज्यादा से ज्यादा लोग मुझे अगर पहला वोट नहीं दे रहे हैं तो शायद दूसरा वोट दे दें। तो मैं सबकी बात करूंगा। सबके सवाल उठाने वाली बात करूंगा। सबको साथ लेकर चलने की कोशिश करूंगा.”

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इकरा हसन चौधरी ने कहा कि इस व्यवस्था में आप सबका वोट हासिल करने की कोशिश करेंगे, सबको साथ लेने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा- “अभी वोट बैंक राजनीति चलती है। भाजपा को मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए। तो वो नफरत फैलाते हैं। लेकिन सिस्टम ही आपको रोक देगा कि आप सबकी बात करें। सबका वोट लेने की कोशिश करें।” जब इकरा हसन से पूछा गया कि सिर्फ बीजेपी का नाम क्यों लिया तो उन्होंने कहा- “बीजेपी ना टिकट देती है, ना वोट चाहती है। बिल्कुल कोने में लगाने की कोशिश करती है। समाजवादी पार्टी में भी सिर्फ मुस्लिमों को टिकट नहीं मिल रहा है। दलित को, पिछड़ों को भी मिल रहा है। भाजपा में आप एक मुसलमान का नाम बता दो। सब लोग, सबको जगह दे रहे हैं। सिर्फ बीजेपी है जो देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह को एक भी टिकट नहीं देती है।”

क्या है एकल संक्रमणीय मत से आनुपातिक प्रतिनिधित्व चुनाव प्रणाली (What is Proportional Representation by Means of Single Transferable Vote Election System)?

भारत में राष्ट्रपति, राज्यों से राज्यसभा सांसदों और विधान परिषदों में विधायक, स्थानीय निकाय, शिक्षक और स्नातक क्षेत्र की सीटों के लिए इसी व्यवस्था से चुनाव होता है। राष्ट्रपति, राज्यसभा और विधानसभा में संख्याबल के आधार पर एमएलसी के चुनाव में आम लोग हिस्सा नहीं लेते। लेकिन विधान परिषद की स्थानीय निकाय सीटों पर ग्राम पंचायत के वार्ड सदस्य से लेकर जिला पंचायत के चेयरमैन तक वोट करते हैं। शिक्षक सीटों के लिए सरकारी शिक्षक और स्नातक सीट के लिए क्षेत्र के रजिस्टर्ड ग्रेजुएट वोटर मतदान करते हैं। भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में विधान परिषद अस्तित्व में हैं।

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इन चुनावों के मतदाता चाहें तो सारे उम्मीदवारों को अपनी पसंद की वरीयता के क्रम में वोट दे सकते हैं। पहली वरीयता का मत देना अनिवार्य है नहीं तो वोट रद्द हो जाता है। कोई उसके बाद चाहे तो आगे का वोट दे या ना दे। अब उदाहरण से समझिए। मानिए कि चुनाव में पांच कैंडिडेट हैं और 1000 वोटर हैं। हर वोटर चाहे तो पांच वरीयता के मत दे सकता है। एक वोटर जिसे पहली वरीयता (First Preference Vote) का मत देना चाहता है, मतपत्र पर उसके नाम के सामने संख्या में 1 लिख देगा। वो किसी और को वोट नहीं देना चाहता तो वो इसके बाद बैलट पेपर को बक्से में डाल देगा। लेकिन वो चाहे तो बाकी चार कैंडिडेट के नाम के सामने भी 2, 3, 4 और 5 लिखकर अपनी पसंद वरीयता में बता सकता है।

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मतगणना में पहले वैध और अवैध मत की छंटनी होती है। आपने गलत तरीके से नंबर लिख दिया या नंबर ऐसी जगह पर लिखा जो दो कैंडिडेट के बीच आपकी पसंद पर संदेह पैदा करे या आपने पहली वरीयता का वोट ही नहीं दिया तो वोट रद्द हो जाता है। मान लीजिए कि 1000 वोटर में 800 वोटर ने मतदान किया और छंटनी में उसमें 50 वोट अवैध निकले। तो कुल वैध मत 750 निकले। इस वोट की गिनती से विजेता चुनने के लिए सबसे पहले बहुमत का संख्या तय किया जाता है जिसे कोटा कहते हैं। कोटा तय करने का फॉर्मूला है। कुल वैध वोट को चुने जाने वाले पद की संख्या में एक जोड़कर भाग दिया जाता है और जो नंबर आता है उसमें एक जोड़ दिया जाता है।

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इस केस में 750 वोट हैं और एक कैंडिडेट चुनना है तो पहले 750 में 2 से भाग देंगे। आया 375। अब इसमें 1 जोड़ देंगे। तो आया 376। जिस कैंडिडेट को मतगणना में सबसे पहले 376 वोट आ जाएगा, वो जीत जाएगा। अगर पहली वरीयता के मतों की गिनती से किसी को 376 वोट ना मिले तो सबसे कम वोट पाने वाले कैंडिडेट को गिनती से निकाल दिया जाएगा और उसे मिले पहली वरीयता के बैलट में दूसरी वरीयता के मत गिनकर रेस में बचे कैंडिडेट में जोड़ दिए जाएंगे। फिर भी अगर कोई 376 वोट तक नहीं पहुंचता है तो फिर बचे चार कैंडिडेट में सबसे कम वोट वाले को बाहर कर दिया जाएगा और उसको मिले पहली और दूसरी वरीयता के बैलट पेपर में बाकी तीन कैंडिडेट को मिले वोट गिनकर उनमें जोड़ दिया जाएगा। इस प्रक्रिया से गिनती तब तक होगी जब तक कोई 376 वोट ना पा ले। नहीं तो फिर तीसरा सबसे कम वोट पाने वाला और फिर दूसरा भी निकाल दिया जाएगा और अंत में विजेता ही बचेगा।

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