Hindustan Special: शुगर को काबू में रखना हुआ महंगा, जांच से लेकर दवा तक के रेट बढ़े
शुगर को काबू में रखना और भी महंगा हो गया है। डायबिटीज की 10 गोलियों के पत्ते की कीमत 15 से 20 रुपए बढ़ गई है। मधुमेह जांच के 25 स्ट्रिप वाले पैकेट पर 80-100 रुपए की बढ़ोतरी हुई। एक महीने में दवा और स्ट्रिप पर करीब 150 रुपए का खर्चा बढ़ा।
डायबिटीज का इलाज और उसे काबू में रखना लगातार महंगा होता जा रहा है। जबकि इस बीमारी की चपेट में बड़ी आबादी है। दवाइयां और जांच की सामग्री महंगी हुई है, डाक्टरों की फीस भी बढ़ गई है। साथ में कई और तरीकों से मरीजों की जेब में सेंध लग रही है। शुरूआत डाक्टरों से करते हैं। एक सामान्य फिजीशियन की फीस 500 रुपए है। जैसे-जैसे इनका कद बढ़ता जाएगा, मरीज को एक हजार से लेकर 2 हजार रुपए तक की फीस अदा करनी होगी। यहां से जांच और इलाज की प्रक्रियाएं शुरू हो जाती हैं।
पहले दवाइयों की बात कर लेते हैं। सामान्य डायबिटिक मरीज के लिए 10 गोलियों के एक पत्ते की कीमतों में 15 से 20 रुपए बढ़ गए हैं। रोग जिस स्तर का होगा, डाक्टर अधिक कांबीनेशन लिखता है तो यह कीमत और भी बढ़ जाती है। लैब में एक बार जांच कराने पर 100 से 150 रुपए लगते हैं। जबकि साल में दो से तीन बार होने वाले 'एचबी ए-1 सी' जांच के लिए 200 से 250 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। घर पर जांच कराने के लिए ग्लूकोमीटर का सहारा लेना पड़ता है। इसकी 25 स्ट्रिप का पैकेट पर 80 से 100 रुपए की बढ़ोत्तरी हो गई है। बीते तीन महीनों में हुई इस बढ़ोत्तरी के बाद हर माह मरीज की जेब से करीब 150 रुपए अतिरिक्त का खर्चा बढ़ गया है।
माह में 800 रुपए का न्यूनतम खर्च
सामान्य शुगर के मरीज के लिए आने वाली 10 गोलियों का पत्ता 110 से 130 रुपए के बीच है। औसत 120 रुपए प्रति पत्ते के हिसाब से महीने में तीन पत्ते चाहिए। यानि 360 रुपए खर्च होंगे। जांच के लिए 25 स्ट्रिप का पैकेट करीब 400 का है। पांच ओर जोड़ें तो करीब 440 की पड़ेंगी। करीब 800 रुपए का खर्चा हर माह होगा। इसमें डाक्टर की फीस नहीं है।
डाक्टरों की ओपीडी में भी वसूली
किसी भी फिजीशियन के पास जाइए, रिसेप्शन पर अब शुगर, बीपी और वजन की जांच की जाती है। बीपी और वजन फ्री में होता है। लेकिन शुगर की जांच के लिए 50 से 100 रुपए तक फीस में जोड़ लिए जाते हैं। जबकि यह जांच भी ग्लूकोमीटर से की जाती है। एक स्ट्रिप का खर्चा बमुश्किल 8 से 10 रुपए के बीच आता है। यहां भी मरीज की जेब कटती है।
कारण और जांच के तरीके
- सेंट्रल ओबेसिटी से हैं ज्यादा मरीज
भारतीयों के भोजन में गेंहूं, चावल आदि से कार्बोहाइड्रेड की मात्रा अत्याधिक हो जाती है। शुगर भी ज्यादा लेते हैं। हमारे बीएमआई में भी फर्क है। अमेरिका से तुलना करें तो वहां के लोगों की हड्डियां ज्यादा चौड़ी और मजबूत, शरीर खुले, त्वचा और फैटी लेयर मोटी है। यहां तोंद निकलने (सेंट्रल ओबेसिटी) से अधिक लोग डायबिटीज की चपेट में आ जाते हैं।
- खाली पेट और लंच के बाद हो जांच
विशेषज्ञों की मानें तो खाली पेट के बाद दोपहर के भोजन के बाद ही जांच करनी चाहिए। कारण यह कि भारतीय परिस्थितियों में लोग हैवी नाश्ता नहीं करते हैं। इसलिए उसे भोजन नहीं मानना चाहिए। अधिकतर लोग दोपहर को ही सर्वाधिक खाते है। इसलिए लंच के ठीक दो घंटे के बाद जांच करनी चाहिए। दो जांचों से ही स्थिति पता चल जाती है, ज्यादा की जरूरत नहीं है।
इन लोगों का रखना है ध्यान
- बुजुर्ग-बीमारों में लो शुगर का खतरा
हाई शुगर की अपेक्षा कम स्तर ज्यादा खतरनाक है। खासकर बुजुर्ग या किसी बीमारी से ग्रसित रोगी के साथ डाक्टर थोड़ी रियायत करते हैं। उसे मानकों से थोड़ा-बहुत ऊपर या नीचे रहने की छूट दी जाती है। यहां शुगर के गिरने यानि 'हायपोग्लाइसीमिया' का खतरा नहीं उठाया जाता। ऐसे लोग अगर शुगर का स्तर कम होने पर कहीं गिर जाते हैं तो उन्हें शारीरिक चोट पहुंच सकती है।
- प्रेग्नेंसी और कम उम्र वाले रहें सतर्क
गर्भवती स्त्रियां और 25 से 45 साल आयु वर्ग के लोगों को डायबिटीज के मानकों का शत-प्रतिशत पालन करना चाहिए। जवान लोग भागदौड़ करके इसका स्तर नियंत्रित रख सकते हैं। बुजुर्ग या अधिक बीमार ऐसा नहीं कर सकते। यही हाल गर्भावस्था के साथ है। यहां अगर शुगर को काबू में नहीं रखा गया तो गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ माता को भी दिक्कतें हो सकती हैं।
भ्रांतियों छोड़ अपनाएं तकनीकी
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर करें विश्वास
बीपी का अंतर्राष्ट्रीय मानक 80-120 है। कुछ लोगों में भ्रांति है। लेकिन यह 'इंटरनेशनल डायबिटिक फैडरेशन' और भारत में 'रिसर्च सोसायटी फार स्टडी आफ डायबिटीज इन इंडिया' तय करता है। प्रयोगशाला और ग्लूकोमीटर की जांच में 10 से 20 एमजी तक का अंतर हो सकता है। डाक्टरों को भी यह पता है। इसलिए रीडिंग के मुताबिक ही इलाज तय करते हैं।
- 'सीजीएमएस' रखती है 24 घंटे नजर
कंटीनुअस ग्लूकोज मानीटरिंग सेंसर (सीजीएमएस) मशीनें भी प्रचलन में हैं। यह अपने आप दिन में 50 बार तक शुगर की जांच कर सकती हैं। जिन लोगों की शुगर अचानक बहुत ज्यादा या कम हो जाती है, उनके लिए यह मशीन वरदान है। यह सेंसर्स के जरिए डेटा लेकर चिप में स्टोर करती है। इससे डायग्राम भी बनता है, डाक्टरों को इससे स्तर का पता चलता है।
जेब को इससे मिलेगी राहत
- जनऔषधि केंद्रों पर 65 फीसदी सस्ती
डाक्टर जो भी दवाएं लिखता है उसका एक फार्मूला होता है। इसे ड्रग कांबीनेशन कहते हैं। मेडिकल स्टोर्स पर यह दवाएं बहुत महंगी हैं। जेब को राहत देने के लिए इन दवाओं को जनऔषधि केंद्रों से खरीदा जा सकता है। यहां दवाएं 65 फीसदी या किन्हीं मामलों में इनसे भी सस्ती हैं। केंद्रों के संचालक इंटरनेट पर दवा का फार्मूले देखकर उसके दूसरे विकल्प दे देते हैं।
- महंगा नहीं औसत ग्लूकोमीटर खरीदें
बाजार में सबसे महंगे, औसत और सस्ते ग्लूकोमीटर हैं। इसलिए आर्थिक स्थिति के मुताबिक ही फैसला करना चाहिए। महंगे ग्लूकोमीटर में लगने वाली जांच की स्ट्रिप भी उसी ब्रांड के मुताबिक महंगी होंगी। जबकि सस्ते की सस्ती। इसलिए बीच का रास्ता अपनाना चाहिए। यह लगातार चलने की प्रक्रिया है, इसलिए आनलाइन कंपनियों की छूट का फायदा लिया जा सकता है।
वरिष्ठ फिजीशियन और डायबिटीज विशेषज्ञ, डा. अरविंद जैन ने कहा कि बेशक इसकी जांच और दवाएं महंगी हुई हैं। लेकिन डाक्टर की सलाह के बिना दवाएं छोड़ना, डोज बढ़ाने आदि की जरूरत नहीं है। दूसरी बड़ी बात यह कि अपने डाक्टर पर पूरा भरोसा करें। अगर जवान हैं तो कसरत, योगा, व्यायाम, उचित खानपान के जरिए शुगर को काबू में रखा जा सकता है। बुजुर्गों और मरीजों के साथ ढील देने का काम भी डाक्टर उनकी स्थिति को देखकर करते हैं।
आगरा में डायबिटीज मरीजों की स्थिति
(राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वे-5 के मुताबिक)
महिला
हाई शुगर:- 141-160 मिली ग्राम (4.7 फीसदी)
वेरी हाई:- 160 एमजी से अधिक (4.5 फीसदी)
हाई और वेरी हाई:- 140 एमजी, दवाएं लेने वाले (10 फीसदी)
पुरुष
हाई शुगर:- 141-160 मिली ग्राम (5.8 फीसदी)
वेरी हाई:- 160 एमजी से अधिक (5.0 फीसदी)
हाई और वेरी हाई:- 140 एमजी, दवाएं लेने वाले(11.6फीसदी)
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