Hindi NewsUttar-pradesh NewsHardoi NewsThe hospital was drowned in silence

सन्नाटे में डूब गए थे अस्पताल

Hardoi News - हरदोई। कार्यालय संवाददाता लॉकडाउन के बाद दूसरे दिन जिले में कोई कोरोना पॉजिटिव केस...

Newswrap हिन्दुस्तान, हरदोईWed, 24 March 2021 10:51 PM
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हरदोई। कार्यालय संवाददाता

लॉकडाउन के बाद दूसरे दिन जिले में कोई कोरोना पॉजिटिव केस नहीं आया था लेकिन दहशत चौतरफा फैल चुकी थी। जिन कंधे पर लोगों को सेहतमंद बनाए रखने का भार था वे भी तमाम तरह की आशंकाओं से घिरे थे। अस्पतालों में मरीज से लेकर अधिकांश तीमारदार तक गायब हो चुके थे। जो मरीज पहले से वार्डों में भर्ती होकर उपचार करा रहे थे उनका हालचाल लेने वाला न तो कोई रिश्तेदार था और न ही कोई कर्मी।

जिला अस्पताल में केवल सैंपल लेने की व्यवस्था एक रिजर्व कक्ष बनाकर की गई थी। दूसरे दिन आपाधापी का माहौल इस कदर हावी था कि सैंपल लेने के लिए कोई वाहन का इंतजाम नहीं हो सका था। उच्चाधिकारियों के निर्देश आने के बाद कोविड-19 के उपचार के लिए बावन कस्बे के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को चिह्नित किया था। वहां पर एलवन अस्पताल बनाने की तैयारी पर मंथन हुआ। जिला अस्पताल में चेकअप कराने के लिए भी जाने से लोग कतराते थे। छह डॉक्टरों की टीम बनाकर ड्यूटी पर लगाई गई थी। इनमें फिजीशियन डा. आदित्य झिंगुरन की अगुवाई में नर्स व अन्य चिकित्सक शामिल किए गए थे। जिला अस्पताल के गेट पर सुरक्षा कर्मी तैनात थे।

खास बात यह थी कि कोरोना कक्ष के आसपास किसी को जाने नहीं दिया जा रहा था। बैरीकेटिंग लगा दी गई थी। स्वास्थ्य विभाग के सफाई कर्मचारी से लेकर अन्य चिकित्सक तक उस ओर जाने की हिम्मत नहीं जुटा रहे थे। मल्लावां, बिलग्राम, सण्डीला, पिहानी समेत अन्य कस्बों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी सन्नाटा पसर गया था। ओपीडी सेवाओं को देखने वाला स्टाफ मास्क लगाए नजर आ रहा था। वे एक से दो मीटर दूर ही मरीज को रोककर दवा दे हे थे।

दूर से देखकर दी गई दवाएं

कोरोना के उस दौर में चिकित्सक खुद को बचाने के लिए अलर्ट थे। मरीजों को हाथ व आला तक लगाने से डर रहे थे। आपात स्थिति में जिसे चेक करते थे ग्लब्स पहनने के बाद ही चेक करते थे। हाथों को बार-बार सेनेटाइज करते थे। दवा का पर्चा तक सेनेटाइज किया जाता था।

बुखार खांसी के लिए अलग काउंटर खोला गया

दूसरे दिन ही बुखार व खांसी से पीड़ित मरीजों को विशेष काउण्टर पर भेजा जाता था। तुरंत सवाल दागा जाता था कि बाहर से आए हैं या यहीं रह रहे हैं? यदि कोई बाहर से आने को कहता था तो उससे फौरन विशेष काउंटर पर भेजकर थर्मल स्क्रीनिंग व लक्षण चेक किए जाते थे। फिर कोरोना की जांच के लिए सैंपल लिया जाता था। पीपीई किट पहनकर जाने वाले स्वास्थ्य कर्मी दूर से ही उनकी फोटो खींचते थे।

परदेश से वापसी करने लगे थे प्रवासी

परदेश में रहने वाले नौजवान घर लौटने लगे थे। रोडवेज बसें उनके आने का सहारा बनी थीं। कुछ नौजवान अपनी बाइकों पर सवार होकर दिल्ली, गजियाबाद आदि शहरों से लौट रहे थे। शहर में नुमाइश चौराहे पर पुलिस कर्मी उनको सेनेटाइज कराने के लिए सक्रिय थे।

पुलिस कर्मियों में भी जांच के दौरान थी दहशत

पुलिस कर्मियों की जिला अस्पताल में स्वास्थ्य चेकअप कराया गया था। कोरोना से युद्ध लड़ने के लिए सड़कों पर तैनात सिपाही से लेकर दरोगा तक सैंपल देते वक्त सहमे-सहमे से नजर आए। हालांकि मुश्किल हालात के बावजूद उन्हें अधिकारी मोटीवेट कर जिम्मेदारियों का एहसास करा रहे थे।

मैं समाज का दुश्मन हीं पोस्टर देकर किया जागरूक

लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई के साथ ही उन्हें जागरूक करने के लिए गांधीगीरी भी की गई। पुलिस कर्मियों ने बाइकों पर सवार होकर कई सवारी समेत बैठकर जाने वालों को मैं समाज का दुश्मन हूं। मैं घर पर नहीं रहूंगा, पोस्टर थमाए। उन्हें रोकने के बाद इज्जत के साथ जागरूक किया गया। हिदायत भी दी गई कि दुबारा निकले तो पोस्टर देकर नहीं बल्कि कार्रवाई करके समझाएंगे।

ब्लड बैंक में तैनात टेक्नीशियन अकील खान ने बताया कि लॉकडाउन के समय दहशत भरा था। कोरोना से संक्रमित मरीजों का सैंपल लिया। लेकिन ऐसे समय में भी उन्होंने अपनी मां की भी ड्यूटी निभाई। करीब 6 महीने तक घर भी छोड़ना पड़ा। शहर के एक होटल में क्वारंटीन होकर ड्यूटी करनी पड़ी। फिलहाल अब इस बीमारी के बारे में जानकारी हो चुकी है। वैक्सीन भी आ चुकी है। अब इस जंग को जीतने में कोई खास दिक्कत नहीं होगी।

एसीएमओ डॉ. स्वामी दयाल ने कहा कोरोना काल में लोगों को इस महामारी के विषय में कोई जानकारी नहीं थी। इस बीमारी को कैसे रोका जा सकेगा या कैसे बचाव किया जा सकेगा। इन सब बातों को लेकर सब कुछ सीखना था। जिसके खातिर लोगों में दहशत का माहौल था फिर भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों ने मिलकर इस कोरोना वायरस की जंग जीतने के लिए ड्यूटी की। कोविड-19 नियमों का पालन करना चाहिए। मास्क अवश्य लगाएं। सैनिटाइजर का प्रयोग करें। हाथों को बार-बार धुलते रहें। साथ ही नींबू की चाय का भी सेवन करते रहें ताकि शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मिलती रहे।

कोविड अस्पताल के अधीक्षक डॉ.मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि जब जनपद में कोरोना वायरस का प्रकोप फैला तो उनके पिता ने निर्भीक होकर लोगों की सेवा करने के लिए कहा। सैनिकों की तरह उन्होंने कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ी। उन्हें एलटू श्रेणी के मरीजों का इलाज करने की अस्पताल में जिम्मेदारी मिली। जहां पर उन्होंने इतनी अच्छी व्यवस्था दी कि उनके यहां सीतापुर लखीमपुर तक के मरीजों का इलाज किया। लोगों को ठीक करने में सफलता हासिल की। उनका कहना है अब पहले से लोगों को इस महामारी के बारे में जानकारी हो चुकी है। फिलहाल अपने को किस तरह से बचा सकते हैं। यह भी जानकारी हो गई है।

108-102 एंबुलेंस के जिला प्रोग्राम मैनेजर विख्यात सक्सेना ने बताया कि 22 मार्च को जब लॉकडाउन लगा तो उसी दिन बदायूं से हरदोई के लिए उनका ट्रांसफर हुआ था। यहां 23 मार्च को आया। यहां पर पूरी व्यवस्था अस्त-व्यस्त थी। ऐसी दशा में मेज पर लेटकर सोना पड़ा। उसके बाद धीरे-धीरे मैंने व्यवस्थाओं को संभाला और इस कोरोना की जंग में ड्यूटी को निभाया। साथ ही कर्मचारियों को कैसे बचाया जाए। इसके लिए एंबुलेंस में पार्टीशन लगवाया। ताकि कर्मी सुरक्षित रहें। उन्होंने बताया कि जनपद में 47 एंबुलेंस की गाड़ी है। जिसमें 10 फीसदी एंबुलेंस को ड्यूटी में लगा दिया गया है।

जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ. एके शाक्य ने बताया जिले में कोरोना के दस्तक देने के बाद जो भी हालात आए वह वास्तव में दहशत भरे थे। कोरोना महामारी जिसके विषय में लोगों को कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन फिर भी उनके विभाग की ओर से अपने जान की परवाह न करते हुए कोरोना से जंग जीती है। जनपदवासियों का कोरोना के खिलाफ जारी जंग में नेतृत्व भी किया। स्वास्थ्य प्रशासन के समस्त अधिकारी व कर्मचारी कोरोना वायरस तन्मयता के साथ काम किया। विपरीत हालातों में रहे। तरह-तरह के आशंकाओं के बीच अपने मन के डर को दूर करके आगे बढ़े और लोगों को स्वस्थ करने में कामयाब रहे।

कोरोना काल में आप अपने अनुभव व सीख हमें व्हाट्सएप नंबर 9621025196

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