टोपी कारोबारियों को रोटी के लाले
टोपी कारोबारियों को रोटी के लाले
कस्बा हाथों से बनी टोपी के लिये काफी प्रसिद्ध है। लगभग तीन दशक से यहां के सैकड़ों लोग टोपी का कारोबार करते चले आए हैं। पूरे साल टोपी बिक्री का काम चलता है और रमजान में इसकी सप्लाई देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक होती है। लेकिन इस बार कोरोना दीवार बन गया। खपत न होने से टोपी बनाने वालों का माल जहां का तहां डंप है। मुनाफे के सपने देखने वालों की लागत तक डूब गई है।
चाइना की बनी टोपियों ने हाथ की बनी टोपियों को काफी हद तक मात दी है। लेकिन इसके बावजूद यहां के लोग टोपी से कारीगर अच्छा कमा लिया करते हैं। लेकिन कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन ने टोपी कारोबारियों की हालत पतली कर दी है। ईद से एक महीना पहले बिक्री शुरू हो जाती थी पर अबकी सन्नाटा है। बाहरी व्यापारी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं।
टोपी कारोबारी नसीम अंसारी ने बताया कि प्रति टोपी की बुनाई कम से कम आठ रुपये देना होता है। इसके अलावा धागा, धुलाई व पैकिंग आदि का खर्चा होता है। जिसकी खरीद 120 रुपये प्रति दर्जन की दर से पड़ जाती है। फिर 140 रुपये के दाम से बिक्री हो जाती है। अब खरीदार न होने से ऐसे हालात में लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। कारोबारी तंजीम खान का कहना है कि बहुत सी टोपी बिना पैक व बिना धुली लगी हैं। कोई पूछ नहीं रहा है। नफा तो दूर लगाई गई पूंजी तक नहीं निकलेगी। इस बार गोपामऊ की टोपियां कैद होकर रह गई हैं। बहरहाल अगर हालात ऐसे ही रहे तो गोपामऊ की मशहूर टोपी कहीं लुप्त न हो जायें यहां के लोगों को इस बात का डर सता रहा है।
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