बांध न बनने से मेला आयोजन का स्थान लगातार सिमट रहा, हजारों बीघा भूमि समा गई गंगा में
समस्याभूमि समा गई गंगा में -अधपकी फसलें काटना बनती है किसानों की मजबूरी -आए साल नुकसान होने पर भी नहीं मिल पाता कोई मुआवजा फोटो नंबर 209 इमरान अली ग
गढ़मुक्तेश्वर। अमरोहा के तिगरी धाम की तर्ज पर गढ़ साइड में गंगा किनारे पक्का बांध न बन पाने से भूकटान की गंभीर समस्या न रुकने के कारण पौराणिक खादर मेला स्थल लगातार सिमटता जा रहा है। जिससे अपने खेतों में मेला भरने से किसानों के साथ ही श्रद्धालुओं को भी पड़ाव डालने को भूमि तलाशने में चौतरफा मार झेलनी पड़ती है। भैया दूज के बाद गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान में हर साल पौराणिक कार्तिक गंगा स्नान मेला भरता है। जिसका अतीत महाभारत काल के विनाशकारी युद्ध से जुड़े होने की धार्मिक मान्यता प्रचलित है। करीब तीन दशक पहले तक यह मेला गंगा नदी के तट से जुड़ी ग्राम समाज की सरकारी भूमि के रेतीले मैदान में भरता था, परंतु अमरोहा के तिगरी धाम में पक्का बांध बनने से गंगा नदी की जलधारा उससे टकराकर गढ़ की साइड में बड़ी तेजी के साथ कटान करती आ रही है। जिससे हजारों बीघा सरकारी और किसानों की निजी भूमि कटान होने से गंगा की जलधारा में समा चुकी है। परंतु इसके बाद भी कटान का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। गंगा का कटान होने से कार्तिक मेला आयोजन के दौरान भूमि की उपलब्धता तेजी के साथ घटती जा रही है, जिससे सरकारी भूमि की बजाए मेले का आयोजन किसानों की निजी भूमि में होने लगा है। क्षेत्रीय किसानों द्वारा काफी अरसे से गढ़ साइड में पक्का बांध बनाने की मांग उठाई जा रही है, परंतु आश्वासनों के सिवाय उस पर आज तक कोई अमल नहीं हो पाया है। पक्का बांध ही सारी समस्याओं का असल निदान है, क्योंकि इससे भूकटान रुकने पर लक्खी मेला फिर से सरकारी भूमि में भरने लगेगा और किसानों को आए साल बरसात के सीजन में अपने खेत गंगा की जलधारा में बहने की समस्या से निजात मिल जाएगी।
--दनपदीय सीमा विवाद स्वत: ही निपट जाएगी और किसानों को अधपकी फसल काटने को भी मजबूर नहीं होना पड़ेगा
गंगा किनारे भूकटान होने से हापुड़ और अमरोहा के बीच चली पिछले कई दशकों से जनपदीय सीमा विवाद की गंभीर समस्या बनी हुई है, जो दोनों जनपदों के कई किसानों की जान तक ले चुकी है। तिगरी धाम की तर्ज पर गढ़ साइड में पक्का बांध बनने से जनपदीय सीमा विवाद समस्या का स्वत: ही निस्तारण होने के साथ ही मेले के दौरान किसानों को अपनी अधपकी फसल काटने को भी मजबूर नहीं होना पड़ेगा। किसानों का कहना है कि शासन प्रशासन द्वारा अपनी निजी भूमि में मेले भरने की एवज में किसानों को मुआवजा तो दूर बल्कि कोई फसलों के नुकसान का हर्जाना तक भी नहीं मिल पाता है।
--क्या कहते हैं किसान
किसान प्रेमराज, मेवासिंह, नौबत राम, बलबीर का कहना है कि गंगा का कटान रोकने के उद्देश्य से अगर शीघ्र ही पक्का बांध नहीं बनवाया गया, तो फिर वह दिन ज्यादा दूर नहीं है जब खेतों के साथ ही खादर के कई निकटवर्ती गांवों की आबादी भी गंगा की जलधारा में समा जाएगी। क्योंकि इस बार भी हजारों बीघा भूमि में कटान होने से गंगा की जलधारा करीब आधा किलोमीटर क्षेत्र को लांघकर गढ़ वाली साइड में आ गई है।
-क्या कहते हैं जन प्रतिनिधि
क्षेत्रीय विधायक हरेंद्र तेवतिया का कहना है कि मेला संपन्न होने के बाद गंगा किनारे पक्का बांध बनने की कवायद प्रारंभ हो जाएगी, क्योंकि उनके द्वारा लगातार की जा रही मांग को स्वीकार करते हुए योगी सरकार ने तिगरी धाम की तर्ज पर पक्के बांध को मंजूरी दे दी है। जिस पर सौ करोड़ से भी अधिक की रकम खर्च होनी है।
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