धर्म की स्थापना के लिए शब्द मय अवतार है भागवत: इंद्रेश महाराज
- 13, 14 हापुड़, संवाददाता। नगर के एलएन पब्लिक स्कूल रोड पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन इंद्रेश म
नगर के एलएन पब्लिक स्कूल रोड पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन इंद्रेश महाराज व स्वामी रविन्द्रानंद महराज ने भागवत महापुराण का पूजन कर कथा का शुभारंभ किया। कथा व्यास इंद्रेश महाराज ने बताया कि जब धर्म की हानि होती है तो उसकी रक्षा भगवान स्वयं करते है। परंतु उनके स्वधाम को चले जाने पर धर्म किसकी शरण में जाता है। व्यास ने बताया कि भगवान कहीं नहीं जाते तिरोहित होकर स्वयं श्री कृष्ण भागवत में अक्षर ब्रम्ह के रूप में समाहित होते हैं। इसलिए भागवत जी को कृष्ण रूप माना जाता है और स्वयं धर्म का अनुशासन करते हुए रक्षा करते हुए स्थापना करते है।
उन्होंने शरीर की शुद्धि के साथ मन की शुद्धि पर भी जोर दिया । शरीर की शुद्धि अगर है तो धर्म व्यवहार के रूप में आएगा। यज्ञ, तप, अनुष्ठान भगवत वार्ता में रुचि भी होगी। परंतु विचारों की शुद्धि है तो ठाकुर जी स्वयं हृदय में विराजते है। इसी लिए हमेशा शारीरिक शुद्धता के साथ विचार पवित्र रखने चाहिए। गंदे विचार हमारे नैतिक पतन का कारण है उसके बाद व्यास जी ने पर्यावरण की शुद्धि पर अपने विचार रखते हुए बताया कि भगवान श्री कृष्ण को पर्यावरण बहुत पसंद हैं, ठाकुर जी तो पर्यावरण प्रेमी है हमेशा प्राकृति में ही निवास करते है।
यमुना पर्वत कदंब कुंज रज सब प्रकृति ही तो है कलिया मर्दन लीला में यमुना को विष मुक्त किया यानि पर्यावरण की रक्षा ही तो है। अत: स्वयं श्री कृष्ण सर्वत्र प्रकृति में निवास करते है। आरती में महामंडलेश्वर डॉ स्वामी विवेकानंद एवं संत रविन्द्रानंद के साथ डॉ राम सहाय त्रिपाठी भी सम्मिलित रहे।
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