यज्ञ का अर्थ सत्संग व देवपूजा भी : नारायणानंद
मौदहा, संवाददाता। कस्बे के बड़ी देवी मंदिर प्रांगण में चल रही नौ दिवसीय रामकथा
मौदहा, संवाददाता। कस्बे के बड़ी देवी मंदिर प्रांगण में चल रही नौ दिवसीय रामकथा के आठवें दिन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद महाराज ने यज्ञ के बारे में विस्तार से बताया। स्वामी जी ने बताया कि यज्ञ क्या है बहुत से लोग इसे नहीं समझते है। यज्ञ शब्द का अर्थ सत्संग भी होता है और देवपुजा भी होता है।
यज्ञ का अर्थ एक जीवन में नियम होता है जो यज्ञ नहीं करते है उनके जीवन में नियम नहीं होता है। ऋषी मुनी यज्ञ करते इसीलिए उनका जीवन नियंत्रित बना रहता है। जो पुस्तक पढ़कर ज्ञानी बन जाते हैं उनके जीवन में नियम-संयम नहीं होता है और कोई मर्यादा नहीं होती है। क्योंकि यज्ञ से जीवन में एक नियम बनता है। यज्ञ धर्म के अनुशासन और आचार्य के अनुशासन में होती है। यज्ञ में दो चीज होती है उत्सर्ग मतलब त्याग। हम देवताओं का पूजन पाठ इसीलिए करते हैं, उससे मन तृप्त रहता है और यज्ञ सबको करने का अधिकार है। भगवान ने हमको रहने के लिए धरती दी है, पीने के लिए पानी दिया है और भोजन पकाने के लिए आग दी है और भ्रमण करने के लिए आकाश दिया है। जैसे आप प्रकृति से विधिपूर्वक लेते है। उसी तरह से विधिपूर्वक देना भी चाहिए उसी का नाम यज्ञ है।
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