अधेड़ से शादी, रिश्ते में अनबन, प्रेमप्रसंग और फिर ऑनर किलिंग
एक थी अमन उर्फ मीनू0 भाई की शादी में साले से हुई मित्रता, धीरे-धीरे प्रेम में हुई तब्दील 0 परिवार की झूठी शान के चक्कर में मां के साये से महरूम हो गए
नाम अमन उर्फ मीनू, जन्म तिथि 1987, जिस दिन मारी गई, उस दिन उम्र 38 साल के आसपास। इस उम्र के लोग पारिवारिक जिम्मेदारियों में लीन होते हैं, लेकिन अमन उर्फ मीनू की जिंदगी उधेड़-बुन में चल रही थी। हल्की उम्र में उसकी शादी अधेड़ शख्स से कर दी गई। जिससे दंपति के रिश्ते में खटास आ गई। भाई की शादी में सूरज से हुई मित्रता प्रेम में तब्दील हो गई लेकिन रिश्ते ऐसे उलझे थे कि शादी से दो परिवारों में दरार पड़ गई। लिहाजा एक दिन दोनों घर से निकल भागे। धीरे-धीरे करके जिंदगी के 14 साल और गुजर गए। परिवार के एक बार फिर से करीब आने की कोशिश में परिवार की झूठी शान की खातिर जान से हाथ धो बैठी। दो मासूम बच्चे बिन मां के हो गए।
अमन उर्फ मीनू की पहली शादी कम उम्र में फायर ब्रिगेड में कार्यरत कांस्टेबल से हुई थी। अमन की तीन अन्य बहनों के पति भी पुलिस में थे। लेकिन अमन की जिससे शादी हुई थी, वो उससे उम्र में करीब 15 साल बड़ा था। उम्र के इस फासले से दंपति के दरम्यान भी फासला बढ़ने लगा। पति से अमन की अनबन शुरू हो गई।
वर्ष 2007 में अमन के भाई धर्मेंद्र की शादी सूरज की बहन विमला से होती है। इसी शादी में अमन और सूरज एक-दूसरे से मिलते हैं। मित्रता प्रेम में तब्दील हो जाती है लेकिन बहन की शादीशुदा ननद से सूरज का प्रेमप्रसंग जल्दी ही उजागर होने लगता है। यह विवाद की वजह बन जाता है और वर्ष 2010 में सूरज और अमन दोनों घर से फरार होकर गुजरात चले जाते हैं। जहां रजिस्टर्ड कोर्ट मैरिज करके पति-पत्नी की तरह रहने लगते हैं।
वक्त बदलता है तो सूरज गुजरात से वापस लौट आता है। गांव छोड़कर कानपुर के गुजैनी में किराए के घर में रहने लगता है। तब तक दोनों एक बच्चे के मां-बाप बन चुके थे। सूरज को भी लगने लगा था धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाएगा। तीन साल पहले अमन एक पुत्री को जन्म देती है। इसके बाद से अमन की अपने परिवार से नजदीकियां बढ़ जाती हैं और यही बात उसके भाई को खलने लगती है। जिसके बाद हत्या का तानाबाना बुना जाता है।
एसपी के अनुसार इस वारदात को अंजाम देने वाले मुख्य आरोपी त्रिभुवन चाचा उर्फ चतुर सिंह, वीर सिंह कुख्यात अपराधी हैं। इसके अलावा जगमोहन उर्फ कल्लू, चालक संजीव सब एक-दूसरे को भली-भांति जानते हैं। सुपारी की रकम में सभी की हिस्सेदारी तय हुई थी।
कानपुर देहात के थाना अकबरपुर के खलीलपुर बाराजोर गांव निवासी धर्मेंद्र ने करीब डेढ़ साल पहले बहन के परिवार के खात्मे की योजना बनाई थी। चतुर सिंह से दस लाख में बात हुई थी। इस अवधि में धर्मेंद्र करीब तीन लाख रुपए चतुर सिंह को दे चुका था। शेष रकम का भुगतान काम होने पर होना था। इसके लिए धर्मेंद्र ने प्लाट बेचने की तैयारी की थी। वैसे धर्मेंद्र अपने इलाके में प्रापर्टी डीलिंग का काम करता था।
इस घटना के खुलासे में जरिया एसएचओ भरत कुमार, हेड कांस्टेबल शिवेंद्र सिंह, कांस्टेबल कपिल कुमार, बृजेश कुमार, एसओजी के उपनिरीक्षक सचिन शर्मा, कांस्टेबल उमाशंकर शुक्ल, अतुल कुमार, शक्ति सिंह, सुरेंद्र मिश्रा और सर्विलांस सेल के कांस्टेबल अतुल कुमार की प्रमुख भूमिका रही।
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