मंडियों से काम नहीं उदासियां लेकर लौट रहे हैं मजदूर

लॉकडाउन हटने के बाद बाजार में लौटी चहल-पहल के बाद शहर में मजदूरों की मंडियों में खूब भीड़ दिख रही है। लेकिन मुश्किल यह है कि उम्मीद के साथ रोज 20 से 40 किमी साइकिल चलाकर आने वाले मजदूर उदासियां लेकर...

Newswrap हिन्दुस्तान, गोरखपुरWed, 19 Aug 2020 04:13 AM
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लॉकडाउन हटने के बाद बाजार में लौटी चहल-पहल के बाद शहर में मजदूरों की मंडियों में खूब भीड़ दिख रही है। लेकिन मुश्किल यह है कि उम्मीद के साथ रोज 20 से 40 किमी साइकिल चलाकर आने वाले मजदूर उदासियां लेकर लौट रहे हैं। गांवों में खेती का काम है नहीं, मनरेगा भी मजदूरों का सहारा नहीं बन रहा है। कोरोना काल में बिगड़ी आर्थिक स्थिति के चलते निर्माण कार्य प्रभावित हैं। ऐसे में काम की तलाश में शहर आने वाले 70 फीसदी मजदूरों को निराशा ही हाथ लग रही है।

खजांची, रुस्तमपुर, मोहद्दीपुर, बिछिया, धर्मपुर से लेकर गोरखनाथ क्षेत्र में मजदूरों की मंडी सजती है। बाजार में लौटी चहल-पहल के बाद मंडियों में आने वाले मजदूरों की संख्या में काफी इजाफा हो गया है। गांव-देहात से करीब 2000 मजदूर रोज काम की तलाश में आते हैं। मंगलवार की सुबह 9.30 बजे खजांची चौराहे पर करीब 300 मजदूर काम के इंतजार में परेशान दिखे। गाड़ी रुकते ही दर्जनों मजदूर इस उम्मीद में दौड़ पड़ते हैं कि शायद आज की दिहाड़ी मिल जाए। भटहट से काम की तलाश में आये महेन्द्र सिंह का कहना है कि ‘लुधियाना में काम करता था। लॉकडाउन में वापस लौटा तो गांव में रोजगार की उम्मीद जगी। प्रधान उन्हीं लोगों को मनरेगा में काम दे रहे हैं, जो उनके समर्थक हैं। वहीं नाहरपुर के प्रमोद ने बताया कि ‘पिछले 10 दिनों से काम की तलाश में आ रहे हैं। निराश होकर लौटना पड़ रहा है। सुबह करीब 500 मजदूर आए थे, मुश्किल से 100 से 125 लोगों को ही काम मिला।

मजदूरी में भी मोल-तोल

यही हाल मोहद्दीपुर मजदूर मंडी का है। सुबह 8.30 बजे यहां 200 से अधिक मजदूर काम के इंतजार में दिखे। कुसम्ही से काम की तलाश में आए बिजेन्द्र मौर्या का कहना है कि ‘रोज 15 किमी साइकिल चलाकर आते हैं। पिछले 15 दिनों में पांच दिन ही काम मिला। मजदूरी 400 रुपये है, लेकिन काम के लिए मारामारी देखते हुए लोग 350 रुपये देने की बात कहते हैं। चार दिन लगातार काम मिलने की शर्त के बाद 350 रुपये में दिहाड़ी की। सरदारनगर के पास एक गांव से आए जितेन्द्र कुमार ने बताया कि ‘मनरेगा में 5 दिन काम मिला था। अभी तक भुगतान नहीं मिला। यहां रोज मजदूरी नहीं मिलेगी तो घर का चूल्हा भी जलना मुश्किल हो गया है।

किराया भी नहीं निकल रहा

बिछिया मंडी में कुशीनगर के मजदूरों की खासी संख्या है। खेती किसानी का काम खत्म होने के बाद मजदूर काम की तलाश में शहर का रुख कर रहे हैं। कुशीनगर के महेश कुशवाहा ने बताया कि आठ लोग एक साथ किराये पर रहते हैं। महीने का 3000 रुपये किराया देते हैं। एक व्यक्ति का खाने और किराये पर 1500 रुपये का खर्च है। काम नहीं मिलने से उधार लेकर काम चलाना पड़ रहा है। वहीं शमसेर ने बताया कि मंडी में रोज 100 से 150 मजदूर आते हैं। 50 को भी काम नहीं मिलता है। जीडीए के ठेकेदार दीपक सिंह का कहना है कि बड़े साइट पर पहले से ही मजदूर हैं, दिहाड़ी मजदूर मकान निर्माण या अन्य काम में लगते हैं। मकान निर्माण काफी कम हो रहे हैं, जिसका असर मजदूरों की मंडी पर दिख रहा है।

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