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64 घंटे बाद गोरखपुर पहुंची वसई रोड श्रमिक स्पेशल, यात्री बोले, भूख से हाल बेहाल, पानी को भी तरस गए

मुम्बई से 36 घंटे में गोरखपुर पहुंच जाने वाली श्रमिक स्पेशल जब दूसरे मार्ग से 64 घंटे यात्रा के बाद रविवार को सुबह करीब 9:30 गोरखपुर पहुंची तो ट्रेन से उतरे श्रमिकों का दर्द भूट पड़ा। इस ट्रेन से...

Ajay Singh वरिष्ठ संवाददाता, गोरखपुर Sun, 24 May 2020 07:03 PM
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मुम्बई से 36 घंटे में गोरखपुर पहुंच जाने वाली श्रमिक स्पेशल जब दूसरे मार्ग से 64 घंटे यात्रा के बाद रविवार को सुबह करीब 9:30 गोरखपुर पहुंची तो ट्रेन से उतरे श्रमिकों का दर्द भूट पड़ा। इस ट्रेन से विभिन्न जिलों के 1399 श्रमिक गोरखपुर प्लेटफार्म पर उतरे। यहां से बसों में बैठाकर रवाना किया गया। श्रमिकों ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए बताया कि एक तो वे सभी वैसे ही बदइंतजामी का शिकार थे दूसरे जब घर आने का मौका मिला तो ट्रेन हमे यहां लाने के बजाय उड़ीसा निकल गई। वसई से गोरखपुर पहुंचे गोपाल यादव ने बताया वसई में खाने के लाले पड़ गए थे। कोई मदद को तैयार नहीं था। जिंदगी पूरी तरह से पटरी से उतर गई थी। बताया कि उनकी ट्रेन वसई से 21 मई की शाम को छह बजे रवाना हुई थी।

ट्रेन में सवार होने के बाद करीब 24 घंटे तक वह महाराष्ट्र सीमा ही घूमती रही। कुछ समय बाद जब बिलासपुर स्टेशन देखा तो माथा ही चकरा गया कि यह हम कहां जा रहे हैं। कुछ ही घंटो बाद जब उड़ीसा के स्टेशन झारसुगडा पहुंचे तो लगा अब जान ही निकल जाएगी। गोपाल ने बताया कि उनके कोच डी-6 में सवार सभी यात्रियों खौफजदा हो गए। कोई कुछ बताने वाला नहीं वाला नहीं था। इस बीच जब ट्रेन जब राउरकेला में रुकी तो टीटीई से ट्रेन की जानकारी ली। टीटीई ने बताया कि इसका रूट बदला गया है यह आसनसोल होते हुए गोरखपुर जाएगी।


पूरी रात इसी चिंता में कब गोरखपुर पहुंचेगी ट्रेन
कोई बताने वाला नहीं, कितने बजे पहुंचेगी टे्रन

  गोपाल ने बताया कि एक तो वैसे ही घर से कुछ खाने-पीने का लेकर नहीं चले थे ऊपर से ट्रेन ने भी दगा दे दिया। बच्चे भूख से रोने लगे। राउरकेला स्टेशन पर किसी तरह से चाय-बिस्किट का इंतजाम किया। गाड़ी आगे बढ़ती गई और गर्मी के साथ ही भूख भी बढ़ती गई। भोजन तो दूर की बात, पानी भी नसीब नहीं हो रहा था। आसनसोल स्टेशन पर किसी तरह से पूड़ी-सब्जी मिला तब जाकर कुछ राहत मिली। इसके बाद पूरे रास्ते कुछ नहीं मिला। किसी भी स्टेशन पर कोई स्टॉल नहीं खुला था कि कुछ खरीद कर भी खा सकें। ट्रेन में पेंट्रीकार भी नहीं थी कि बच्चों को कुछ खिला सकें। जैसे-तैसे रात काटी और 64 घंटे बाद गोरखपुर पहुंचे। बहुत ही डरावना सफर रहा।


यह था रूट, इस रूट से आई
मुम्बई-गोरखपुर रूट का मूल मार्ग कल्याण, जलगांव, भुसावल, खंडवा, इटारसी, जबलपुर और माणिकपुर से होकर गोरखपुर जाने का था लेकिन इसे बदलकर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, उड़ीसा के झारसुगुडा, राउरकेला, आद्रा और आसनसोल स्टेशनों के रास्ते गोरखपुर तक पहुंचाया गया। रूट के बदलने से ट्रेन को गोरखपुर आने में 36 घंटे और अधिक वक्त लगा।


21 को शाम छह बजे हुई थी रवाना
रेलवे स्टेशन के ट्रेन 21 मई शाम छह बजे के आसपास वसई से रवाना हुई थी। महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और झारखंड का भ्रमण करते हुए वाराणसी के रास्ते लगभग 63 घंटे में 24 मई को गोरखपुर पहुंची।
राउरकेला स्टेशन पर उतरकर प्रदर्शन
ट्रेन राउरकेला पहुंची तो लोग प्लेटफार्म पर उतरकर प्रदर्शन करने लगे। लोको पायलट और गार्ड ने हाथ खड़े कर दिए। उनका कहना था कि हमे जिधर सिग्नल मिलेगा उधर ही जाएंगे। प्रवासी मुन्ना ने बताया कि पानी पीकर यहां तक पहुंचे हैं।

सुनिए इनकी पीड़ा
घर आने के लिए 15 दिन बाद मेरा नम्बर आया। ऐसा लगा कि सबकुछ मिल गया। आधा किलो चना था और कुछ बिस्किट और नमकीन। वही लेकर ट्रेन में सवार हो गया। कुछ देर तक ट्रेन चली तो हम लोग सो गए। नींद खुली तो देखा कि ट्रेन ऐसे स्टेशनों से गुजर रही है जिस स्टेशन पर इस ट्रेन को जाना ही नहीं था। सफर लम्बा होता गया और खाने-पीने की दिक्कत बढ़ती चली गई। प्यास से गला सूख रहा था लेकिन कोई पानी देने वाला नहीं था। बहुत खौफनाक सफर रहा।
गोपाल, यात्री देवरिया

इसके पहले भी मुम्बई से गोरखपुर आ चुकी हंू लेकिन कभी भी इतनी परेशानी नहीं हुई। बच्चे भूख से रो रहे थे। कोई सुनने वाला नहीं था। ट्रेन चलती जा रही थी और हमलोगों की दिक्कत बढ़ती जा रही थी। बच्चों को भीगा हुआ चना और बिस्किट खिलाकर चुप कराना पड़ा। ईश्वर करे कभी भी किसी को इस तरह से सफर न करना पड़े।
रागिनी, यात्री, गोरखपुर

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