बोले गोरखपुर: डीजे ने बजा दी 2000 परिवारों की बैंड
Gorakhpur News - गोरखपुर के बैंड-बाजा संचालक डीजे के बढ़ते प्रभाव से संकट में हैं। 1932 से चल रहे इस व्यवसाय में कलाकारों की संख्या घट रही है और पारंपरिक बैंड की मांग कम हो रही है। संचालक आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर...

शादी-विवाह से लेकर हर खुशी का बैंड-बाजा पर्याय रहा है। बिना बैंड-बाजा, बारात की कल्पना ही नहीं की जा सकती। लेकिन डीजे के दौर में बैंड-बाजा संचालकों की ही बैंड बज गई है। शहर के 50 से अधिक बैंड बाजा संचालकों से 2000 से अधिक कलाकार जुड़े हुए हैं। समय की मार झेल रहे बैंड-बाजा संचालक अब ठेक के कलाकारों पर निर्भर हो गए हैं। वहीं, कई खुद के वजूद को बचाने के लिए बैंड-बाजा के अपने बेड़े में डीजे वाली गाड़ी को भी शामिल कर चुके हैं। बदलाव की मार झेल रहे बैंड-बाजा संचालकों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है। दुश्वारियों के बीच कुछ ने कारोबार बदल लिया तो कई ने समय के साथ खुद को बदल लिया है।
गोरखपुर। शहर के बक्शीपुर चौराहे से आर्य कन्या इंटर कॉलेज की तरफ बढ़ने पर एक लाइन से दो दर्जन से बैंड-बाजा संचालकों के शोरूम हैं। इनके शोरूम के बाहर बैंड तो रखा दिखता है, लेकिन इस पर धूल की परत लगातार मोटी होती जा रही है। बक्शीपुर से नखास की तरफ जाने वाली जो सड़क कभी ब्रास बैंड के कलाकारों के अभ्यास के दौरान छूटने वाली मधुर धुनों से गुलजार रहती थीं, वहां अब सन्नाटा है। अब न पहले जैसा काम रहा और न पहले जैसा माहौल। बैंड बाजा संचालकों का कहना है कि सरकार इस विरासत और परंपरा को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए, जिससे इसे सुरक्षित किए जा सके। इनकी मजबूरी है कि ये सहालग के दिनों में कमाते हैं। इसी कमाई को बचाकर पूरे साल रोजी-रोटी का इंतजाम करते हैं। सहालग में कमाई नहीं हुई तो इनके साथ परिवार को भी भुगतना पड़ता है। ब्रास बैंड मालिक सुधीर जायसवाल का कहना है कि डीजे व भारी साउंड सिस्टम ने पूरे कारोबार को तबाह कर दिया है। डीजे के लिए सरकारी मानक तो बनाए गए हैं पर बस कागजों में ही इन पर अमल हो रहा है। पुराने बैंड मालिक और कारीगर अनिल जायसवाल कहते हैं कि डीजे व भारी साउंड सिस्टम धीरे-धीरे परंपरागत बैंड वालों का काम छीन रहा है। ब्रास बैंड व्यवसायी मुन्ना बाबू बताते हैं कि काम में आई गिरावट की वजह से कलाकार बेकार हो जा रहे हैं। वे रोजी-रोटी के जुगाड़ में अन्य विकल्प तलाश रहे। मुन्ना का कहना है कि यह एक ऐसी परंपरा है जो उत्सव हो या मातम हर स्थान पर लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाए खड़ी दिखती है। बदलते वक्त ने हमसे काम तो छीना ही, अब हमारा हुनर भी छीनने की फिराक में है।
वर्ष 1932 में शुरू हुआ था कारोबार: पुराने कारोबारी अनिल जायसवाल बताते हैं कि वर्ष 1932 में हमारे पिता ने यह काम शुरू किया था। तब और अब में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है। आज रोजमर्रा की जरूरतें पूरी न हो रहीं तिसपर हमें काम के लिए लड़ाई अलग लड़नी पड़ रही है। बताते हैं कि बनवारी बैंड (लाल डिग्गी), सुल्तान बैंड (रेती चौक) जैसे कई मशहूर बैंड का अस्तित्व समाप्त हो चुका है, वे समय से लड़ नहीं पाए। इनका कहना है कि बिचौलिए इनके लिए भारी सरदर्द बने हुए हैं जिन पर कोई रोक-टोक नहीं हो पा रही थी। अनियमितताओं पर लगाम कसने के लिए हाल ही में ब्रास बैंड व्यवसायियों ने वेलफेयर एसोसिएशन पंजीकृत कराया। अनिल ने बताया कि काम के लिए कलाकार नहीं मिल रहे, मजबूरी में काम के वक्त समस्तीपुर, छपरा, सिवान आदि स्थानों से कलाकार बुलाने पड़ते हैं।
मजदूरी बढ़ी लेकिन दाम नहीं
बैंड-बाजा संचालकों का दर्द है कि बैंड बाजा के कारीगरों से लेकर मजदूरों का मेहनताना बढ़ गया है, लेकिन उनकी बुकिंग की रकम में खास इजाफा नहीं हुआ है। सुधीर जायसवाल बताते हैं कि अस्सी के दशक में 1500 से 2000 रुपये में बुकिंग होती थी। भुगतान करने के बाद 500 रुपये बच जाते थे। लेकिन अब 25000 से 40000 रुपये बुकिंग के बाद भी 1500 रुपये नहीं बचते हैं। बैंड-बाजा संचालक साबिर का कहना है कि अब सहालग में शुभ मुहूर्त को देखकर समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, बरौनी आदि से कलाकार आते हैं। ये कलाकार एडवांस में रकम लेते हैं। बुकिंग मिली तो ठीक नहीं तो घाटा सहकर इन्हें भुगतान करना पड़ता है।
आर्थिक संकट से जूझ रहे संचालक
दुकान पर मोबाइल पर रील देख रहे घनश्याम जायसवाल बताते हैं कि बदलते वक्त के साथ कदमताल करने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन इसमें सफल नहीं हुआ जा सका। इस बाबत सरकारी मानक के अनुसार हमने बैंड के साथ कुछ साउंड और एक छोटा डीजे सेट तैयार किया, लेकिन ग्राहकों को मॉडिफाइड गाड़ियां पसंद आती हैं। बताते हैं कि हम वो सब जतन कर रहे जिससे बाजार में बने रह सकें। हमने गाड़ियां मॉडिफाई कराईं, लेकिन आरटीओ वगैरह की मार ने उसमें भी पीछे धकेलने का काम किया। हमें परमिट नहीं मिलता कि हम गाड़ियों को मॉडिफाइड करा सकें। गाड़ियों का चालान कर दिया जाता है। आख़िर में कहते हैं कि एक तो वैसे ही अब काम की कमी रहती है, ऊपर से ऐसे चालान हमारी कमर तोड़ने काम करते हैं। संचालकों पर भारी आर्थिक संकट मंडरा रहा और इस ओर किसी का ध्यान भी नहीं जा रहा।
शिकायतें
डीजे या भारी साउंड सिस्टम हमारे कारोबार के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। डीजे निर्धारित मानक पर काम नहीं कर रहे।
हमारा सीजनल काम है, ऊपर से काम में भारी गिरावट हमारे लिए चिंताजनक है।
काम न मिलने से कलाकार अब अपना कार्यक्षेत्र बदल रहे हैं। कई ने किराना दुकान खोला तो कुछ ई-रिक्शा चला रहे हैं।
कारीगरों से लेकर मजदूरों का मेहनताना बढ़ गया। जबकि बुकिंग दर नहीं बढ़ रही। कभी-कभी ग्राहक पैसे देने में आनाकानी करते हैं।
बिचौलिए दुकान लगाकर बैठे हैं। फर्जी बुकिंग लेकर ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी कर रहे है।
सुझाव
डीजे या भारी साउंड सिस्टम पर पूर्णत: प्रतिबंध लगना चाहिए। प्रशासन को सख्ती से पेश आने की आवश्यकता है।
बैंड-बाजा परम्परा से जुड़ा हुआ है। ऐसे में इस कला को संरक्षित करने के लिए सरकार की तरफ से पहल होनी चाहिए।
सरकारी निकायों में जहां हमारी जरूरत हो हमें स्थानीय स्तर पर बुलाया जाए। शिकायत पर हमारी सुनवाई की जाए।
काम के साथ हमें भी सम्मान दिया जाए। बैंड-बाजा वाले कलाकार हैं।
ग्राहकों को चाहिए कि बैंड वेलफेयर एसोसिएशन में रजिस्ट्रर्ड दुकानों से ही अपनी बुकिंग कराएं।
हमारी भी सुनिये
हमारी कला व हमारे काम को समझते हुए सरकार को सोचने की जरूरत है। हम आज में जी रहे, लेकिन हमें कल की चिंता बहुत परेशान करती है।
-अनिल जायसवाल
रोजगार के लिए शादी, त्योहारों और उत्सवों पर पूरी तरह से निर्भर हैं। पूरा कारोबार मौसमी हैं। आयोजनों की कमी से हमारा कारोबार प्रभावित होता है।
-संदीप जायसवाल
युवाओं का झुकाव डीजे और तड़कते-भड़कते संगीत की ओर अधिक हो गया है, जिससे पारंपरिक बैंड से ग्राहकों को आकर्षित करना कठिन हो गया।
-संदीप गुप्ता
सरकार द्वारा पुराने संगीत कार्यक्रम, मेले व प्रतियोगिता आदि का आयोजन हो, जिससे कि ब्रास बैंड के कलाकारों को कला के प्रदर्शन का अवसर मिल सकें।
-सुधीर जायसवाल
बिचौलियों ने हमारी खूब बदनामी की है, जिनकी न कोई पहचान है, न ही कोई काम है, वे चालाकी से ग्राहक फंसा कर उनके साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं।
-अरुण जायसवाल
हम अंदर ही अंदर हमेशा आर्थिक संकट से जूझ रहे होते हैं। आर्थिक रूप से असुरक्षित हैं, क्योंकि हमारी आमदनी का मुख्य स्रोत अनियमित होता है।
-रवि जायसवाल
डीजे पूरी तरह से प्रतिबंधित होना चाहिए, ये हमारे साथ समाज को भी क्षति पहुंचा रहा है। इसे लेकर प्रशासन को सख्ती से पेश आने की आवश्यकता है।
-घनश्याम जायसवाल
बिचौलिए ग्राहकों के साथ ठगी कर रहे, ऐसे में बदनामी पूरी बिरादरी सहन कर रही। बैंड-बाजा के कलाकारों का पंजीकरण होना चाहिए। जिससे योजनाओं का लाभ मिल सके।
-राम कुमार
स्थानीय सांस्कृतिक संस्थाओं और स्कूलों से समर्थन मिले, जिससे कि ब्रास बैंड के प्रति नई पीढ़ी में आकर्षण बढ़े व हमें सेवा के अवसर प्राप्त हो सकें।
-बृजेश कुमार गौड़
बैंड व कलाकारों को कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाने में गाड़ियों पर होने वाला खर्च ग्राहकों को देना होता है, लेकिन इसे लेकर किचकिच होती है।
-हैदर अली
संगीत उपकरणों और साउंड सिस्टम की उचित देखभाल और मरम्मत की सुविधाएं सीमित हैं, जिससे उपकरणों की खराबी का बोझ भी उठाना पड़ता है।
-रिजवान
ब्रास बैंड के महत्व को कुछ लोग सिर्फ शोर समझते हैं, जबकि यह सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। इसकी सही समझ और सम्मान की कमी दुखदाई है।
-मुन्ना बाबू
बोले जिम्मेदार
डीजे पूरी तरह से प्रतिबंधित है। अगर कहीं बजते मिला तो आयोजकों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बैंड-बाजा कलाकारों का पंजीकरण कराया जाएगा। इस सम्बंध में जल्द ही प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
-अंजनी कुमार सिंह, एडीएम सिटी
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