गरजते जगुआरों की आवाज को रोक देंगी AIIMS की दीवारें
एम्स में इलाज कराने वाले मरीजों के लिए राहत की खबर है। इलाज कराने वाले मरीजों को हवाई जहाजों (Fighter Plane Jaguar) का कानफोड़ू शोर परेशान नहीं करेगा। इसके लिए कूड़ाघाट में बन रहे एम्स का हर भवन...
एम्स में इलाज कराने वाले मरीजों के लिए राहत की खबर है। इलाज कराने वाले मरीजों को हवाई जहाजों (Fighter Plane Jaguar) का कानफोड़ू शोर परेशान नहीं करेगा। इसके लिए कूड़ाघाट में बन रहे एम्स का हर भवन साउंडप्रूफ होगा। इसके लिए एम्स के भवनों में विशेष प्रकार का शीशा लगाया जा रहा है। इसे अक्वास्टिक ग्लास कहते हैं। इसको शीशा निर्माण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनी सेंट गोबिन अपने चेन्नई के फैक्ट्री में बना रही है। इससे आईसीयू में भर्ती मरीजों के साथ ही डॉक्टर व कर्मचारियों को भी तेज आवाज से निजात मिलेगी।
महानगर के कूड़ाघाट स्थित गन्ना शोध संस्थान की 112 एकड़ जमीन पर एम्स का निर्माण हो रहा है। यह एअरफोर्स स्टेशन के बगल में ही है। यहीं पर घरेलू उड़ानों के लिए एअरपोर्ट भी बना है। इस एअरपोर्ट से सैन्य लड़ाकू विमान जगुआर और घरेलू विमानन कंपनियों के जहाज उड़ान भरते हैं। केन्द्र सरकार ने एम्स के भवन निर्माण की जिम्मेदारी हाईट्स को दी है। यह संस्था देश के नामी एम्स का डिजाइन तैयार कर चुकी है। हाईट्स ने 1100 करोड़ से बन रहे इस एम्स के निर्माण का टेंडर लार्सन एंड ट्यूब्रो(एलएनटी) को दिया है।
साउंडप्रूफ बनेंगे भवन
750 बेड वाले एम्स में 100 बेड का आईसीयू संचालित होगा।आईसीयू में भर्ती मरीजों के लिए शोर जानलेवा हो सकता है। इसके अलावा नवजातों, दिल, दिमाग व मानसिक रोग के मरीजों के लिए भी शोर जानलेवा बन सकता है। ऐसे में एम्स का डिजाइन बनाने वाले इंजीनियरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती रोजाना उड़ान भरने वाले जहाजों के शोर से मरीजों को बचाना रहा। शासन ने तय किया कि सभी एम्स के भवन साउंडप्रूफ बनेंगे। इसके लिए नई तकनीक का प्रयोग होगा।
‘‘एअरपोर्ट से उड़ान भरने वाले हवाई जहाजों से निकलने वाले ध्वनि प्रदूषण के मुताबिक ही एम्स में अक्वास्टिक शीशे लगाए जा रहे हैं। यह हवाई जहाज से निकलने वाली 90 फीसदी ध्वनि को परावर्तित कर सकेंगे।’’ एचएल प्रसाद, प्रोजेक्ट, इंचार्ज हाइट्स
लगाए गए अक्वास्टिक शीशे
हाईट्स ने एम्स को साउंडप्रूफ करने की जिम्मेदारी एलएनटी को सौंपी। एलएनटी के इंजीनियरों ने देश में शीशा निर्माण करने वाली कंपनियों से संपर्क किया। चेन्नई की सेंट गोबिन ने अक्वास्टिक शीशे बनाने पर हामी भरी। इसके बाद शीशा निर्माता कंपनी के इंजीनियरों ने एम्स परिसर में ध्वनि प्रदूषण की जांच की। जिसके बाद करीब 100 डेसीबिल की ध्वनि को परावर्तित करने वाले अक्वास्टिक शीशे को लगाने का फैसला किया।
शीशे की दो परत से बनता है अक्वास्टिक
एलएंनटी के इंजीनियरों के मुताबिक अक्वास्टिक में शीशे की दो परतों को एक ही सांचे में ढाला जाता है। दोनों परतों के बीच पारदर्शी ग्लेज पेपर रहता है। जिससे कि इस शीशे से टकराने वाली 90 फीसदी ध्वनि तरंग परावर्तित हो जाती है।
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