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बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी माताओं को भी सशक्त बना रहीं ऋचा

कुशीनगर के सुकरौली ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय सिहुलिया की प्रधानाध्यापिका ऋचा सिंह बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी माताओं को सशक्त व बालिकाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। विद्यार्थियों की 65 मांओं को...

संदीप त्रिपाठी कुशीनगरMon, 26 Aug 2019 10:39 PM
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कुशीनगर के सुकरौली ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय सिहुलिया की प्रधानाध्यापिका ऋचा सिंह बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी माताओं को सशक्त व बालिकाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। विद्यार्थियों की 65 मांओं को साक्षर बना चुकी हैं। सखी सहेली ग्रुप के माध्यम से महिला अभिभावकों को सभी योजनाओं को सशक्त बनाने के साथ आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हैं। तीन साल पूर्व बंद विद्यालय में तैनाती के बाद ऋचा की कड़ी मेहनत की बदौलत स्कूल अंग्रेजी माध्यम के लिए चयनित हुआ है। उनके जज्बे व नवाचार शिक्षा प्रणाली को अन्य शिक्षक सराह रहे हैं। 

ब्लॉक का प्राथमिक विद्यालय सिहुलिया जनवरी 2016 से पहले शिक्षक के अभाव में करीब चार महीने बंद था। दो फरवरी 2016 को स्कूल में शिक्षिका के रूप में ऋचा सिंह व रेनू की तैनाती हुई। स्कूल खुला तो दो से तीन बच्चे आने शुरू हुए। ऋचा ने कठिन मेहनत और कुशल व्यवहार की बदौलत लोगों को समझाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। स्कूल में पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार होने पर देख धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़कर 185 तक पहुंच गई। 

इनमें 113 छात्राएं और 72 छात्र हैं। शिक्षिका की मेहनत और नवाचार गतिविधियों से शिक्षण कार्य होने से स्कूल को अंग्रेजी माध्यम के लिए चयनित किया गया है। शिक्षिका बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी माताओं को सशक्त बनाने में जुटी हुई है। स्कूली बच्चों की 71 माताएं महीने में दो बार होने वाली शिक्षक-अभिभावक गोष्ठी में शामिल होती हैं। इनमें 65 महिलाएं साक्षर हो चुकी हैं। गोष्ठी में 25 से 30 पुरुष अभिभावक शामिल होते हैं। महिला अभिभावकों में डेढ़ दर्जन बच्चों की बुजुर्ग दादियां भी शामिल होती हैं।

बच्चों को पढ़ाने के साथ उनके माताओं को सशक्त बनाने में शिक्षिका कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है। स्कूल में जागरूक महिलाओं को 'सुपर मॉम' की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। स्कूल में चार सखी सहेली ग्रुप बनाए गए हैं। इनमें एक ग्रुप में तीन-तीन महिलाओं को शामिल किया गया है। सीमा, किरन, रेखा, ललिता, बबिता, शीला,  बरसाती, ठगनी, रेनू आदि महिलाएं गांव की महिलाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक करती हैं। बालिकाओं को विशेष परिस्थितियों से निपटने की सीख दी जाती है। 

शिक्षिका ने 150 महिलाओं को कॉपी व पेन शिक्षित बनाती है। सखी सहेली ग्रुप के माध्यम से महिलाओं को मंच प्रदान किया जाता है। इसमें महिलाएं कविता, कहानी सुनाने के साथ उन्हें नई सोच, विचारधाराओं के साथ सरकारी योजनाओं और दिनचर्या से संबंधित जानकारियों व रोजगारपरक ज्ञान दिया जाता है। इससे कि वह आत्मनिर्भर व सशक्त बन सके।

स्कूल में ऐसे बढ़ी बच्चों की संख्या
स्कूल में 2016-17- नामांकन 60 था, 2017-18 में 93 नामांकन, 2018-19 में 147 और 2019-20 में 185 नामांकन हो गया है। इनमें 113 छात्राएं- 72 छात्र शामिल हैं। स्कूल में नामांकन बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ पहुंचाने के अलावा अपने पास से बच्चों को ठंडक से बचाने के लिए चप्पल, स्वेटर, घड़ी, स्लेट, चाक, पेंसिल, चार्ट और कॉपी के उपहार के तौर पर देकर प्रोत्साहित किया गया। 

स्कूल में होने वाले नवाचार
स्कूल में बच्चों के साथ खेलने और उनके साथ अपनापन को बढ़ावा देकर मोबाइल के माध्यम से ज्वालामुखी, पर्वत, पहाड़, समुद्र, ग्रहों के विषय में बताया जाता है। बच्चों को गीत, संगीत व मॉडल के माध्यम से शिक्षा देती। नई खोज व नये विचारों से अवगत करते हुए योग कराया जाता है। 

स्कूल में सुबह प्रार्थना सभा में सही उच्चारण के साथ छह दिन अलग-अलग प्रार्थना (अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत) के अलावा राष्ट्रगान, प्रतिज्ञा, जीके, पीटी,  योग,  ऊर्जान्वित गतिविधियां, प्रोत्साहित नवाचार, बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी, मॉर्निंग ग्रीटिंग, भोजन मंत्र कराया जाता है। छुट्टी के दौरान पुन: प्रार्थना, अगले दिन की तैयारी, मॉडल के माध्यम शिक्षा, खेल-खेल में शिक्षा व अंग्रेजी शिक्षा, करके सीखना, शून्य निवेश से सीखना, हैपिनेस क्लासेज चलाया जाता है।

स्कूली बच्चे बने बाल संपादक
बाल संसद का गठन है। 8 सदस्यों वाले संसद में प्रधानमंत्री ममता यादव है। वह स्कूल की कमियों को बताती है। बाल समाचार के निधि यादव व अनूप यादव बाल संपादक हैं, जो गांव की घटनाओं को लिखते हैं। शनिवार को आयोजित बाल मंच में बच्चों में कविता व कहानी के माध्यम आत्मविश्वास को जगाया जाता है। अनुशासित बच्चों को स्टार ऑफ वीक से सम्मानित किया जाता है। बाल दिवस के मौके पर  फैंसी ड्रेस कम्पटीशन, लर्निग कार्नर में समसामयिक किताबें बच्चों को पढने के लिए दी जाती है। गर्मी के छुट्टी में 10 अप्रैल से 21 अप्रैल तक समर कैंप चला था। 

नवाचार शिक्षा का अनूठा उदाहरण है। बच्चों को पढाने के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने में शिक्षिका जुटी हुई है। शिक्षिका का प्रयास सराहनीय है। उससे अन्य शिक्षकों को सीख लेनी चाहिए। मॉडल स्कूल के रूप विकसित किया जाएगा। 
विजय गुप्ता, बीईओ सुकरौली

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