मंद पड़ गई थी रेलवे की रफ्तार, एक दर्जन से ज्यादा ट्रेनें थी रद
शाम का वह वक्त बहुत ही डराने वाला था। भय का माहौल था। हर तरफ मारपीट और दंगे की अफवाहें तैरने लगीं। कुछ ही देर बाद कुछ जगहों पर यह अफवाहें हकीकत का रूप लेने लगीं। शहर में कफ्र्यू जैसा माहौल बन गया...
शाम का वह वक्त बहुत ही डराने वाला था। भय का माहौल था। हर तरफ मारपीट और दंगे की अफवाहें तैरने लगीं। कुछ ही देर बाद कुछ जगहों पर यह अफवाहें हकीकत का रूप लेने लगीं। शहर में कफ्र्यू जैसा माहौल बन गया था।
चारो तरफ संकट देख रेलवे को पूरी तरह से अलर्ट कर दिया गया। आनन-फानन आरपीएफ की सभी रिजर्व फोर्स जंक्शन पर बुला ली गई थी। पटरियों की पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई थी और इंजन के साथ-साथ गार्ड के डिब्बों में सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए गए थे। आजमगढ़-मऊ, मुम्बई और वाराणसी की ओर जाने वाली एक दर्जन से ज्यादा ट्रेनों को रद कर दिया गया था।
25 साल पुराने इस वाकयें को बयान कर रहे हैं पूर्व सीपीआरओ और वर्तमान सेवानिवृत मुख्य परिचालन प्रबंधक राकेश त्रिपाठी। श्री त्रिपाठी बताते हैं कि अयोध्या कांड के बाद पूरे पूर्वोत्तर रेलवे में अलर्ट जारी कर दिया गया था। आने-जाने वाली यात्रियों की संख्या एक चौथाई हो गई थी। करीब एक दर्जन ट्रेनें भी रद कर दी गई थीं।
हर बोगी में एक-एक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे। गार्डों और चालकों की सुरक्षा बढ़ाने के साथ ही रेल पटरियों पर पेट्रोलिंग बढ़ा दी गई है। श्री त्रिपाठी ने बताया कि यह सिलसिला करीब एक महीने तक चला। लेकिन इसमें सुखद अहसास कराने वाली बात तो यह थी कि जंक्शन पर हिन्दू और मुस्लिम दोनो समुदाय के स्टाफ काम कर रहे थे और उनमें गजब की काम करने की भावना थी। उनके अंदर कहीं से भी उस घटना का कोई असर नहीं दिख रहा था।
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