दोगुनी हुई प्लास्टिक दाने की कीमतें, गीडा में बंद हो रहीं फैक्ट्रियां
गोरखपुर। अजय श्रीवास्तव पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी से प्लास्टिक के दाने में...
गोरखपुर। अजय श्रीवास्तव
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी से प्लास्टिक के दाने में भी आग लग गई है। दाने की दोगुनी कीमत और मांग नहीं होने से गीडा की फैक्ट्रियां अब उत्पादन ठप करने लगी हैं। गीडा और इंडस्ट्रियल इस्टेट की करीब 40 फैक्ट्रियों में जहां 8000 टन से अधिक की मासिक खपत थी, वहीं अब खपत सिमट कर 3000 टन रह गई है। कानपुर में सप्लाई करने वाली फर्में ब्लैक मार्केटिंग कर रही हैं। उद्यमियों को बिल से अधिक के भुगतान पर प्लास्टिक दाना मिल रहा है।
गीडा और इंडस्ट्रियल एरिया में 40 से अधिक प्लास्टिक दाने का उपयोग करने वाली फैक्ट्रियां हैं। इन फैक्ट्रियों में कोरोना काल से पहले 8000 से 10 हजार टन मासिक प्लास्टिक दाने की खपत थी। वर्तमान में महंगाई और उपलब्धता में दिक्कत से खपत गिर कर 3000 टन तक पहुंच गई है। छोटी इकाइयों में तो ऑर्डर मिलने ही बंद हो गए हैं।
बर्तन धोने वाले साबुन के लिए डिब्बा बनाने वाले उद्यमी अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि ‘जो डिब्बा 3 रुपये में तैयार होता था, उसकी लागत 5 से 6 रुपये पहुंच तक गई है। साबुन बनाने वाली कंपनी ने ऑर्डर ही रद कर दिया है। यही हाल प्लास्टिक की कुर्सी, पानी का टंकी और मग आदि बनाने वाली फैक्ट्रियों का भी है। इससे जुड़े उद्यमी बताते हैं कि ‘प्लास्टिक की जिस कुर्सी की लागत 200 रुपये थी, वह 350 रुपये से अधिक हो गई है। ऐसे में ब्रांडेड कंपनी की कुर्सियों से प्रतियोगिता करना मुश्किल है।
चार महीने में दोगुनी हो गई कीमत
प्लास्टिक दाने की कई ग्रेड होती है। नवम्बर महीने में 70 से 90 रुपये प्रति किलो की दर से मिलने वाले दाने की कीमत 150 से 180 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। प्लास्टिक का बोरा बनाने वाली फैक्ट्रियों की गेहूं खरीद को लेकर सरकारी सप्लाई हो रही है। उद्यमी बताते हैं कि बोरे की लागत में 30 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है। जिस रेट में सरकार से एग्रीमेंट है, उस रेट में आपूर्ति की मजबूरी है। महंगाई के चलते उद्यमी नये ऑर्डर नहीं ले रहे हैं।
आपूर्ति रोके जाने के खौफ में उद्यमियों की बोलती बंद
प्लास्टिक दाने की कीमतों में दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी के बाद भी उद्यमी कुछ बोलने से बच रहे हैं। प्लास्टिक दाने की सप्लाई गेल के साथ निजी कंपनियां करती हैं। उद्यमियों का कहना है कि मीडिया में बातें जाने से कंपनी आपूर्ति रोक देगी। ऐसे में फैक्ट्री में ताला लगाना पड़ेगा। हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
बंद हो गईं 30 फीसदी छोटी इकाईयां
गीडा और इंडस्ट्रियल एरिया के अलावा अन्य क्षेत्रों में पैकेजिंग का काम करने वाली 30 फीसदी छोटी यूनिटें बंद हो गई हैं। पैकेजिंग कारोबार से जुड़े सुधांशु टिबडेवाल का कहना है कि ‘कीमतें तो बढ़ी हीं, प्लास्टिक दाने की उपलब्धता भी नहीं है। कंपनियां अच्छी कीमत मिलने से विदेशों को एक्सपोर्ट कर रही हैं। करीब 30 छोटे उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करते थे। इनमें से 20 से अधिक बंद हो चुकी हैं।
शासन की तरफ से प्लास्टिक पार्क स्थापित किये जाने की कवायद की जा रही है। जब पहले से चल रहीं फैक्ट्रियां ही नहीं बचेंगी तो नई लगेगी कैसे। सरकार को प्लास्टिक दाने की कीमतों पर अंकुश को लेकर प्रयास करना चाहिए। लघु उद्योगों को बचाने के लिए जमीन पर काम होना चाहिए। कानपुर से प्लास्टिक दाना मंगाया जाता है। गोरखपुर में ही वेयर हाऊस खोला जाना चाहिए, जिससे माल भाड़े का खर्च बच सके।
आरएन सिंह, उपाध्यक्ष, चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज
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