Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़गोरखपुरNew Method for Treating OCD Discovered at BRD Medical College Positive Results from RTMS Machine Experiment

दिमाग का दाहिना हिस्सा सुस्त कर ओसीडी का इलाज

रिसर्च बीआरडी मेडिकल कालेज में हुई रिसर्च के परिणाम बेहतर मिले रिपेटेटिव ट्रांसक्रेनियल मेग्नेटिक स्टेमुलेशन

Newswrap हिन्दुस्तान, गोरखपुरSat, 24 Aug 2024 01:53 AM
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गोरखपुर। मनीष मिश्र बीआरडी मेडिकल कालेज ने ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) के मरीजों के इलाज का नया तरीका तलाशा है। रिपिटेटिव ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टेम्यूलेशन(आरटीएमएस) मशीन के जरिए दिमाग के दाहिने हिस्से को सुस्त करने से मरीजों में ओसीडी नियंत्रण में आया है। दो ग्रुप में 46 मरीजों पर प्रयोग किया गया। इसके परिणाम बेहद सकारात्मक रहे हैं।

यह रिसर्च की है मानसिक रोग के विभाग के अध्यक्ष डॉ. तपस आइच के निर्देशन में सीनियर रेजिडेंट डॉ. विशाल गौतम ने। रिसर्च करीब आठ महीने चली। डॉ विशाल गौतम ने बताया कि आरटीएमएस मशीन से थीटा बर्स्ट और लो-फ्रिक्वेंसी आरटीएमएस निकलता है। दोनों अलग-अलग तकनीक हैं। दोनों तकनीक की मदद से अलग-अलग ग्रुप में 23-23 मरीजों का इलाज हुआ। यह मरीज कम से कम छह साल से ओसीडी का इलाज करा रहे थे। मरीजों में 25 महिलाएं और 21 पुरुष रहे। 23 मरीजों के दिमाग के दाहिने हिस्से को थीटा बर्स्ट के जरिए न्यूट्रलाइज्ड किया गया। इतने ही मरीजों को लो-फ्रिक्वेंसी आरटीएमएस दिया गया। अंतर यह है कि थीटा बर्स्ट तकनीक से एक मरीज का इलाज करने में करीब एक मिनट लगता है। वहीं लो-फ्रिक्वेंसी आरटीएमएस से इलाज में 40 मिनट तक लग जाता है। प्रारंभिक जांच में दोनों तकनीक कारगर मिलीं।

व्यवहार मरीजों के व्यवहार में दिखा परिवर्तन

डॉ. विशाल ने बताया कि ओसीडी के मरीजों में एक ही काम कई बार करने की आदत हो जाती है। जैसे वह दिन भर में कई बार सफाई करते हैं। बार-बार चीजों को व्यवस्थित करते हैं। थीटा बर्स्ट और लो-फ्रिक्वेंसी आरटीएमएस के जरिए दिमाग के दाएं हिस्से को सुस्त करने से मरीज के व्यवहार में परिवर्तन दिखा। उनमें बार-बार एक ही काम करने की आदत में कमी आई। मरीजों में दवा की डोज कम हो गयी है। खास बात यह की इस तकनीक के दुष्प्रभाव नहीं हैं।

सामान्य जीवन पर नहीं पड़ा असर

डॉ विशाल ने बताया कि आमतौर पर दाएं हाथ से काम करने वाले व्यक्ति के दिमाग का बांया हिस्सा सक्रिय होता है। वह व्यक्ति के जीवन के सभी आवश्यक जरूरत के विचार कैलकुलेशन समेत अत्यधिक आवश्यक कार्य की गणना दिमाग के बायें हिस्से में ही होती है। इसी वजह से अपेक्षाकृत कम सक्रिय दिमाग के दाएं हिस्से को सुस्त करने की कोशिश की गई। जिससे कि मरीज की सामान्य दिनचर्या पर असर न पड़े। यह प्रयोग कारगर भी हुआ है। मरीजों में तनाव और डिप्रेशन भी कम हुआ। इस मशीन के प्रयोग पर मेडिकल कॉलेज में पहली रिसर्च हुआ है। इस पर बकायदे थीसिस पेपर भी मेडिकल कॉलेज में स्वीकृत हो गया है। अब मरीजों पर अलग-अलग प्रभाव की गणना की जा रही है। जिससे कि अलग-अलग प्रभावों पर रिसर्च की जा सके।

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