बोले गोरखपुर : बाजारों में हो पिंक टॉयलेट, शहर के बीच से हटें शराब की दुकानें
Gorakhpur News - गोरखपुर में महिलाओं ने अपनी समस्याओं को साझा किया है, जैसे सार्वजनिक परिवहन में असुविधाएं, पिंक टॉयलेट्स की कमी और सुरक्षा के मुद्दे। वे मानती हैं कि केवल वादों से काम नहीं चलेगा; उन्हें अपने अधिकारों...
Gorakhpur News: शहर तेजी से बदल रहा है। इस बदलाव के साथ समस्याओं की भी प्रकृति बदल रही है। कभी संकरी सड़कें जाम की वजह हुआ करती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है। ज्यादातर सड़कें फोरलेन हो गईं तो अतिक्रमण जाम का कारण बन गया। पिंक टॉयलेट हो या पिंक ऑटो शहर में इसकी शुरुआत काफी पहले हुई लेकिन अभी नाकाफी ही कही जाएंगी। आधी आबादी के हक में नियम कानून के साथ योजनाएं भी आ रही हैं लेकिन उनका लाभ उतनी तेजी से नहीं मिल रहा है जितनी तेजी से मिलनी चाहिए। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में महिलाओं ने बेबाकी से न सिर्फ अपनी दिक्कतें साझा कीं बल्कि समाधान के लिए भी सुझाव दिए। गोरखपुर। आधी आबादी को पूरी भागदारी सिर्फ नारा बनकर रह गया है। महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है। बाजार में पिंक टॉयलेट की योजना हो या फिर सार्वजनिक सेवाओं में अलग लाइन की या फिर पब्लिक ट्रांसपोर्ट में आने-जाने की सुविधा, उन्हें अभी इन सब के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। महिलाओं का बेबाकी से कहना है कि हमारे मामले में सिर्फ वादों से काम नहीं चलेगा, जमीन पर भी बदलाव दिखना चाहिए। पुरुषवादी समाज की सोच बदलनी चाहिए, तब महिलाओं की तरक्की और खुशहाली की राह आसान होगी।
बातचीत में अपनी पीड़ा बताते हुए राजेन्द्रनगर की ज्योत्सना कहती हैं कि किचन की कमान सम्भालने वाली हम महिलाओं को सार्वजिनक स्थानों पर अपने हक और अधिकार की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। परिवहन की सुविधा हो या फिर सुरक्षा का मामला हो, हर जगह संघर्ष से करना पड़ रहा है। परिवहन की सुविधाएं ऐसी है कि बसों में महिलाएं खड़ी होकर यात्रा करने को मजबूर हैं।
विस्तार नगर की किरन कहती हैं कि बाजार में पिंक टायलेट जैसी योजना भी पूरी तरह धरातल पर नहीं उतर पा रही है। तमाम ऐसे दृश्य मिलते हैं, जहां लेडीज फर्स्ट का नारा सिर्फ साइन बोर्ड और कागजों में सिमटा हुआ है। अव्यस्थाओं के बीच वहां लेडीज लास्ट हो जाती हैं। वर्तमान में सुरक्षा को लेकर कुछ सुधार जरूर हुआ है पर पुलिस से अभी और ज्यादा की अपेक्षा है।
राजजानकी नगर की सीमा कहती हैं कि महिलाओं के लिए पिंक टायलेट के साथ पिंक बस भी चलाई गई। पिंक ऑटो भी चली लेकिन अभी ये सभी योजनाएं मुकम्मल रूप से परवान नहीं चढ़ पाईं। महिलाओं की आबादी के हिसाब से पिंक टायलेट की संख्या बहुत कम है। मेला में लेडीज और जेंट्स टायलेट अलग-अलग होते हैं, लेकिन अन्य स्थानों पर पिंक टायलेट का अभाव है। जहां है, वहां माहौल अच्छा नजर नहीं आ रहा है। पिंक बसों में भी दावे के मुताबिक सुविधाएं नहीं है। सीसीटीवी कैमरा और पैनिक बटन गायब हो चुके हैं।
बसों में चार सीटें ही महिलाओं के लिए आरक्षित होती है, उस पर भी पुरुष बैठ जाते हैं, उन्हें सीट से उठाना भी एक बड़ी समस्या ही है, जबकि महिला सीट पर बैठे पुरुषों को ध्यान देना चाहिए कि बस में जब कोई महिला प्रवेश करे और अन्य सीट न हो तो कम से कम उसकी सीट तो छोड़ ही देनी चाहिए। इसके साथ ही सरकारी बसों में महिला सीट की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। निजी बसों में भी महिलाओं के लिए सीट आरक्षित होनी चाहिए और इसमें नियम का पालन कराया जाना चाहिए। त्योहार या किसी खास मौके पर जब यात्रियों की भीड़ बढ़ जाती है तो महिलाएं खड़ी होकर या बोनट पर बैठकर यात्रा करते हुए दिख जाती है, इस दृश्य को देखकर लगता है कि सरकारी नियमों के साथ ही सोच में बदलाव भी आवश्यक है।
यहीं की अनुष्का का कहना है कि सार्वजिनक स्थानों पर जहां महिलाओं की लाइन होती है, वहां भी पुरुष खड़े होकर उनका काम कठिन करते हैं। बैंक, अस्पताल जैसी जगहों पर भी महिलाओं को खासा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं की राजनैतिक व सामाजिक भागीदारी बढ़ने से समाज में बदलाव की संभावना जताई जाती है। आरक्षण के नियमों और शिक्षा के स्तर से राजनीति में महिलाओं ने चुनाव जीते हैं, लेकिन उनके पति प्रतिनिधि बनकर काम करते हैं। ऐसी स्थिति में महिलाओं को ही अपने हक और अधिकार के लिए आगे आना चाहिए। अपने परिवार में भी पुरुषों की सोच बदलकर अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। यदि सोच नहीं बदली तो 33 प्रतिशत आरक्षण के बावजूद भी महिलाएं अपना हक हासिल नहीं कर पाएंगी।
शहर के बीचोबीच शराब कर दुकानों से होती है परेशानी
शहर में अनेक स्थानों पर शराब की दुकानें खुल गई हैं, उसी स्थान पर चखना सहित अन्य ठेले भी लगते हैं। ऐसे स्थानों से गुजरने में महिलाओं को असहज होना पड़ता है, क्योंकि ठेले वालों का सड़क पर अवैध कब्जा रहता है, उनके पास ही कुछ खाने पीने वाले लोग भी रहते हैं। उनमें किसी को टोकने में भी डर लगता है। वहां अराजक लोग मौजूद रहते हैं और उनका जवाब असहनीय होता है। सीमा पांडेय बताती है कि राम जानकीनगर मोड़ पर शराब की दुकान है। आवश्यक कार्य से उधर जाना हो तो महिलाओं को फब्तियां सुननी पड़ती हैं। उनका कहना है कि समाज की सोच ऐसी नहीं होनी चाहिए। महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव होता तो सभ्य समाज में उन्हें लोगों की हरकतों से बचना पड़ता है। पूनम चौधरी ने कहा कि सख्त कानूनों के बावजूद कोलकाता के आरजीकर मेडिकल कालेज जैसी घटनाएं भी सामने आती हैं। महिला उत्पीड़न कम करने के लिए नियम के साथ अच्छी सोच और संस्कार की आवश्यकता है।
रेवड़ी नहीं, सुविधाएं बढ़ाई जाएं
महिलाओं ने बेबाकी से कहा कि मुफ्त बस यात्रा की रेवड़ी नहीं, हमें सीट चाहिए। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि वे यात्रा करें तो बस और सीट आसानी से मिल जाए। पिंक बसों की संख्या कम है, जबकि अन्य बसों में आरक्षित सीट कम है। महिलाओं को घर से निकलने में सोचना पड़ता है कि परिवहन की असुविधा हुई तो समस्या का समाधान कैसे होगा? रात में पिंक बसों का संचालन होना चाहिए ताकि महिलाओं को सुरक्षित यात्रा की गारंटी हो। शहर का दायरा बढ़ गया है, कामकाजी महिलाएं रात में ड्यूटी करती हैं, लेकिन उन्हें अपरिचत ऑटो में यात्रा करनी पड़ती है।
छुट्टा पशुओं से लगता है डर
जरूरत पर स्कूटी और पैदल घर से बाहर जाने वाली महिलाओं को सड़कों पर घूम रहे छुट्टा पशुओं से डर लगता है। कभी-कभी सांड़ सड़कों पर लड़ते हुए मिल जाते हैं। ऐसे मौके पर महिलाओं को भागकर बचने की चुनौती होती है। नगर निगम की ओर से अभियान चलाए जाने के बावजूद सड़कों पर छुट्टा पशुओं का डेरा है।
जाम से कामकाजी महिलाओं को ज्यादा दिक्कत
कामकाजी महिलाओं को किचन संभालने के साथ ही अपने काम पर भी जाना होता है। इससे पहले बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजने की भी जिम्मेदारी होती है, ऐसे में समय काफी कीमती होता है और ऊपर से जाम का सामना करना पड़े तो सब कुछ बिगड़ जाता है। सड़कें चौड़ी हुईं इसके बाद भी जाम एक बड़ी समस्या है। कई बार तो पुलिसवाले खड़े रहते तब भी जाम लगा रहता है। बच्चों की स्कूल की छुट्ट होती तो वह भी जाम में घंटों फंसते इससे उनके घर आने का समय बढ़ जाता जब बच्चों के खेलने का समय होता वह जाम में ही बीत जाता है।
मिशन शक्ति से आधी आबादी को मिल रही सुरक्षा
आधी आबादी को पूरी सुरक्षा मुहैया हो, इसके लिए समाज में जागरुकता बेहद जरूरी है। सुरक्षित होने पर ही महिला स्वावलंबन की तरफ कदम बढ़ाकर अपने हिस्से के सम्मान पर महिलाएं हक जता सकेंगी। महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन की ध्येय वाली मिशन शक्ति का व्यावहारिक असर इस रूप में देखा जा सकता है कि आधी आबादी अपने खिलाफ होने वाली हिंसा, उत्पीड़न और अत्याचार के खिलाफ मुखर हुई हैं। उनमें सुरक्षा के प्रति यकीन बढ़ा है और आज वे बेखौफ होकर निकल रही हैं।
थानों पर महिला हेल्प डेस्क, क्षेत्र में महिला बीट सिपाही
मिशन शक्ति के अंतर्गत ही महिलाओं की सुरक्षा और जागरुकता के लिए गोरखपुर में सभी थानों में महिला हेल्प डेस्क की स्थापना की गई है। महिलाओं से संबंधी अपराधों पर प्रभावी अंकुश लगाने तथा उनमें सुरक्षा की भावना जागृत करने के उद्देश्य से सभी थानों में महिला बीट गठित की गई है। इसका मकसद महिलाएं, महिला पुलिसकर्मियों से खुलकर अपनी समस्या बता सकें। जागरूकता कार्यक्रमों में महिलाओं को जहां सुरक्षित माहौल और संकट में शासन-प्रशासन के साथ का भरोसा दिया जा रहा है तो वहीं पुरुषों को भी मिशन शक्ति के उद्देश्यों की जानकारी दी जा रही है। किसी भी घटना पर चुप न रहने को प्रेरित किया जा रहा है तो साथ ही महिलाओं के इर्द-गिर्द सड़क पर बेवजह विचरण करने वाले लोगों को चेतावनी भी दी जा रही है कि छेड़खानी जैसी घटना पर गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
समस्याएं
शराब की दुकानों के पास अराजक तत्व रहते हैं, महिलाओं को परेशानी होती है।
स्कूलों के खुलने और बंद होने के दौरान जाम लगता है।
महिलाओं को बसों में सीट नहीं मिलती है। सिर्फ चार सीट से काम नहीं चलेगा।
सार्वजिनक स्थानों के शौचालयों में महिलाओं को असहज महसूस होता है।
उत्पीड़न के मामले महिलाओं की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा हैं।
सुझाव
शहर से बाहर एक क्षेत्र निर्धारित हो, जहां शराब की कई दुकानें एक ही पास हो।
अलग-अलग स्कूलों के खुलने-बंद होने के समय में अंतर होना चाहिए।
बसों में महिलाओं की सीट पर पुरुषों को बैठने से रोका जाए, आरक्षित सीटें भी बढ़ाई जाए।
पिंक शौचालयों की संख्या बढ़ाने और व्यवस्था सुधारना चाहिए।
महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाने के साथ जागरूकता पर जोर हो।
हमारी भी सुनिए
शहर में आसपास के स्कूलों के खुलने बंद होने का एक ही समय होने से दिक्कत आती है। स्कूलों के समय में अंतर होना चाहिए। ऐसी व्यवस्था हो तो जाम से राहत मिलेगी।
प्रीती श्रीवास्तव
शहर में यातायात व्यवस्था सुधारने की आवश्यकता है। कुछ ऑटो वालों से महिलाओं को दिक्कत होती है। उन्हें टोकने पर उनका जवाब देने का तरीका भी अच्छा नहीं होता है।
रंजना सिन्हा
मेला में जेंट्स के साथ लेडीज टायलेट बनाया जाता है, लेकिन ज्यादातर बाजार में ऐसी व्यवस्था नहीं है। पिंक टायलेट बहुत कम हैं, जहां हैं भी, वहां व्यवस्थाएं अच्छी नहीं है।
प्रीती सिन्हा
कई बैंक शाखाओं में महिलाओं को पुरुषों के बीच लाइन लगानी पड़ रही है। वहां लेडीज फर्स्ट का नियम बेमानी साबित होता है। वहां महिलाओं की लाइन अलग होनी चाहिए।
निशा श्रीवास्तव
शहर में त्योहार में ऐसी भीड़ होती है कि महिलाओं को बाजार में निकलने से पहले सोचना पड़ता है। कई स्थानों पर छुट्टा पशु और कुत्ते भी परेशानी का कारण बन जाते हैं।
वंदना श्रीवास्तव
सड़क जाम होती है तो स्कूली बसों में बैठे बच्चे भूखे रह जाते हैं। जिन बच्चों को दोपहर में घर पहुंचना चाहिए, देर से घर पहुंचते हैं। बच्चों को देर तक भूखे रहना अखर जाता है।
सुमनलता सहाय
मोहल्लों में स्वच्छता का अभाव है। कई स्थानों पर दिन में भी कूड़ा रहता है। इसमें स्थानीय लोग भी लापरवाही करते हैं। कूड़ा उठने के बाद भी लोग कूड़ा फेंक देते हैं।
पदमा सिंह
मैं खुद ही कार ड्राइव कर बाजार जाती हूं, लेकिन ऑटो वालों की मनमानी के कारण परेशानी होती है। कुछ ऑटोवाले अपनी गलती भी नहीं मानते हैं। हालांकि, पुलिस सहयोग करती है।
मधु सिंह
चौराहों पर हर समय ट्रैफिक पुलिस तैनात रहनी चाहिए। पुलिस कर्मियों के हटते ही या दूसरी जगह व्यस्त होते जाम लगने लगता है। पुलिस के भरोसे ही जाम से कुछ राहत मिल रही है ।
निवेदिता श्रीवास्तव
बैंक, अस्पताल सहित अन्य स्थानों पर हमलोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। महिलाओं के लिए जो नियम बनाए जाते हैं, उनका पालन नहीं हो रहा है।
वंदना श्रीवास्तव
महिलाओं के लिए रोजगार की विशेष योजनाएं बन रही हैं, लेकिन इसमें भी पुरुषों का हस्तक्षेप है। सोच बदलेगी तो स्थिति में सुधार आएगा। इसमें महिलाएं खुद ही जिम्मेदार हैं।
पूनम चौधरी
शहर में शराब की दुकानों के पास अराजक तत्वों का जमावड़ा रहता है। पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है। महिलाओं को ऐसे स्थानों से गुजरने में परेशानी होती है।
सीमा पांडेय
शहर में जाम के बचने के लिए लोग स्कूटी या ऑटो से जाते हैं, क्योंकि कार फंस गई तो निकलने में ज्यादा समय लग जाता है। यातायात व्यवस्था में सुधार होना आवश्यक है।
रुवि गुप्ता
शहर में कई स्थानों पर ठेकेदारों ने सड़क खोदकर छोड़ दी है, ऐसे स्थानों से स्कूटी लेकर जाने में कठिनाई होती है। ऐसे में हर काल पूरा करने के लिए समय निर्धारित चाहिए।
रीता श्रीवास्तव
बोले जिम्मेदार
महिलाओं की सुविधा के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। उनकी जो भी परेशानियां हैं उसके लिए एक बैठक कर कार्ययोजना बनाई जाएगी। सभी सम्बंधित विभागों को इसके लिए निर्देशित किया जाएगा।
गौरव सिंह सोगरवाल, नगर आयुक्त
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