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वरिष्ठता का मुद्दा फिर हाईकोर्ट पहुंचा, डीडीयू से मांगा जवाब

गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग में अधिष्ठाता पद को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रो. आरपी सिंह ने वरिष्ठता के मुद्दे पर हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें कोर्ट...

Newswrap हिन्दुस्तान, गोरखपुरSun, 3 Nov 2024 02:10 AM
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गोरखपुर, निज संवाददाता। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग में अधिष्ठाता पद को लेकर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कॉमर्स में वरिष्ठता का मुद्दा फिर हाईकोर्ट पहुंच गया है। वरिष्ठता को लेकर चुनौती देने वाले प्रो. आरपी सिंह की रिट पर प्रयागराज हाईकोर्ट ने डीडीयू प्रशासन को 19 नवम्बर तक जवाब दाखिल करने का आदेश जारी किया है।

प्रो. आरपी सिंह ने वरिष्ठता को लेकर पिछले वर्ष हाईकोर्ट में रिट दाखिल किया था। हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2023 में जारी आदेश में विश्वविद्यालय के कार्य परिषद को इसके लिए अधिकृत किया था। बीते 13 जुलाई को कार्य परिषद की बैठक में प्रो. श्रीवर्धन पाठक को कॉमर्स विभाग में प्रो. आरपी सिंह से सीनियर माना था। इसे लेकर प्रो. आरपी सिंह ने कार्य परिषद सदस्यों को साक्ष्यों के साथ पत्र लिखकर कार्य परिषद सदस्यों को पत्र लिखा था। प्रो. आरपी सिंह का तर्क था कि उनका पक्ष जाने बगैर कार्य परिषद ने वरिष्ठता निर्धारित की है। कोई निर्णय नहीं होने पर वे पुन: हाईकोर्ट पहुंचे हैं।

प्रो. आरपी सिंह ने मौलिक अधिकारों से जोड़ा : प्रो. आरपी सिंह ने हाईकोर्ट में इस मामले को मौलिक अधिकारों से जोड़ते हुए जल्द सुनवाई और निर्णय का आग्रह हाईकोर्ट से किया था। हाईकोर्ट ने इस मामले में विश्ववविद्यालय प्रशासन और डीन कॉमर्स से जवाब मांगा है।

यह है प्रो. आरपी सिंह का दावा

प्रो. आरपी सिंह के मुताबिक, प्रो. आरपी सिंह और प्रो. श्रीवर्धन पाठक ने एक ही दिन 15 फरवरी 1988 को विवि में लेक्चरर पद पर ज्वाइन किया था। उनकी जन्मतिथि 1 जुलाई 1965 और प्रो. श्रीवर्धन पाठक की 3 जुलाई 1965 है। एक ही दिन ज्वाइन करने लेकिन उम्र में अधिक होने के कारण प्रो. आरपी सिंह सीनियर हुए। अक्तूबर 1998 में आरपी सिंह ओपेन पोस्ट से रीडर बन गए थे। वर्ष 2000 में जारी वरिष्ठता क्रम में वे रीडर जबकि प्रो. श्रीवर्धन पाठक लेक्चरर थे। इसके बाद वर्ष 2001 में शासनादेश आया, शासनादेश के मुताबिक प्रो. श्रीवर्धन को 27 जुलाई 1998 से रीडर का पद दे दिया गया। उस शासनादेश में यह भी था कि इस आदेश से किसी का हित प्रभावित न हो। इस आदेश के कारण ही प्रो. आरपी सिंह को भी बाद में 27 जुलाई 1998 से ‘करियर एडवांसमेंट स्कीम का लाभ मिला। लेकिन बाद में जारी आदेश में उन्हें जूनियर दिखाया गया।

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