बोले गोरखपुर- दिहाड़ी मजदूरों से भी कम मानदेय, तारीख भी तय नहीं
Gorakhpur News - गोरखपुर में 800 रोजगार सेवकों का मानदेय 10,000 रुपये है, लेकिन ईपीएफ कटौती के बाद उन्हें सिर्फ 7,788 रुपये मिलते हैं। ये सेवक समय पर वेतन और मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि उनका जीवनयापन...
Gorakhpur news: वर्ष 2006 के दिसम्बर माह में गोरखपुर जिले में युवाओं ने रोजगार सेवक की संविदा वाली नौकरी को इसलिए ज्वाइन किया था कि भविष्य ठीक रहेगा। समय-समय पर मानदेय मिलेगा और लगातार सेवा के बाद नियमितिकरण भी होगा, लेकिन जिले में कार्यरत 800 रोजगार सेवकों की आर्थिक सेहत ठीक नहीं है। तय दस हजार रुपये के मानदेय में से ईपीएफ कटौती के बाद इन्हें 7788 रुपये ही मिलते हंै, वह भी समय से नहीं। इनकी होली, दीवाली उधार पर ही मनती है। रोजगार सेवक कहते हैं कि मजदूर मंडी में एक दिन का मानदेय 500 से लेकर 550 रुपये पहुंच गया है। लेकिन हमारा मानदेय दिहाड़ी मजदूर के बराबर भी नहीं है। इनका कहना है कि सरकार मानदेय तो बढ़ाए ही, यह भी सुनिश्चित करे कि मानदेय महीने में किसी भी एक तय तिथि को मिल जाए।
गोरखपुर। गोरखपुर में तैनात करीब 800 रोजगार सेवकों की जिंदगी तमाम दुश्वारियों के बीच कट रही है। अव्वल तो इनका मानदेय बेहद कम है, वो भी तय समय पर नहीं मिलता है। पिछले अक्तूबर महीने में इन्हें दो माह का मानदेय मिला था। रंगों के त्योहार होली के बीच इन्हें एक बार फिर मानदेय का इंतजार है। इतना ही नहीं ईपीएफ खाता भी अपडेट नहीं हो रहा है।
रोजगार सेवकों का सबसे बड़ा दर्द मानदेय को लेकर है। कम मानदेय समय से मिले इसका भी इंतजाम नहीं है। रोजगार सेवकों की मांग है कि रोजगार सेवकों का मानदेय पेट्रोल, स्टेशनरी आदि के लिए आने वाले फंड से होता है। सरकार को चाहिए कि रोजगार सेवकों के मानदेय के लिए बजट में अलग फंड का इंतजाम करे। रोजगार सेवकों को औसतन पांच महीने में एक बार मानदेय मिलता है। कौड़ीराम ब्लाक के अध्यक्ष रोजगार सेवक अजय कुमार पाल का कहना है कि चार साल पहले लखनऊ में ग्राम रोजगार सेवकों के हुए सम्मेलन में मुख्यमंत्री ने ग्राम रोजगार सेवकों के जॉब चार्ट में अन्य काम भी जोड़ने की मंच से घोषणा की थी। ईपीएफ से लेकर एचआर पॉलिसी को लागू करने का वादा पूरा नहीं हुआ। आर्थिक तंगी के चलते रोजगार सेवकों की जिंदगी में तमाम दुश्वारियां हैं। खोराबार क्षेत्र के रोजगार सेवक सुनील कुमार भारती का कहना है कि कई ग्राम रोजगार बीमार चल रहे हैं, लेकिन दवा-इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं। जीवन सुरक्षा को लेकर कोई पालिसी नहीं है। रोजगार सेवकों का दर्द है कि जिन साथियों की असमय मौत हो जा रही है, उनके परिवारों के जीवन यापन के लिए कोई इंतजाम नहीं है। कम से कम परिवार के एक सदस्य को मृतक आश्रित के रूप में समायोजित कर लिया जाए तो परिवार को कुछ मदद हो जाएगी। रोजगार सेवक वीरेंद्र प्रताप सिंह ‘सोनू का कहना है कि अक्तूबर, 2021 में मानदेय में आंशिक बढ़ोतरी हुई थी। इसके साथ ही एचआर पॉलिसी को भी लागू करने का भरोसा मिला था। रोजगार सेवक फारूख अंसारी आजम का कहना है कि रोजगार सेवकों से सरकार सभी योजनाओं के कार्य कराती है। मनरेगा के साथ ही निर्धनतम परिवार का सर्वे, आवास सर्वे, पेंशन सत्यापन से लेकर बीएलओ की ड्यूटी लगाकर जिम्मेदारी सौंपी जाती है। जिम्मेदारी के काम के साथ उचित मानदेय का भी इंतजाम होना चाहिए।
ईपीएफ खाता अपडेट नहीं
रोजगार सेवकों के लिए ईपीएफ की सुविधा वर्ष 2015 में शुरू हुई थी। लेकिन इनका यूएन नंबर अभी तक अपडेट नहीं हो सका है। रोजगार सेवकों का आरोप है कि ईपीएफ का करीब 9.90 करोड़ रुपये विभिन्न ब्लाक के खातों में पड़ा हुआ है। अधिकारियों की लापरवाही से रोजगार सेवकों के ईपीएफ खाते में अंशदान नहीं जा रहा है। ईपीएफ अपडेट होता तो कम से कम न्यूनतम पेंशन ही रोजगार सेवकों को मिल जाता।
लैपटॉप और मोबाइल दिया जाए
मनरेगा से लेकर सरकार की सभी योजनाएं ऑनलाइन हो गई हैं। लेकिन सरकार की तरफ से रोजगार सेवकों को लैपटाप और मोबाइल नहीं दिया जा रहा है। रोजगार सेवकों की मांग है कि प्रदेश में सभी सेवकों को लैपटाप और मोबाइल दिया जाए। वहीं मोबाइल में रिचार्ज करने के लिए भुगतान का इंतजाम भी होना चाहिए। इनका कहना है कि सप्ताह में एक दिन ब्लाक में मीटिंग के लिए बुलाया जाता है। लेकिन पेट्रोल आदि की कोई सुविधा नहीं मिलती है।
पति सुनील की मौत के बाद माया देवी पर जिम्मेदारियों का बोझ
जंगल कौड़िया ब्लॉक के ग्राम पंचायत कुड़वा निवासी स्व. सुनील कुमार अपनी ही ग्राम पंचायत में वर्ष 2006 से मनरेगा के तहत संविदा पर ग्राम रोजगार सेवक रहे। पिछले साल जून में अचानक उनकी मौत हो गई। सुनील की मौत के बाद पूरा परिवार मुफलिसी में आ गया। पत्नी माया देवी अपने दो बेटों अभय कुमार, अमरजीत के साथ मजदूरी करती हैं। मां को इकलौती बेटी साधना के विवाह की चिंता है। सुनील का परिवार इन दिनों काफी कठिनाइयों का सामना कर रहा है। लेकिन शासन की ओर से इस परिवार का किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं किया गया।
शिकायतें
रोजगार सेवकों का मानदेय 10000 रुपये है। 17 वर्षों से सेवा दे रहे रोजगार सेवकों का इतनी कम रकम में खर्च चलाना मुश्किल है।
मानदेय हर महीने नहीं मिलता है। होली, दीवाली जैसे त्योहारों में भी उधार पर जिंदगी की गाड़ी चलती है।
तमाम आश्वासन के बाद भी एचआर की सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। 19 साल की नौकरी के बाद भी नियमित सेवा नहीं है।
रोजगार सेवकों की मृत्यु के बाद आश्रितों को कोई लाभ नहीं मिलता है। कई परिवार बर्बाद हो गए हैं।
ईपीएफ कटौती वर्ष 2015 से ही लागू है। लेकिन यूएन एकाउंट अपडेट नहीं होने से संशय की स्थिति बनी हुई है।
सुझाव
महंगाई को देखते हुए मानदेय कम से कम 20 हजार रुपये महीना किया जाना चाहिए। पुराने रोजगार सेवकों को स्थायी करने के लिए नियमावली बननी चाहिए।
जो भी मानदेय मिलता है, वह महीने के अंतिम दिन मिलना चाहिए। समय से मानदेय मिलने से जरूरतें पूरी हो सकेंगी।
एचआर की सुविधाएं लागू होंगी तो अवकाश मिल सकेगा। महिला रोजगार सेवकों को मातृत्व लाभ मिल सकेगा।
रोजगार सेवकों की मृत्यु पर आश्रित को उसकी जगह समायोजित करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
विभिन्न ब्लाक में पीएफ विभाग द्वारा कैंप लगाकर रोजगार सेवकों का यूएन एकाउंट अपडेट किया जाना चाहिए।
हमारी भी सुनें
19 वर्षों से संविदा पर तैनात रोजगार सेवकों को आज तक राज्य कर्मचारी का दर्जा नहीं मिल सका है। अल्प मानदेय से परिवार का खर्च चलाने में समस्याएं होती हैं।
-मंगल सिंह यादव, ब्लॉक अध्यक्ष खजनी
शासन से अब तक एचआर पालिसी भी लागू नहीं की गई है। जॉब चार्ट के अतिरिक्त कोई भी कार्य करने पर उसका अलग से भत्ता नहीं मिलता है।
-वीरेंद्र प्रताप सिंह, जिलाध्यक्ष, ग्रारोसे, संघ
रोजगार सेवकों को उनका हक नहीं मिल रहा है। 19 वर्षों से सेवा देने के बावजूद आईडी नहीं मिल सकी है। कई बार पहचान को लेकर संकट खड़ा होता है।
-फारुख आजम अंसारी, प्रदेश महासचिव
ग्राम पंचायत और ब्लॉक स्तर से हमेशा किसी न किसी बहाने ग्राम रोजगार सेवकों को प्रताड़ित किया जाता है। इस मसले में शासन भी चुप्पी साधे है।
-अखिलेश राय, ब्लाक अध्यक्ष सहजनवा
रोजगार सेवकों का मानदेय कई महीने तक बकाया रहता है, जिस महीने में काम की कमी होती है। समीक्षा में ब्लॉक स्तर से डांट मिलती है। मानदेय तक रोक दिया जाता है।
-अनिल सिंह, जिला महामंत्री
मानदेय समय पर नहीं मिलने से मुफलिसी में जी रहे हैं। एक तरफ काम का बोझ है, तो दूसरी ओर परिवार का खर्च कैसे चले इसकी चिंता।
-मिंटू चौधरी, खोराबार
मानदेय से ईपीएफ की धनराशि तो काट ली जाती है, लेकिन धनराशि हम लोगों के यूएएन खाते में नहीं जा पा रही है। रोजगार सेवकों के भविष्य से धोखा हो रहा है।
-तेजप्रताप सिंह, खोराबार
मनरेगा में ग्राम प्रधानों के हस्तक्षेप को रोका जाना चाहिए। योजना की गाइडलाइन के अनुसार मनरेगा में ग्राम प्रधान का कोई रोल ही नहीं है।
-भगवान दास, ब्लाक अध्यक्ष पिपराइच
10 हजार रुपए के मानदेय से 2212 रुपए ईपीएफ कट जाता है। महज 7788 रुपए ही खाते में आते हैं। इतने कम मानदेय में गुजारा नहीं चल पा रहा है।
-घनश्याम पासी, संगठन मंत्री
मनरेगा में फाइल मेंटिनेंस, स्टेशनरी, फोटो कॉपी, इंटरनेट रिचार्ज आदि सब ग्राम रोजगार सेवक अपनी जेब से कराते हैं। शासन से इसका अतिरिक्त खर्च मिलना चाहिए।
-विनोद कुमार, पिपराइच
मनरेगा में पारदर्शिता के लिए शासन ने मोबाइल एप के माध्यम से श्रमिकों की उपस्थिति कराना शुरू किया है। लेकिन मोबाइल की व्यवस्था खुद करनी पड़ी है।
-सुनील कुमार, खोराबार
कार्य कराने के दौरान विवाद की भी स्थिति पैदा हो जाती है। शासन से रोजगार सेवकों की सुरक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। रोजगार सेवकों पर हमले भी हो चुके हैं।
-रविन्द्रनाथ, ब्रह्मपुर
बोले जिम्मेदार
रोजगार सेवकों के मानदेय के लिए बजट शासन से आवंटित होता है। होली से पूर्व सभी को मानदेय भुगतान का शासन का निर्देश है। ऐसे में सभी पुराना बकाया महीने के अंत तक होने की उम्मीद है। बांसगांव और उरुवा ब्लाक का यूएन एकाउंट अपडेट नहीं था। अब वह भी हो गया है। अब रोजगार सेवक ईपीएफ की डिटेल यूएन एकाउंट से जान सकते हैं।
-रघुनाथ सिंह, डीसी मनरेगा
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