दो दरोगाओं ने डा. अभिषेक के 14 केस में एक दिन में लगाया था एफआर
Gorakhpur News - जांच के बाद सामने आया मामला, एफआर लगाने वाले एक दरोगा की हो चुकी है मौत,दूसरे की देवरिया में तैनातीजांच के बाद सामने आया मामला, एफआर लगाने वाले एक दरो
गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता सैकड़ों छात्रों के साथ जालसाजी कर उनका भविष्य दांव पर लगाकर राज नर्सिंग एंड पैरा मेडिकल कॉलेज के संचालक अभिषेक यादव को दो दरोगा ने बचाने की कोशिश की थी। अभिषेक के 14 केस में एक ही रात में इन दोनों दरोगा ने एफआर लगाकर फाइल दाखिल कर दी थी। शासन के निर्देश पर इसकी जांच शुरू हुई तो दोषी दरोगा का नाम सामने आया। हालांकि इनमें से एक दरोगा की करीब पांच साल पहले मौत हो गई है जबकि दूसरे की देवरिया जिले में तैनाती है।
दरअसल, मई 2016 में कोतवाली थाने में तैनात दरोगा पीयूष सिं और वीरेन्द्र यादव ने इसमें एफआर लगाई थी। हालांकि सभी केस की जांच इनसे पहले 19 दरोगा किए थे। 2022 में जब इस मामले की सच्चाई सामने आई तब न सिर्फ कॉलेज संचालक अभिषेक यादव पर नया केस दर्ज किया गया, बल्कि पुराने 14 केस में री विवेचना कराकर तत्कालीन एसएसपी विपिन टाडा ने चार्जशीट दाखिल कराई थी। लेकिन तब फर्जीवाड़े में साथ देने वाले दरोगा पर कार्रवाई नहीं हुई थी।
शासन ने जब एफआर लगाने वाले दरोगा पर कार्रवाई के बारे में पूछा तो हड़कम्प मच गया। एसएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर ने मामले की जांच एसपी नार्थ जितेन्द्र कुमार श्रीवास्तव को सौंपी। जांच में दोनों दरोगा दोषी पाए गए। उनके खिलाफ दंड का प्रावधान किया गया। हालांकि इनमें से एक दरोगा पीयूष सिंह की पांच जनवरी 2020 को मौत हो चुकी है जबकि दूसरे की वर्तमान में देवरिया में पोस्टिंग है।
जांच का दायरा बढ़ा तो और लोग भी आएंगे कठघरे में
पुलिस सूत्रों के मुताबिक जिस तरह से 14 केस की इस विवेचना में कुल 21 दरोगा शामिल रहे और बाद में इनमें से सिर्फ दो दरोगा को एफआर लगाने की जिम्मेदारी दी गई। इससे यह साफ है कि दरोगा तो महज मोहरे हैं। जांच का दायरा बढ़ा तो इसमें और बड़े अफसर भी कटघरे में आएंगे। यही नहीं, इन दरोगा ने एक ही रात में एफआर लगाई है। लिहाजा उन्हें सिर्फ एफआर लगाने का ही टार्गेट दिया गया था। एफआर सीओ दफ्तर से होकर कोर्ट में जाता है। माना जा रहा है कि शासन ही इसमें जांच का दायरा और दंड निर्धारित कर सकता है।
निर्धारित से ज्यादा सीट पर दाखिले में पकड़ गया खेल
राज नर्सिंग एंड पैरामेडिकल कॉलेज में कूटरचित दस्तावेज तैयार करके निर्धारित से ज्यादा सीटों पर दाखिले का खेल शैक्षिक सत्र 2014-15 से चल रहा था। अतिरिक्त सीट पर दाखिले की वजह से ही तमाम छात्र परीक्षा से वंचित हो गए थे। भविष्य तक दांव पर लग गया था। पीड़ित छात्रों ने अलग-अलग तहरीर देकर कोतवाली थाने में जनवरी से अप्रैल 2015 के बीच केस दर्ज कराया था। कोतवाली पुलिस ने कूटरचित दस्तावेज तैयार कर जालसाजी करने, हत्या की कोशिश, धमकी देने की धाराओं में अलग-अलग 14 केस दर्ज किए थे। लेकिन, गलत तरीके से 23 मई 2016 को सभी मामलों में एफआर लगाकर अभिषेक यादव को बड़ी राहत दे दी गई थी।
2022 में केस दर्ज होने पर निकला गड़ा मुर्दा
इस बीच 10 जनवरी 2022 को एक बार फिर कूटरचित दस्तावेज पर दाखिले का मामला सामने आया। शासन स्तर से मिली तहरीर पर कोतवाली पुलिस ने एक और केस दर्ज कर लिया लेकिन, अभिषेक की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी। बाद में छात्रों ने धरना-प्रदर्शन किया। गोरखनाथ मंदिर का घेराव तक करने पहुंच गए। पिपराइच में जाम लगाकर कॉलेज संचालक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की। इसी का नतीजा रहा कि तहसीलदार सदर ने 17 मार्च 2022 को पिपराइच थाने में एक और मुकदमा दर्ज करा दिया। इस मामले में भी अभिषेक यादव को आरोपी बनाया गया। बाद में लखनऊ पुलिस ने भी अभिषेक यादव के खिलाफ जालसाजी का केस दर्ज किया। साथ ही 15 अप्रैल को गोरखपुर स्थित घर से गिरफ्तार करके जेल भिजवा दिया था।
तत्कालीन एसएसपी ने कराई जांच तो खुला खेल
कॉलेज के छात्रों ने मार्च 2022 में तत्कालीन एसएसपी डॉ. विपिन ताडा को राज नर्सिंग एंड पैरामेडिकल कॉलेज केसंचालक अभिषेक यादव के खिलाफ दर्ज पुराने केस और उसमें लगे एफआर की जानकारी दी। इसके बाद एसएसपी ने गोपनीय जांच कराई। जांच में पाया गया कि सभी मामलों में गलत तरीके से एफआर लगाई गई थी। एसएसपी के आदेश पर कानूनी प्रक्रिया पूरी कर सभी मामलों को फिर से खोलकर जांच पूरी कर 2022 में ही चार्जशीट कोर्ट में दाखिल करा दी है।
राज नर्सिंग एंड पैरा मेडिकल कालेज के संचालक डॉ. अभिषेक यादव पर दर्ज 14 मुकदमों में एक ही रात में एफआर लगाने की जांच में दो दरोगा दोषी पाए गए हैं। इनमें एक दरोगा की जनवरी 2020 में मौत हो चुकी है। दूसरे की देवरिया में तैनाती हैं। रिर्पोर्ट शासन को भेज दी गई है।
- जितेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, एसपी नार्थ
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