शहर से गांव तक फैला सूदखोरों का मकड़जाल
गोंडा में सूदखोरी का धंधा तेजी से बढ़ रहा है, जहां जरूरतमंद लोग बैंकों की सख्त शर्तों के कारण सूद पर पैसे ले रहे हैं। सूदखोरों द्वारा ब्याज की वसूली की जा रही है और कई लोगों के घर और खेत बिक गए हैं।...
गोंडा, संवाददाता। बैंकों की सख्त शर्तें और उन्हें पूरा करने के बाद भी कमीशनखोरी से त्रस्त होकर क्षेत्र के जरूरतमंद में सूद पर पैसा ले लेते हैं। जो ब्याज दर ब्याज चुकाने के बाद भी देनदारी से मुक्ति नहीं पाते। कुछ लोग तो किसी तरह सूदखोरों के चंगुल से निकल जाते हैं लेकिन बहुतों के घर व खेत भी बिक गए। परिवार सड़क पर आ गया। दाने-दाने को मोहताज हो गए। बच्चों की पढ़ाई छूट गई, लड़के की शादी टूट गई। आलम यह है कि सब कुछ गंवाने के बावजूद सूदखोरों से लिया गया मूलधन आज तक नहीं अदा हो सका। वर्तमान समय में जिले में न तो कोई संस्था रजिस्टर्ड है और न ही कोई व्यक्ति ब्याज पर पैसा देने के लिए अधिकृत है। इसके बावजूद भी जिले में सूदखोरों का करोड़ों रुपए का धंधा फल-फूल रहा है। जो गांव से शहर तक फैला हुआ है। ब्याज की वसूली प्रतिमाह के हिसाब से की जाती है। यदि समय पर ब्याज की अदायगी नहीं की गई तो वह मूलधन में जुड़ जाता है। सूदखोरों ने ब्याज की वसूली के लिए अपने एजेंट भी बना रखे हैं जो निर्धारित कमीशन पर ब्याज की वसूली करके सूदखोरों को देते हैं। जब सूद पर पैसा लेने वाला पैसा नहीं दे पाता तो जबरन उसका खेत अथवा घर सूदखोरों द्वारा बैनामा करवा लिया जाता है। जिसकी शिकायत भय व दहशत के कारण पीड़ित प्रशासन से भी नहीं करता। पथवलिया, बालपुर बाजार, दुरगोड़वा, सरैंया, नारायनपुर मर्दन मोकलपुर, बंजरिया, हड़ियागाड़ा आदि गांवों के ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सूदखोरों ने ब्याज दर ब्याज जोड़कर कई लोगों के खेत व मकान लिखवा लिए।
मूल नहीं ब्याज की वसूलने पर रहता है जोर: सूदखोर ब्याज की अदायगी को लेकर काफी सक्रिय रहते हैं। मूलधन पर कोई जोर नहीं देते। सूद पर पैसा देने से पहले स्टांप पेपर पर लिखवा लेते हैं कि समय पर पैसा नहीं दे पाये तो अमुक प्रापर्टी उनकी होगी।
वर्जन..
यदि कहीं पर नियम के विरुद्ध सूदखोरी का मामला है और संज्ञान में आयेगा तो संबंधित के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी। लोगों को सूचना देना चाहिए जिससे ऐसे लोगों को दंड मिल सके।
-अवनीश त्रिपाठी, एसडीएम सदर
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