Krishna Janmashtami: वृंदावन की तरह गोंडा में भी है राधा कुंड, अब संवारा जाएगा
- गोंडा में मौजूद राधाकुंड जलाशय भी अनूठा और कई पारंम्परिक संस्कृतियों को देखते हुए बनवाया गया था। शहर के बीचोबीच कई हेक्टेयर में फैले इस राधाकुंड के बाबत डेढ़ सौ सालों की कई रोचक कहानियां भी हैं। मसलन, इस राधाकुंड में एक सुंरग के साथ इससे कुछ दूरी पर एक बड़ा जलाशय और था, उससे जुड़ा था।
सन 1857 में देश की पहली क्रांति किसी से छिपी नहीं है जब अंग्रेजों को यहां अवध क्षेत्र में गोण्डा के राजा देवी बख्श सिंह से लोहा लेना पड़ा। कहते हैं कि राजा के जीते-जी तो यह क्षेत्र अंग्रेज गुलाम नहीं बना सके। यह अलग बात है कि राजा देवीबख्श सिंह नेपाल की जंगलों की तरफ चले गए। इस बीच महारानी मथुरा-वृंदावन के भ्रमण पर निकल गईं। बताते हैं कि धर्मभीरु होने के नाते उन्हें मथुरा-वृंदावन इतना रास आ गया कि वहां से लौटी तो यहां घर में राधा कुंड के नाम से जलाशय बनवा डाला। यह महारानी और कोई नहीं बल्कि, जामवंती कुंवरि थीं। गोण्डा शहर में उन्होने पुरानी हनुमानगढ़ी का निर्माण कराने के साथ बाबा दुखहरण नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर भव्य रूप दिया है। जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु खास अवसरों पर जुटते हैं।
बताते हैं कि राधाकुंड जलाशय भी अनूठा और कई पारंम्परिक संस्कृतियों को देखते हुए बनवाया गया था। शहर के बीचोबीच कई हेक्टेयर में फैले इस राधाकुंड के बाबत डेढ़ सौ सालों की कई रोचक कहानियां भी हैं। मसलन, इस राधाकुंड में एक सुंरग के साथ इससे कुछ दूरी पर एक बड़ा जलाशय और था, उससे जुड़ा था। मौजूदा समय में इस जलाशय का नाम ‘सागर तालाब’ है। वयोवृद्ध व वरिष्ठ समाजसेवी केबी सिंह कहते राजा का महल इसी सागर तालाब के मध्य में था और सुरंग के रास्ते कालांतर में आना जाना होता है। वहीं कुछ लोग इस सुरंग से तालाबों को आपस में जोड़ने को बता रहे हैं। महारानी ने एक ट्रस्ट भी वृंदावन से प्रेरित होकर ‘मध्य सागर वृंदावन’ बनाया था जो इन जलाशयों की देखरेख और उसके रखरखाव का जिम्मा था। शायद उसी ट्रस्ट के नाम से मौजूदा समय में इसी राधाकुंड के बगल ‘सागर तालाब’ पड़ा है।
राधाकुंड व्यवस्थित करता है शहर का जलस्रोत
इस राधाकुंड में कई जलस्रोत होने से खुद भरे होने के साथ शहर का भूजल स्तर सही रखता है। राधाकुंड जलाशय में कई जलस्रोत बनवाए गए थे। आसपास के लोग बताते हैं कि अभी भी अधिक खुदाई करने पर कई जगहों से पानी निकलता है। बताते हैं कि शहर के बीचोंबीच होने से पूरे वर्ष भर भरा रहता है और भूजल स्तर को सही रखता था। वयोवृद्ध श्यामलाल कहते हैं कि यहां आसपास महज 20 फीट पर पानी निकलने लगता था। इस कुंड में सुंरग इसके पश्छिमी किनारे पर था। इसके कुछ अंश अभी भी दिखाई देते हैं। अब अधिकांश हिस्सा अतिक्रमण का शिकार हो चुका है। लोगों का कहना है कि राधाकुंड को पारंम्पारिक संस्कृतियों को समेटे था, पूरे वर्ष पानी से लबालब होने के बावजूद ऐन नागपंचमी के दिन दक्षिणी-पश्छिमी कोने पर एक हिस्सा सूख जाता था। शहर के पहलवानों की इस दिन यहां कबड्डी व कुश्ती होती थी।
पूर्व डीएम रामबहादुर और अब मौजूदा डीएम संवारने में जुटी
इस राधाकुंड जलाशय को शहर के लिए महत्वपूर्ण मानते हुए वर्ष 2011 में तत्कालीन डीएम रामबहादुर ने पहले इसमें भरी जलकुंभी आदि साफ-सफाई कराई। अतिक्रमण आदि हटवाकर पहली बार दीवाली पर चारो तरफ दीपों से सजाकर इसे रोशन किया। उसके बाद अब मौजूदा डीएम नेहा शर्मा ने इसमें खुली आसपास के लोगों की नालियां बंद कराई। इसके अलावा ईओ पालिका को इस राधाकुंड जलाशय के योजनाएं बनाकर इसे मूर्त रुप में लाने को निर्देशित किया है। गोंडा डीएम नेहा शर्मा ने बताया, पालिका अधिकारियों के साथ इस राधाकुंड का भ्रमण कर सुंदर और भव्यता देने के योजनाएं बनाने को निर्देशित किया है। आसपास साफ-सफाई करा दी गई है। इसमें नालियां खोलने वालों को 15 लोगों की नालियों को तत्काल बंद कराने को निर्देश दिए गए हैं।
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