बोले गाजीपुर : शिक्षकों के समान वेतन और समायोजन चाहें शिक्षा के मित्र
Ghazipur News - शिक्षामित्रों ने अपनी समस्याएं साझा की हैं, जिसमें उन्हें कम वेतन और बकाया पारिश्रमिक का सामना करना पड़ रहा है। 20 वर्षों से समायोजन का इंतजार कर रहे शिक्षामित्रों का कहना है कि अन्य विभागों में सैलरी...
बहुत अच्छा लगा जब शिक्षामित्र बने। जिम्मेदारियों से घबराए नहीं। स्थायी शिक्षकों के कंधे से कंधा मिलाकर अपने स्कूल के शैक्षणिक स्तर में सुधार के लिए हर संभव प्रयास किए। करते चले आ रहे हैं। बीएलओ समेत दूसरी जिम्मेदारियां भी निभाते हैं मगर महीने भर का खर्च चलाने लायक मानदेय नहीं मिलता। बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी का पारिश्रमिक पांच वर्षों से बकाया है। 20 वर्षों से समायोजन का इंतजार कर रहे हैं। अच्छी डिग्रियां होने के बाद भी अपात्र बता दिया जा रहा है-यह दर्द है जिले के शिक्षा मित्रों का। महुआबाग प्राथमिक विद्यालय परिसर में शिक्षामित्रों ने ‘हिन्दुस्तान से अपना दर्द साझा किया। एमए डिग्रीधारी संध्या मिश्रा मुगलानी चक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षामित्र हैं। बताया कि जनवरी में मानदेय के रूप में पांच हजार रुपये मिले हैं। इतने पैसों में परिवार का गुजारा कैसे करें, यह समझ में नहीं आ रहा है। रचना श्रीवास्तव एमए और बीएड डिग्रीधारी हैं लेकिन आज तक समायोजन नहीं हुआ। बीस सालों से रेलवे प्राइमरी स्कूल में पढ़ा रही हैं। उन्होंने कहा कि सभी विभागों में सैलरी समय के साथ बढ़ती गई लेकिन हमारी कम होती गई। जब नौकरी शुरू की थी, तब चार हजार मिलते थे। आज भी कमोबेश इतने ही मिलते हैं। इस मंहगाई के दौर में इतने रुपयों में कैसे गुजारा होगा, यह सोचने वाला कोई नहीं है। हम न तो बच्चे की फीस भर सकते हैं और न ही किसी बीमारी में इलाज करा सकते हैं। तीन विषयों से एमए माया गुप्ता ने बताया कि बच्चों को पढ़ाने के अलावा यू-डायस, आधार आईडी, निपुण भारत अभियान की जिम्मेदारी भी निभाते हैं। कहीं-कहीं शिक्षामित्रों के भरोसे ही विद्यालय चल रहे हैं लेकिन उनके सम्मानजनक वेतन की मांग नज़रअंदाज कर दी जाती है।
काम पढ़ाने का, मेहनताना मजदूरों से भी कम
महिमा देवी भी 20 साल से अधिक समय से इस सेवा में हैं। उन्होंने बताया कि सुबह 9 बजे से शाम 3 बजे तक पढ़ाती हैं। रोज 333 रुपये मिलते हैं। जबकि एक मजदूर की मजदूरी रोजाना चार सौ रुपये हो गई है। राजगीर को छह से आठ सौ रुपये रोजाना मिलते हैं। उन्होंने कहा कि मानदेय भी सिर्फ 11 महीने का ही मिलता है। इसमें भी कटौती कर दी जाती है। बकौल महिमा देवी जब नौकरी में आए थे, तब दाल तीस रुपये किलो मिल जाती थी। आज 150 रुपये में भी मुश्किल है। प्रश्न करती हैं कि आप ही बताओ, कैसे जीएं? फिरदौस परवीन ने कहा कि बच्चों को शिक्षा देने में गर्व की अनुभूति होती है लेकिन सम्मानजनक पारिश्रमिक भी मिलना चाहिए ताकि समाज में सिर उठाकर जी सकें।
25 सौ से अधिक शिक्षामित्रों को समायोजन का इंतजार
उत्तर-प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के जिलाध्यक्ष रामप्रताप यादव ने बताया कि जिले में 2500 से अधिक शिक्षामित्र समायोजन की राह देख रहे हैं। प्राथमिक विद्यालयों में पिछले 24 वर्षों से शिक्षामित्र गरीब, वंचित औेर पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। पिछले सात वर्षों से शिक्षामित्र के मानदेय में एक रुपये की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इसकी वजह से आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। उन्हें तनाव के चलते हार्ट अटैक तक हो रहे हैं। परिषदीय विद्यालयों के शिक्षामित्र सहायक अध्यापक के बराबर कार्य करते हैं लेकिन मानदेय बताने लायक भी नहीं है। जबकि इनसे बीएलओ से लेकर चुनाव कराने तक का काम लिया जाता है। रामप्रताप यादव ने कहा कि शिक्षामित्रों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा मिलनी चाहिए। इसके साथ ही उन्हें पूरे सेवाकाल में 365 दिन का मेडिकल अवकाश देना चाहिए। यह मांग संगठन की ओर से उठाई भी जा रही है।
पांच साल से नहीं मिला पारिश्रमिक
मंजय कुमार यादव ने तंज कसा कि 10 साल का अनुभव रखने वाले वकील को जज बना दिया जाता है। हम 25 साल से शैक्षिणिक कार्य कर रहे हैं मगर पूर्ण शिक्षक का दर्जा नहीं मिला। बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी लगायी जाती है लेकिन इसका मेहनताना पांच साल से बकाया है। प्रतियोगी परीक्षाओं में ड्यूटी नहीं लगाई जाती है। शायद हमारे ऊपर विश्वास नहीं किया जाता।
एक ही विद्यालय में दोयम व्यवहार
रामभरोसे यादव के अनुसार विद्यालय में शिक्षण के अलावा अन्य कार्य भी शिक्षा मित्रों से लिए जाते हैं। एक ही संस्थान में समान पद पर काम करने के बाद भी हमें दोयम दर्जे का समझा जाता है। इससे मन कचोटता है। विनोद सिंह ने बताया कि शिक्षा मित्रों के संबंध में सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। इस कारण कोई सुविधा नहीं मिलती है। हम परिवार को भी निश्चिंतता नहीं दे पाते।
गंदा पानी पीने की मजबूरी
कैलाश कुशवाहा का दर्द है कि बच्चों को पढ़ाने और उन्हें सशक्त बनाने में शिक्षामित्र बड़ी भूमिका निभाते हैं लेकिन उनके काम की कोई सराहना नहीं करता। पूरे 12 महीने का मानदेय भी नहीं दिया जाता। वहीं, स्कूलों में व्याप्त अव्यवस्थाएं भी परेशानी बढ़ाती हैं। कई विद्यालयों में हैंडपंप से पानी गंदा आता है। उसे ही पीना विद्यार्थियों के लिए भी मजबूरी है। कई विद्यालयों में फर्नीचर नहीं हैं। छात्रों को टाट-पट्टी पर बैठना पड़ता है। लक्ष्मण यादव ने बताया कि राजनीतिक दल चुनाव के समय हमें स्थायी कराने का आश्वासन देते हैं। चुनाव बाद सभी भूल जाते हैं।
पास के गांव हो जाए नियुक्ति
महिमा देवी ने बताया कि कई शिक्षामित्र की नियुक्ति शादी से पहले हुई लेकिन आज भी वे मायके में रहने को मजबूर हैं। क्योंकि उनकी नियुक्ति जहां है, वहीं वे काम कर सकती हैं। जबकि सरकार को उन्हें उनकी ससुराल के पास के विद्यालय में तैनाती देनी चाहिए। वे इस उम्मीद में काम कर रही हैं कि कम से कम उनका समायोजन ही हो जाएगा। शिक्षामित्र संघ के जिलाध्यक्ष रामप्रताप यादव ने बताया कि इस मांग पर अधिकारी आश्वासन की घुट्टी पिलाते हैं।
शिक्षा के मित्रों का दर्द
जनवरी में 5 हजार रुपये मिले हैं। इतने कम पैसों में परिवार का गुजारा नहीं किया जा सकता।
-संध्या मिश्रा
बीस साल से नौकरी कर रहे हैं। इतने दिनों में सभी विभागों के कर्मचारियों की सैलरी बढ़ी लेकिन हमारी कम होती गई।
-रचना श्रीवास्तव
हिन्दी, गृह विज्ञान और समाजशास्त्र में एमए किया है। फिर भी अपात्र बताकर समायोजन नहीं किया जा रहा है।
-माया गुप्ता
सुबह नौ से शाम तीन बजे तक काम करते हैं। मानदेय के रूप में 333 रुपये मिलते हैं। हमारी दिहाड़ी मजदूर से भी खराब स्थिति है।
-महिमा देवी
डबल एमए, बीएड और टेट पास हैं। इतनी डिग्री के बाद भी समायोजन नहीं किया जा रहा है। नौकरी ली जा रही है।
-संगीता यादव
हाईकोर्ट के वकील 10 साल के अनुभव के बाद जज बन जाते हैं। हम बीस साल के अनुभवी पांच हजार पर काम करने को विवश हैं।
-मंजय यादव
शिक्षामित्रों को चुनाव आने पर हक देने का वादा किया जाता है लेकिन बाद में सभी भूल जाते हैं।
-रामप्रताप यादव
बोर्ड परीक्षा में ड्यूटी लगा दी जाती है लेकिन मानदेय समय से नहीं मिलता। पिछले पांच सालों का पैसा नहीं मिला है।
-रामभरोसे यादव
हमारी और एक स्थायी शिक्षक की पात्रता एक समान है, दोनों ही पढ़ाते हैं लेकिन वेतन में बड़ा अन्तर है।
-प्रतिभा मौर्या
अनुभव के आधार पर शिक्षामित्रों का समायोजन होना चाहिए। पारिश्रमिक भी काम के अनुसार मिलना चाहिए।
-फिरदौस परवीन
शिक्षा मित्रों के बाबत सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है। इससे प्रमोशन आदि सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता।
-विनोद सिंह
स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है। इसकी वजह से बच्चे प्राथमिक विद्यालयों में आने से बचते हैं।
-कैलाश
चिकित्सा सुविधा नि:शुल्क होनी चाहिए। इससे शिक्षामित्रों को किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा।
-लक्ष्मण यादव
सुझाव :
शिक्षमित्रों का मानदेय बढ़ाना चाहिए। उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार इसे कम से कम 10 हजार किया जाए।
काम एक बराबर है तो शिक्षा मित्रों को प्रमोशन और वेतन वृद्धि की सुविधा देनी चाहिए। इससे मनोबल बढ़ेगा।
शिक्षा मित्रों की प्रतियोगी परीक्षाओं में परीक्षा ड्यूटी लगायी जानी चाहिए। इसमें पारिश्रमिक मिलता है।
शिक्षा मित्रों को शिक्षण कार्य में ही लगाया जाए। बीएलओ के काम में लगने से अध्यापन प्रभावित होता है।
स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम होना चाहिए। पेयजल और शौचालय समस्या का निदान बहुत जरूरी है।
शिकायतें :
शिक्षामित्रों को मानदेय बहुत कम मिलता है। उसमें बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी नहीं निकल पाता।
काम स्थायी शिक्षकों की तरह लिया जाता है लेकिन न प्रमोशन किया जाता है, न वेतन वृद्धि होती है।
शिक्षक के तौर पर काम लिया जाता है लेकिन जिम्मेदारी का काम नहीं दिया जाता। प्रतियोगी परीक्षा में ड्यूटी नहीं लगाई जाती।
शिक्षण के अलावा दूसरे कामों में लगा दिया जाता है। ज्यादातर शिक्षामित्रों से बीएलओ का काम कराया जाता है।
स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी से परेशानी होती है। सबसे अधिक दिक्कत पेयजल की होती है।
बोले जिम्मेदार :
ज्यादातर मांग शासन स्तर की
शिक्षामित्रों की ज्यादातर समस्याएं शासन स्तर की हैं। उनकी मांगें उच्चाधिकारियों को भेज दी जाती हैं। स्थानीय स्तर की समस्याओं का समाधान कराया जाएगा।
-हेमंत राव, बेसिक शिक्षा अधिकारी।
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