बोले गाजीपुर : राज्यकर विभाग की दूरी बढ़ाएगी दिक्कत
Ghazipur News - गाजीपुर। जीएसटी प्रक्रिया की जटिलताओं और राज्यकर विभाग की कार्यशैली से व्यापारी-अधिवक्ता परेशान हैं।
गाजीपुर। जीएसटी प्रक्रिया की जटिलताओं और राज्यकर विभाग की कार्यशैली से व्यापारी-अधिवक्ता परेशान हैं। करीब 20 हजार पंजीकृत व्यापारी सरकारी खजाने में हर माह लगभग 20 करोड़ रुपये का योगदान दे रहे हैं। समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ेंगी क्योंकि राज्यकर विभाग का दफ्तर शहर से 11 किलोमीटर दूर बनाने की तैयारी है। सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला राज्यकर विभाग अभी किराये की छत के नीचे चल रहा है। जिले के 70 से अधिक कर अधिवक्ता वहीं व्यापारियों की आवाज बनते हैं। विभाग की कार्यशैली से उन्हें भी जूझना पड़ता है। ‘हिन्दुस्तान के साथ चर्चा में उन्होंने अपना दर्द साझा किया। कर अधिवक्ता धीरज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि जिले के 20 हजार पंजीकृत व्यापारी हम अधिवक्ताओं के जरिए अपना रिटर्न दाखिल करते हैं। प्रशासन और राज्य कर विभाग की चली तो उन्हें शहर से 11 किमी दूर बुजुर्गा गांव में रिटर्न दाखिल करने जाना पड़ेगा क्योंकि विभाग का नया कार्यालय वहीं बनाने की तैयारी है।
गाजीपुर टैक्स बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों एवं सदस्यों के काफी प्रयास के बाद भवन निर्माण की स्वीकृति मिली। उसके लिए बजट भी जारी हो गया जबकि जमीन इतनी दूर क्यों चिह्नित कर दी गई, यह समझ से परे हैं। प्रदेश में शायद कोई जनपद होगा, जहां राज्य कर कार्यालय मुख्यालय से इतनी दूर हो। टैक्स बार एसोसिएशन के अध्यक्ष शांति कुमार शुक्ला ने कहा कि इस निर्णय का संगठन पुरजोर विरोध कर रहा है। निर्णय पर अधिकारियों को पुन: विचार करना चाहिए।घातक है ई-वे बिल का फंदा : अधिवक्ता सुनील कुमार राय का मानना है कि प्रक्रिया को सरल करने के बजाए जटिल बनाया जा रहा है। जीएसटी सिस्टम के ऑनलाइन हुए करीब आठ वर्ष होने को हैं लेकिन राज्य कर विभाग का पोर्टल अब तक ठीक तरीके से काम नहीं करता। इससे जीएसटी दाखिला में विलंब होता है। पोर्टल पर नए पंजीयन में महीनों लग जाते हैं। व्यापारी का धंधा धीमा पड़ने लगता है। सबसे अधिक परेशानी ई- वे बिल की होती है। यह भी पोर्टल के माध्यम से होना है। बार-बार पोर्टल बंद होने से ई-वे बिल जारी करने में देरी होती है। सबसे अधिक परेशानी तब होती है, जब व्यापारी का सामान रोकने के साथ विभाग जुर्माना भी लगा देता है।
हर सामान का अलग हिसाब : कर अधिवक्ता राहुल शर्मा के अनुसार जीएसटी की ऑनलाइन व्यवस्था अचानक लागू होने से कई समस्याएं आ रही हैं। आयकर विभाग ने भी ऑनलाइन व्यवस्था लागू की लेकिन कई चरणों में। राज्य कर विभाग ने मैनुअल से सीधे ऑनलाइन करने से पहले सिस्टम की खामियां दूर नहीं की।
‘एक्स पार्टी आदेश से होती है बड़ी दिक्कत
कर अधिवक्ता जयशंकर राय ने कहा कि पंजीयन जारी होने में काफी समय लग जाता है। इधर कैंसिल पंजीयन का प्रार्थनापत्र पोर्टल पर महीनों पड़ा रहता है। साथ में जीएसटीआर-2 ए और 2 बी पोर्टल पर डाल कर व्यापारियों और अधिवक्ताओं को गुमराह किया जा रहा है। सबसे बड़ी समस्या संशोधन की सुविधा न होने की है। एक पक्षीय कार्रवाई होने की दशा में अपील के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होता और अपील के लिए बनारस जाना पड़ता है। बोले, ये विसंगतियां दूर हों तो कर अधिवक्ता आसानी से काम कर सकें। रीकॉल की सुविधा न होने की वजह से आए दिन एक्स पार्टी आदेश जारी होता है।
सीजीएसटी के लिए जाते हैं आजमगढ़
अधिवक्ता आशीष बरनवाल ने कहा कि व्यापारियों को तीन प्रकार के कर देने पड़ते हैं। पहला एसजीएसटी, दूसरा सीजीएसटी तीसरा आईजीएसटी। एसजीएसटी राज्य जबकि सीजीएसटी केंद्र सरकार लेती है। अगर व्यापारी कानपुर से कोई सामान मंगाता है, जिसकी एसजीएसटी की दर पांच प्रतिशत है तो उसे पांच प्रतिशत एसजीएसटी के साथ ही सीजीएसटी भी पांच प्रतिशत की दर से देना पड़ेगा। प्रदेश के बाहर से कोई सामान मंगाया जाता है और एसजीएसटी की दर पांच प्रतिशत है तब उसको एसजीएसटी एवं सीजीएसटी मिलाकर 10 प्रतिशत आईजीएसटी देना होता है। अपील के लिए जाना पड़ता है वाराणसीकर अधिवक्ता सुभाषचंद्र बरनवाल ने कहा कि जिले में अपीलीय कार्यालय नहीं है। यहां राज्य कर अधिकारी, सहायक राज्य कर कमिश्नर और डिप्टी कमिश्नर बैठते हैं। डिप्टी कमिश्नर स्तर तक के मामलों में भी रीकॉल की सुविधा नहीं दी गई है। तब एक्स पार्टी आदेश जारी हो जाता है। तब अपील वाराणसी के जॉइंट कमिश्नर कार्यालय में होती है। वहीं, बकाया की नोटिस ई- मेल पर भेजने के साथ उसे तामील मान लिया जाता है। व्यापारी के दुकान और घर पर लिखित नोटिस भेजने और चस्पा करने की व्यवस्था नहीं है। व्यापारी को जानकारी होने तक एकपक्षीय आदेश जारी हो जाता है तब उन्हें वाराणसी जाना पड़ता है।
148.45 करोड़ का जीएसटी कलेक्शन
कर अधिवक्ता समीर बरनवाल और गौरव कुशवाहा ने बताया कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में अप्रैल से लेकर दिसंबर तक जीएसटी कलेक्शन 148.45 करोड़ हुआ है। इसमें दिसम्बर का कलेक्शन 15.41 करोड़ रुपये है। यह राशि बढ़ सकती है बशर्ते राज्यकर विभाग के अफसरों का रवैया सहयोगात्मक हो। व्यापारियों के साथ अधिवक्ताओं की समस्याओं पर सहानुभूतिपूर्वक ध्यान दिया जाय। गौरव कुशवाहा ने कहा कि कुछ मामलों की सुनवाई के लिए वाराणसी और आजमगढ़ तक की दौड़ व्यापारियों और कर अधिवक्ताओं को काफी परेशान करती है।
चूक होने पर 25 हजार जुर्माना
कर अधिवक्ता सीताराम केशरी ने कहा कि जीएसटी की जटिल प्रक्रिया और उलझाऊ प्रावधानों के चलते अब अधिवक्ताओं को मुनीबी करनी पड़ रही है। प्रतिदिन जीएसटी के नियमों में हो रहे बदलाव से कागजी कार्यवाही बढ़ गई है। कहने को पूरी व्यवस्था ऑनलाइन है, लेकिन व्यापार से संबंधित कागजों की मांग अधिक है। स्टॉकऔर क्रय-विक्रय प्रक्रिया ऐसी है कि सामानों का अलग-अलग हिसाब रखना है। इसमें छोटी चूक होने पर 25 हजार का जुर्माना भरना पड़ता है। करीब छह साल पहले हिसाब में 500 रुपये की कमी पर एक व्यापारी को 25 हजार रुपये भरने पड़े थे। इससे उनका आर्थिक शोषण होता है।
सुझाव:
जीएसटी कार्यालय नगर क्षेत्र में ही स्थापित कराया जाए। बहुत सहूलियत होगी। व्यापारियों को भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी।
राज्य कर विभाग के पोर्टल की विसगतियां दूर होनी चाहिए। इससे व्यापारियों का तनाव घटेगा। उन्हें कारोबार करने में राहत होगी।
नए पंजीयन जल्द हों ताकि व्यापारियों को सहूलियत मिले। कारोबार को रफ्तार मिल सके।
ई- वे बिल से जुड़ी समस्याएं समाप्त कराने की प्रभावी पहल हो। इससे उत्पीड़न रुकेगा। व्यापारियों को राहत होगी।
जिले में अपीलीय कार्यालय स्थापित होने से अधिवक्ताओं और व्यापारियों दोनों को मिलेगा लाभ। इसके बाद कारोबार में भी रफ्तार आएगी। व्यापारी राहत महसूस करेंगे।
शिकायतें :
नगर क्षेत्र से 11 किमी दूर जीएसटी कार्यालय स्थापित कराने की तैयारी है। इससे परेशानी बढ़ जाएगी।
राज्य कर विभाग का पोर्टल ठीक ढंग से काम नहीं करता है। आये दिन समस्या होने से व्यापारी परेशान होते हैं।
नया पंजीयन कराने में महीनों लग जाते हैं। व्यापारियों को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ता है।
पोर्टल बंद होने से ई-वे बिल जारी करने में काफी देर होती है। कई बार छोटी चूक भी दूर कराने में अधिवक्ता भी परेशान हो जाते हैं।
व्यापारी और कर अधिवक्ता जिले में अपीलीय कार्यालय नहीं होने से परेशान रहते हैं। उन्हें वाराणसी जाना पड़ता है। वे परेशान होते हैं।
इनका भी दर्द सुनें :
दूसरे जिलों में एसजीएसटी दफ्तर ग्रामीण इलाके में नहीं हैं। फिर यहां क्यों स्थापित कराने की तैयारी है? इससे दिक्कत बढ़ेगी।
सुभाषचंद्र बरनवाल
ई-वे बिल जारी करने में देर का खामियाजा व्यापारियों को भुगतना पड़ता है। कई बार शिकायत के बाद भी राहत नहीं है।
सत्यप्रकाश लाल श्रीवास्तव
जीएसटी दाखिल करने की प्रक्रिया जटिल होने से अधिवक्ताओं को काफी दिक्कत होती है। सरकार को इसे सरल बनाना चाहिए।
आशीष बरनवाल
जीएसटी में कागजी काम बहुत बढ़ गया है। इसमें छोटी भूल पर भी जुर्माना लग रहा है। परेशानी बढ़ गई। प्रक्रिया सरल बनाई जाए।
सीताराम गुप्ता
एकपक्षीय आदेश के खिलाफ अपील के लिए वाराणसी जाने में दिक्कत होती है। इसे बदलने की जरूरत है ताकि राहत मिले।
एसके शुक्ला
जिले में सीजीएसटी और आईजीएसटी के दफ्तर खुलने चाहिए। इससे काफी सहूलियत होगी। व्यापारी परेशान नही होंगे।
सुनील राय
एक जुलाई, 2017 से जीएसटी कानून लागू है। पोर्टल सही ढंग से काम नहीं करता। कैंसिल पंजीयन प्रार्थना-पत्र पड़ा रहता है।
राजेश केशरी
पंजीयन जारी होने में काफी समय लगता है। व्यापारियों को समस्या होती है। सरकार से कई बार राहत दिलाने की मांग की गई।
सतीश जायसवाल
जीएसटी विभाग का अपना कार्यालय नहीं है। निजी भवन में चल रहा है। व्यापारियों को काम कराने के लिए परेशानी का सामना करना पड़ता है। सरकार समस्या का समाधान करे।
- मनीष कुमार सिंह
बकाया नोटिस ई- मेल पर भेजा जाता है। व्यापारी को जानकारी नहीं होने से एकपक्षीय आदेश जारी हो जाता है। इस स्थिति में व्यापारियों को असुविधा होती है। समस्या दूर की जानी चाहिए। अमिताभ श्रीवास्तव
बोले जिम्मेदार
शहर में कार्यालय के लिए पर्याप्त जमीन नहीं
जीएसटी विभाग को जितनी जमीन की जरूरत थी वो शहर में उपलब्ध नहीं थी। इसको देखते हुए शहर के नजदीक ही जमीन आवंटित की गई है। विभाग ने भी उस जमीन को चुना है। वहां पर आवास से लेकर पार्किंग तक की सारी सुविधा होगी।
आयुष चौधरी, मुख्य राजस्व अधिकारी, गाजीपुर
नए पंजीयन में अधिक समय लगने पर शिकायत करें
नए पंजीयन में निर्धारित अवधि से ज्यादा समय लगता है तो शिकायत कर सकते हैं। आधार-पैन कार्ड के मिलान और कुछ उत्पादों में अधिक समय लगता है। डीएम ने राज्यकर विभाग के कार्यालय को शहर से कुछ दूर जगह दी है, इसमें विभाग हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
डीएन सिंह, एडिशनल कमिश्नर ग्रेड-1, राज्यकर विभाग
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