प्रवासी मजदूरों के दर्द को रोज बांटते थे मददगार

कोरोना काल में एक समय ऐसा आया जब अपने शहर ने प्रवासी मजदूरों को बेगाना कर दिया था। उस समय उन्हें बिना रुपयों के ही भागना पड़ गया था। न रुपयों का...

Newswrap हिन्दुस्तान, फिरोजाबादThu, 1 April 2021 05:00 PM
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कोरोना काल में एक समय ऐसा आया जब अपने शहर ने प्रवासी मजदूरों को बेगाना कर दिया था। उस समय उन्हें बिना रुपयों के ही भागना पड़ गया था। न रुपयों का इंतजाम था और न भोजन। तब उनके मददगार सुहागनगरी के लोग बने थे। करीब 65 किमी के हाईवे पर पड़ने वाले गांवों में इन्हें रोककर भोजन कराया जाता था। पानी के पाउच दिए जाते थे।

फिरोजाबाद। वरिष्ठ संवाददाता

कोरोना के बाद जब लॉक डाउन की घोषणा हुई थी तो पैदल चलने वाले प्रवासियों की संख्या काफी थी जो जिले से होकर गुजरे। दिन-रात पैदल चलते समय उनके पास रुपये नहीं होते थे। भोजन की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। तब लोगों द्वारा उनके लिए दिन-रात सुबह-शाम भोजन बनाकर दिया जाता था।

हाईवे पर टूंडला से लेकर फिरोजाबाद तक, शिकोहाबाद तक और फिर सिरसागंज तक गांवों में, शहरी क्षेत्रों में प्रवासी मजदूरों को भोजन दिया जाता था। प्रवासी मजदूरों को जब रोका जाता था और भोजन दिया जाता था तो वे बिना कुछ कहे ही काफी कुछ कह देते थे। चेहरों पर भूख से थकान होती थी। आंखें जो कई दिनों तक नहीं होने की दास्तान कहती थीं। पैरों के छाले बताते थे कि पैदल चलते समय उन्होंने कितनी समस्या को झेला है। ऐसे में लोगों द्वारा उनको भोजन कराते समय थोड़ी देर के लिए आराम भी करवाया जाता था। इससे उन प्रवासियों में महिला-पुरुषों और बच्चों को राहत मिल जाती थी। उनको पता था कि इस समय अगर भोजन नहीं किया तो आगे का कोई भरोसा नहीं है कि ये भोजन मिल पाएगा या नहीं।

आंसू तक आ जाते थे भोजन करते समय

प्रवासी मजदूरों की हालत ऐसी थी कि जब उनको लोगों द्वारा भोजन मुहैया कराया जाता था उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे। वे कहते थे कि जिन शहर के लिए वे काम करते समय अपना कीमती पसीना बहाते थे वहां से कोराना काल में पलभर में बेगाना कर दिया था। उनसे पूछा तक नहीं गया कि भोजन और रुपया का इंतजाम है या नहीं।

प्रवासियों को रोक रोक कर खिलाते थे भोजन

फिरोजाबाद। प्रवासी मजदूरों का जब जिले से आवागमन तेजी से शुरू हुआ तो पैदल चलने वाले प्रवासियों को सामाजिक संगठनों द्वारा भोजन मुहैया कराने का बीड़ा उठाया गया। इसके लिए हाईवे पर उन्हें रोका जाने लगा। पैदल चलने वाले प्रवासियों को भोजन खिलाने के बाद आगे गंतव्य के लिए भी पैकेट बनाकर थमाए जाते थे। कोरोना काल में हालत यह हो गई थी कि लोगों के पास खाने के लिए रुपये नहीं थे। जब प्रवासी मजदूर अपने अपने महानगरों से चले थे तब जिन कारखानों में वह काम करते थे वहां से भी उन्हें पगार नहीं दी गई थी। हालत यह थी कि उनके पास वाहनों के लिए भी किराया नहीं था। ऐसे में वह शहर और गांव से निकलते समय मदद मिलने पर रुक जाते थे। ग्रामीणों द्वारा दिन-रात इनके लिए भोजन बनवाया गया। पैकेट भी तैयार कराए जाते थे। जैसे ही प्रवासी मजदूर वहां से पैदल निकलते थे तो उन्हें भोजन कराने के बाद आराम कराया जाता उसके बाद आगे के रास्ते के लिए भी भोजन के पैकेट दिए जाते थे। लोगों द्वारा की गई मदद को लेकर वह काफी खुश नजर आते थे।

हाईवे पर हर समय लोग रोकते रहते थे वाहन

फिरोजाबाद। हाईवे के किनारे स्थित गांव के लोग भी प्रवासी मजदूरों की मदद को अपने हाथ आगे बढ़ाने लगे। वे वाहनों को रोक रोक कर उसमें बैठे मजदूरों को भोजन खिलाते थे और पानी के पैकेट भी देते थे। टूंडला से लेकर सिरसागंज तक निकले करीब 65 किलोमीटर के हाईवे पर लोग जगह-जगह प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन मुहैया कराया जाता था। कई लोग तो सुबह ही भोजन बनाकर हाईवे के पास ले आते थे और बांटते रहते थे। पुलिस जब बंद बॉडी वाले वाहनों को रोक लेती तो उनके आसपास भी लोग पहुंच जाते और भोजन के पैकेट बनाने लगते। इसके अलावा कुछ लोग किराए पर वाहनों को लेकर निकल रहे थे वे भी भूखे प्यासे थे। उनको भी संगठनों के लोग और ग्रामीण भोजन देते रहते थे। इन वाहनों के चालक भी भूखे प्यासे कई दिनों से लोगों को लंबी दूरी से लाते समय परेशान थे। थकान मिटाने के लिए बैठ जाते थे। गांव-गांव लोगों की मदद से भोजन मिलने से प्रवासी मजदूरों को लगने लगा था कि भले ही जिस महानगर से उन्हें बेगाना कर भागने पर मजबूर कर दिया हो लेकिन जिस गांव और महानगर से गुजर रहे हैं। वहां पर लोग उनकी मदद के लिए पूरी तरह तैयार थे।

पानी के पाउच कि रहती थी सबसे ज्यादा दरकार

फिरोजाबाद। प्रवासी मजदूरों को भोजन तो कई जगह मुहैया हो जाता था लेकिन हाईवे पर चलते समय उन्हें पानी नहीं मिल पाता था। इस दौरान तमाम लोगों ने पानी के पाउच भी वितरित करना शुरू कर दिया था। सुबह से लेकर शाम तक यह लोग पानी के पाउच लेकर हाईवे पर पहुंच जाते थे। सबसे अच्छी बात यह थी कि प्रवासी मजदूरों द्वारा जब ज्यादा संख्या में पानी के पाउच मांगे जाते थे तो संगठनों के लोगों के साथ-साथ ग्रामीण इन पानी के पाउच को देते रहते थे। प्रवासी मजदूरों का कहना था कि कई कई किमी तक पानी नहीं मिल पाता है और पानी के अभाव में वह प्यासे चलते रहे थे। कोरोना काल में पानी के पाउच को कई पाउच बनाने वाली कंपनियों ने कम रेट में मुहैया कराया ताकि मददगार लगातार पानी के पाउच की व्यवस्था इन प्रवासी मजदूरों के लिए करते रहते थे।

मजदूरों को नगर निगम ने लगातार खिलाया था भोजन

फिरोजाबाद। नगर निगम द्वारा लगातार प्रवासी मजदूरों को भोजन दिया गया था। प्रवासी मजदूरों को जब गंतव्य तक छोड़ने के लिए रोडवेज बस स्टैंड तक लाया जाता था। तो नगर निगम की भोजनशाला से इन्हें भोजन दिया जाता था। नगर निगम के कर्मचारी भोजन को लेकर बस स्टैंड पर पहुंच जाते थे। पुलिस की मदद से उचित दूरी पर बिठाए गए इन प्रवासी मजदूरों को सब्जी और पूड़ी दी जाती थी। अगर ज्यादा रात हो जाती थी तो इन्हें सुबह के समय जाते समय भोजन मुहैया कराया जाता था।

वार्डों के साथ मजदूरों को दिया था भोजनःमेयर

महापौर नूतन राठौर कहती हैं कि उस समय नगर के लोगों को वार्डों में भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रवासी मजदूरों को भी भोजन देना जरूरी था। इसलिए कर्मचारियों को अतिरिक्त समय में यह काम करना पड़ता था ताकि भोजन की व्यवस्था नहीं हो।

विधायक असीजा लगातार कराते थे वाहनों की व्यवस्था

फिरोजाबाद। सदर विधायक मनीष असीजा द्वारा शहर के अंदर फंसे लोगों के लिए सरकारी वाहनों की व्यवस्था कराते थे। रोडवेज अधिकारियों से बात करके और जिलाधिकारी चंद्रविजय सिंह से बात करके रोडवेज बसें गंतव्य तक पहुंचाने के लिए दिलवाने के लिए कहते थे। इस दौरान प्रवासी मजदूरों को उचित दूरी पर रोडवेज बस स्टैंड के अंदर बैठा लिया जाता था। जैसे ही रोडवेज बस संबंधित जिलों के लिए आ जाती थीं तो उनमें इन प्रवासी मजदूरों को बिठा कर भेजा जाता था। दर्जनों बसों को उन दिनों विधायक असीजा ने प्रशासन की मदद से उपलब्ध कराया था। असीजा ने बताया कि जब उनके पास इस तरह के फंसे मजदूरों की लिस्ट को कार्यकर्ताओं द्वारा दिया जाता था तो सबसे पहले संबंधित एसडीएम से संपर्क किया जाता था। उसके बाद जिलाधिकारी और एआरएम से बात की जाती थी। उन दिनों सैकड़ों लोगों को अलग अलग महानगरों में रोडवेज बसों से पहुंचवाया गया था।

जन कल्याण सेवा समिति देती थी सामान

फिरोजाबाद जन कल्याण सेवा समिति द्वारा लोगों को लगातार कोरोना काल में भोजन के लिए सामान मुहैया कराया गया। इसके लिए संस्था द्वारा किट प्रदान की जाती थी। लगातार विभिन्न जगहों पर समिति के सदस्य पहुंच जाते थे। इस दौरान जरूरतमंद महिला पुरुष आते और भोजन की किट को लेकर जाते थे। संस्था के महिला पुरुष पदाधिकारियों द्वारा लगातार संबंधित वार्डों में इसकी जानकारी दे दी जाती थी। कहां कहां अपना कैंप लगाएंगे इसकी जानकारी दे दी जाती थी। कैंप में कई बार कपड़े भी दिए जाते थे। इसके अलावा तरबूज भी बांटा जाता था ताकि लोग कुछ खा सकें। किट में मसाले भी दिए जाते थे।

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