सिद्धचक्र महामंडल विधान में चढ़े चौसठ रिद्धियों के अर्घ्य
फतेहपुर में नेमिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में सिद्धचक्र महामंडल विधान के चौथे दिन चौसठ रिद्धियों के अर्घ्य समर्पित किए गए। आचार्य विद्या सागर की शिष्या श्वेता दीदी ने जैन श्रावक-श्राविकाओं को जीवन के छह...
फतेहपुर, संवाददाता शहर के स्टेशन रोड स्थित नेमिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में सिद्धचक्र महामंडल विधान के चौथे दिन चौसठ रिद्धियों के अर्घ्य समर्पित किए गए। वहीं आचार्य विद्या सागर की शिष्या श्वेता दीदी ने जैन श्रावक-श्राविकाओं को छह विभिन्न बिंदुओं पर चिंतन न मनन किए जाने को प्रेरित किया।
विधान से पूर्व प्रतिदिन की भांति ही श्री जिनेंद्र भगवान का जलाभिषेक व शांतिधारा का आयोजन किया गया। जिसके बाद नित्य नियम पूजा के बाद सिद्धचक्र महामंडल विधान की पूजा सम्पन्न कराई गई। संगीतमई विधान में अनुयायियों ने प्रभु की भक्ति करते हुए चौसठ रिद्धियों के अर्घ्य समर्पित किए। वहीं विधानाचार्य श्वेता दीदी ने कहा कि बेटियां दो कुलों को रोशन करती है, अपील करते हुए कहा कि श्रावक अपनी बेटियों को सिद्धचक्र महामंडल विधान में अष्ट कुमारिया बनाकर पुण्य अर्जन कर सकते हैं। कहा कि जैन श्रावक-श्राविकाओं को जीवन में छह बिंदुओं पर मनन, चिंतन करना आवश्यक है। जिसमें आत्म स्वभाव में स्थिरता, आत्म स्वभाव का आनंद, गुरु का सानिध्य, स्वाध्याय, शुद्ध विचार शामिल हैं। अपनी आत्मा की शुद्धता, कर्मों की विशुद्धि, आत्मा की निर्मलता और देव, शास्त्र, गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा रखना जैन धर्म की निशानी है। जैन धर्मावलंबियों को संस्कारित होने के साथ ही धर्म के सिद्धांत, अहिंसा, अणु व्रतों का पालन सुनिश्चित करना चाहिए। कहा कि सभी के लिए जैन धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों का पालन सर्वोपरी है। कहा कि पूर्व में लोग एक या दो समय सादा आहार खाकर अपनी भूख को शांत कर लेते थे। लेकिन वर्तमान में अनेक प्रकार की भोजन सामग्री का बार-बार सेवन करने पर भी तृप्त नहीं हो पाते। वहीं भय संज्ञा सभी जीवों में पाई जाती है मनुष्य धन संपदा खोने से, स्वास्थ्य से, मृत्यु आदि से हमेशा भयभीत रहता है। विधान के दौरान संध्या आरती के साथ ही उनके द्वारा लोगो के प्रश्नों के उत्तर देकर जिज्ञासाओं को भी समाप्त किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबी मौजूद रहे।
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